BHOPAL. दुनिया बदलने के साथ-साथ बच्चे भी बदल रहे हैं इनकी पढ़ाई का तरीका भी बदल रहा है। टीचर के हाथ में अब डंडा नहीं होता, जमाना बदल गया है अब टीचर गाना गाते हुए पढ़ाते हैं। बच्चों को पुरुष प्रधान मानसिकता से बाहर निकालने के लिए पाठ्यक्रम भी बदला गया है। अब मम्मी के हाथों में पैसा और पापा के हाथों रोटी बनाना बताया जा रहा है।
अब टीचर डंडा लेकर नहीं गीत गाकर पढ़ाते हैं
मध्य प्रदेश के स्कूलों में अब पढ़ाई में नए तरीकों को अपनाया जा रहा है। रोटी बनाना सिर्फ मम्मी का काम नहीं है। यही नहीं, दादा की बजाय दादी का चश्मा गोल-गोल बताया जा रहा है। दादा तो अब लड्डू बना रहे हैं वहीं पापा का रोटी बनाना बताया जा रहा है। एससीईआरटी और अजीम फाउंडेशन ने मिलकर स्कूलों में पढ़ाई के तौर-तरीकों में बदलाव करते हुए नए प्रयोग शुरू किए हैं। बच्चों को एकाग्रचित्त करने के लिए पढ़ाई में गीतों का सहारा लिया गया है।
बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए तैयार किया
इन दिनों प्राइमरी शिक्षकों की ट्रेनिंग चल रही है। इसमें पढ़ाने के नए तरीकों को सिखाया जा रहा है। खासकर 3-6 वर्ष के बच्चों के संपूर्ण विकास के सभी आयामों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम तैयार किया गया है।
अब पापा की रोटी और दादा का लड्डू गोल-गोल
लैंगिक समानता को लेकर प्रयास के लिए ये सब कवायद की जा रही है। एससीईआरटी ने पढ़ाई के तौर-तरीकों में बदलाव के लिए नए प्रयोग शुरू किए हैं।
पुरानी कविता...
पापा का पैसा गोल गोल
दादा का चस्मा गोल गोल
दादी की बिंदिया गोल गोल
ऊपर पंखा गोल-गोल
नीचे धरती गोल-गोल
चंदा गोल सूरज गोल
हम भी गोल तुम भी गोल
सारी दुनिया गोल-मटोल
अब नई कविता...
मम्मी का पैसा गोल-गोल
दादी की ऐनक गोल-गोल
दादा का लड्डू गोल-गोल
साइकिल का पहिया गोल-गोल
और भैया तो खुद ही गोल-मटोल