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केंद्र सरकार की एक बहुत ही एंबिशियस स्कीम, पीएम इंटर्नशिप स्कीम ग्राउंड लेवल पर कुछ खास परफॉर्म नहीं कर पा रही है। इस स्कीम को लॉन्च हुए 9 महीने हो चुके हैं लेकिन अब तक सिर्फ 87 सौ युवा ही इंटर्नशिप जॉइन कर पाए हैं।
यह नंबर पहले राउंड में दिए गए 1.27 लाख इंटर्नशिप ऑफ का सिर्फ 7% है। बता दें कि जब यह स्कीम लॉन्च हुई थी, तब यह दावा किया गया था कि अगले पांच सालों में टॉप-500 कंपनियों में 1 करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप मिलेगी। लेकिन अभी के हालात तो कुछ और ही बता रहे हैं, जो एक अलार्मिंग ट्रेंड की तरफ इशारा करते हैं।
यह सिर्फ नंबरों का खेल नहीं है, बल्कि देश के युवाओं के फ्यूचर और उनकी ट्रेनिंग से जुड़ा एक बड़ा सवाल है। आखिर क्यों इतनी बड़ी और अच्छी स्कीम अपने शुरुआती फेज में ही इतनी धीमी पड़ गई है? क्या इसके पीछे पॉलिसी में कोई कमी है या फिर प्राइवेट कंपनियों की तरफ से रिस्पॉन्स कम मिल रहा है?
इंटर्नशिप आवेदनों में गिरावट
अगर इस स्कीम के डेटा कू बात करें तो यह चौकाने वाली है। सिर्फ जॉइनिंग ही कम नहीं हुई है, बल्कि इंटर्नशिप ऑफर्स और उनमें दिलचस्पी लेने वाले युवाओं की संख्या में भी गिरावट देखने को मिली है।
पीएम इंटर्नशिप स्कीम डेटा
राज्यसभा में केंद्र सरकार ने पीएम इंटर्नशिप स्कीम से जुड़ा जो डेटा शेयर किया है, उसके पॉइंट्स ये रहे:
पहला राउंड (First Round):
- ऑफर: एक लाख 27 हजार इंटर्नशिप ऑफर्स दिए गए।
- आवेदन: 6 लाख 21 हजार युवाओं ने इंटर्नशिप के लिए अप्लाई किया।
- स्वीकार: 28 हजार ऑफर्स युवाओं ने स्वीकार किए।
- जॉइनिंग: सिर्फ 87 सौ युवाओं ने ही इंटर्नशिप जॉइन की, जो ऑफर का लगभग 7% है।
दूसरा राउंड (Second Round):
- ऑफर में कमी: ऑफर्स की संख्या घटकर एक लाख 18 हजार रह गई (पहले राउंड से कम)।
- आवेदन में गिरावट: आवेदनों की संख्या भी घटकर 4 लाख 55 हजार हो गई (पहले राउंड से 27% कम)।
- स्वीकार: 22 हजार 5 सौ ऑफर्स युवाओं ने स्वीकार किए।
- जॉइनिंग: दूसरे राउंड में जॉइनिंग की प्रक्रिया अभी जारी है।
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कुछ जरूरी जानकारी
- कंपनी पार्टिसिपेशन: दूसरे राउंड में इंटर्नशिप ऑफर करने वाली कंपनियों की संख्या बढ़ी है (पहले 280 से बढ़कर 327)।
- बजट का हाल: 2024-25 के लिए दो हजार करोड़ रुपए का बजट अल्लोटेड था, लेकिन अब तक केवल 50 करोड़ रुपए ही खर्च हुए हैं।
- भविष्य का बजट: 2025-26 के लिए बजट बढ़ाकर 10 हजार 8 सौ 31 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
यह डेटा दिखाता है कि स्कीम के इंप्लीमेंटेशन में काफी चुनौतियां हैं, खासकर जॉइनिंग नंबर्स को लेकर जो सरकार के शुरुआती 1 करोड़ इंटर्नशिप के वादे से काफी कम हैं।
पहले राउंड में जहां 1.27 लाख इंटर्नशिप ऑफर की गई थीं, वहीं दूसरे राउंड में यह संख्या घटकर 1.18 लाख रह गई। सिर्फ ऑफर्स ही नहीं, बल्कि आवेदनों में भी 27% की कमी आई है। पहले राउंड में 6.21 लाख आवेदन आए थे, जबकि दूसरे राउंड में यह संख्या घटकर 4.55 लाख रह गई।
हालांकि, एक पॉजिटिव बात यह है कि दूसरे राउंड में ऑफर देने वाली कंपनियों की संख्या थोड़ी बढ़ी है। पहले राउंड में जहां 280 कंपनियों ने ऑफर दिए थे, वहीं इस बार यह संख्या बढ़कर 327 हो गई है। यह दिखाता है कि कुछ कंपनियों की दिलचस्पी बढ़ी है, लेकिन ओवरऑल आउटपुट अभी भी बहुत कम है।
बजट की गणित
यह स्कीम केवल इंटर्नशिप नंबर्स में ही नहीं, बल्कि बजट मैनेजमेंट में भी सवालों के घेरे में है। 2024-25 के लिए इस योजना पर दो हजार करोड़ रुपए का बजट अलॉट किया गया था।
इसमें से 840 करोड़ रुपए एक्सेप्ट भी हुए, लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक सिर्फ 50 करोड़ रुपए ही खर्च हो सके हैं। यह अलोकेटेड बजट का सिर्फ 2.5% है, जो दिखाता है कि फंड्स होने के बावजूद स्कीम उस तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रही है जिसकी उम्मीद की जा रही थी।
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने 2025-26 के लिए इस स्कीम का बजट बढ़ाकर 10 हजार 8 सौ 31 करोड़ रुपए कर दिया है। यह एक बहुत बड़ा जंप है और यह सरकार की इस स्कीम को लेकर गंभीरता को दिखाता है।
तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब पिछले साल का बजट ही ठीक से खर्च नहीं हो पाया, तो इतने बड़े बजट का क्या फायदा होगा, अगर इंप्लीमेंटेशन की स्पीड ऐसी ही रहेगी?
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पीएम इंटर्नशिप स्कीम: एक नजर में
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चुनौतियां और आगे की राह
इस स्कीम की धीमी प्रगति के पीछे कई रीजन्स हो सकते हैं।
- अवेयरनेस की कमी: हो सकता है कि युवाओं को इस स्कीम के बारे में पूरी जानकारी न हो या उन्हें यह न पता हो कि इंटर्नशिप के लिए कैसे अप्लाई करें।
- मैचिंग की समस्या: कई बार कंपनियों को अपनी जरूरत के हिसाब से सही टैलेंट नहीं मिलता और युवाओं को भी अपनी स्किल्स के हिसाब से सही इंटर्नशिप नहीं मिल पाती। यह टैलेंट मैचिंग का इशू हो सकता है।
- स्टिकेंड का मुद्दा: इंटर्नशिप में मिलने वाला स्टाइपेंड भी एक फैक्टर हो सकता है। अगर स्टाइपेंड कम है या नहीं है, तो युवा शायद इसमें कम इंटरेस्ट दिखाएं।
- सरकारी प्रोसेसेज की धीमी गति: कई बार सरकारी स्कीम्स में डॉक्यूमेंटेशन और अप्रूवल प्रोसेस काफी लंबा हो जाता है, जिससे युवाओं और कंपनियों दोनों को प्रॉब्लम होती है।
- प्राइवेट कंपनियों का इंटरेस्ट: यह भी हो सकता है कि प्राइवेट कंपनियों को इस स्कीम में पर्याप्त इंसेंटिव न मिल रहा हो, जिससे वे ज्यादा इंटर्नशिप ऑफर न कर पा रही हों।
सरकार को इन चुनौतियों को ध्यान से समझना होगा और उनके लिए इफेक्टिव सॉल्यूशंस खोजने होंगे। सिर्फ बजट बढ़ाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि स्कीम के इंप्लीमेंटेशन, प्रमोशन और कंपनी-युवा मैचिंग प्रोसेस को मजबूत करना होगा।
यह जरूरी है कि निजी कंपनियों में युवाओं की ट्रेनिंग को और बढ़ावा दिया जाए ताकि देश के युवा स्किल्ड और एम्प्लॉएबल बन सकें। तभी जाकर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और देश की इकोनॉमी को भी फायदा मिलेगा। अगर यह स्कीम अपने वादे पूरे करती है, तो यह देश के लाखों युवाओं के लिए एक गेम चेंजर साबित हो सकती है, उन्हें इंडस्ट्री-रेडी स्किल्स देकर।
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