सीएम राइज के लिए तो 3230 करोड़, इधर सामान्य सरकारी स्कूलों की दरक रही दीवारें, कहीं क्लासरूम की छत पोल के सहारे

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Rahul Sharma
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सीएम राइज के लिए तो 3230 करोड़, इधर सामान्य सरकारी स्कूलों की दरक रही दीवारें, कहीं क्लासरूम की छत पोल के सहारे

BHOPAL. मध्यप्रदेश सरकार ने 17 से 19 जुलाई तक स्कूल चलें हम अभियान मनाया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बच्चों का शत प्रतिशत नामांकन यानी स्कूल लाना था। प्रबुद्ध नागरिकों और जनप्रतिनिधियों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए “भविष्य से भेंट” कार्यक्रम भी आयोजित हुए, जिसमें लोगों ने अपने अनुभव साझा किए और बच्चों को प्रेरक कहानी सुनाई, लेकिन मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों की एक तस्वीर और है, जो इससे बिल्कुल अलग है। सरकार बच्चों को स्कूल लाने के लिए प्रेरित तो कर रही है, कार्यक्रम भी चला रही है, पर उस स्कूल में बच्चों को जो मूलभूत सुविधा मिलना चाहिए उस पर किसी का ध्यान ही नहीं है, या यूं कहें कि सालों से जिम्मेदारों को कोई परवाह ही नहीं रही। मध्यप्रदेश सरकार ने एक ओर तो बजट में 900 सीएम राइज स्कूलों के भवन निर्माण के लिए 3230 करोड़ का प्रावधान किया है, वहीं दूसरी ओर सामान्य सरकारी स्कूलों में बच्चों के ठीक ढंग से बैठने तक की व्यवस्था नहीं हैं। हाल ये हैं कि जर्जर भवनों में बच्चों को बैठाकर पढ़ाया जा रहा है, जहां कभी भी हादसा हो सकता है। कहीं दीवार गिरने का खतरा है तो कहीं छत टपक रही है। 



झाबुआ में एक पोल के सहारे क्लासरूम की छत



शिक्षा के नाम पर छात्र छात्राओं को दी जाने वाली सुविधाएं आज भी आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में कोसों दूर है। हम बात कर रहे हैं झाबुआ जिले की सबसे बड़ी विधानसभा क्षेत्र पेटलावद से 12 किमी दूर बैड़दा गांव के एक सरकारी स्कूल की, जहां बारिश के मौसम में पूरी छत से पानी टपकता है। छत में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई है और गिरने जैसी स्थिति में है। एक कमरे की छत को तो लोहे के पोल का सहारा देकर रखा है, जिसके नीचे ही बच्चे पढ़ाई करते हैं। जाहिर तौर पर हादसा कभी भी हो सकता है और जिम्मेदार अपनी आंखे मूंदकर बैठे हैं। 



3 साल से नहीं मिली स्कूल ड्रेस



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इस स्कूल में पहली से पांचवी तक 56 बच्चे पढ़ाई करते हैं, लेकिन 3 सालों से बच्चों को स्कूल की ड्रेस नहीं दी गई। कई बच्चे फटे पुराने और गंदे कपड़े पहनकर स्कूल आ रहे हैं। 2011—12 में किचन सेट के लिए पैसा आया था, निर्माण के नाम पर पूरा पैसा निकाल लिया, पर निर्माण आज भी अधूरा है। शौचालय इतना जर्जर है कि बच्चों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है। बीईओ और बीआरसी ने कहा कि निरीक्षण के दौरान जो स्थिति देखने को मिली थी उसके बारे में वरिष्ठ अधिकारियों को बता दिया गया है। वहीं पेटलावद विधायक बालसिंह मेड़ा ने सरकार पर स्कूल ड्रेस में बड़े स्तर पर हुए भ्रष्टाचार का आरोप लगाया।



रतलाम में स्कूल की छत से टपक रहा पानी



रतलाम जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर जावरा के डोडियाना गांव में शासकीय माध्यमिक स्कूल भवन सालों से जर्जर स्थिति में है। परिसर तालाब बना हुआ है और मेन गेट पर ही कीचड़ है। स्कूल में 94 स्टूडेंट है, जो बारिश में टपकती छत के नीचे बैठने को मजबूर है। स्कूल के प्रधानाध्यापक रामेश्वर बोडाना ने बताया कि पास के ही खेत से पानी रिसकर कमरों में आ रहा है। इससे बच्चों को पढ़ने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वहीं दीवारों से, छत से भी पानी टपक रहा हैं। हर साल फर्श भी धंसता जा रहा है। कक्षा 8वी की छात्रा शिवानी ने बताया कि पुराने स्कूल की दीवारों के गिरने का डर बना रहता है। कक्षा सातवीं के स्टूडेंट आशुतोष ने बताया कि बारिश में छत से पानी टपकता है छत गिरने का भी डर भी बना रहता है। 



11 साल में भी हैंडओवर नहीं हुआ भवन



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स्कूल के प्रधानाध्यापक रामेश्वर बोडाना ने बताया कि साल 1992 में बने स्कूल भवन की जर्जर स्थिति को देखते हुए साल 2012 में नए भवन का निर्माण पंचायत ने करवाया था, लेकिन आधे—अधूरे निर्माण के कारण यह 11 साल बाद भी स्कूल को हैंडओवर नहीं किया जा सका। वहीं रतलाम कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा के लिए हम गंभीर है। अधिकारियों को निर्देश भी दिए गए हैं। नए भवन का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है। जल्द ही नए भवन में स्कूल को शिफ्ट कर दिया जाएगा। 



रायसेन में क्लासरूम के अंदर ही कीचड़



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रायसेन जिले की तहसील बरेली से करीब 12 किलोमीटर दूर ग्राम बगलवाड़ा के माध्यमिक स्कूल का भवन जर्जर है। बारिश में हालात और खराब हो जाते हैं। स्कूल के चारों कमरों में पानी टपकता है। स्कूल में 50 स्टूडेंट है, लेकिन उनके बैठने की भी ठीक व्यवस्था नहीं है। हालात यह है कि स्कूल के अंदर ही कीचड़ की स्थिति है। स्कूल की जर्जर स्थिति को लेकर प्रिंसिपल और ग्रामीणों ने कलेक्टर और विभाग को कई बार शिकायत की, लेकिन कभी कोई सुनवाई नहीं हुई।



भोपाल में स्कूल की मरम्मत का ही ठिकाना नहीं



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अब बात राजधानी भोपाल की करें तो यहां एक स्कूल ऐसा है जो जर्जर है, लेकिन स्टॉफ को यह पता ही नहीं कि स्कूल की मरम्मत कब होगी और होगी भी यहां नहीं। रेतघाट के माध्यमिक शाला सुलेमानिया में दीवार का प्लास्टर झड़ रहा है। छत में सरिया दिखने लगे हैं। क्लासरूम के अंदर पानी जमा है। जब इस संबंध में स्कूल की प्रभारी सुनंदा श्रीवास से बात की तो उन्हें बताया कि स्कूल की मरम्मत कब होगी उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं है। राजधानी भोपाल में विभाग के आला अधिकारियों के नाक के नीचे ही जब सरकारी स्कूल की यह हालात है तो प्रदेश के अन्य जिलों के स्कूलों की हालत समझी जा सकती है। 



दो साल में 22 प्रतिशत तक बढ़ गया है स्कूल शिक्षा का बजट



मध्यप्रदेश सरकार हर साल बेहतर शिक्षा और सुविधा के नाम पर स्कूल शिक्षा का बजट तो बढ़ा रही है, लेकिन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कई स्कूलों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। दूरदराज के ग्रामीणांचलों के स्कूलों की हालत तो चिंताजनक है। बीते दो साल में ही सरकार ने स्कूल शिक्षा के बजट में 22 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी कर दी, पर इस बजट का पैसा कहां और कैसे खर्च हो रहा है, यह तो सरकार ही जाने। मध्यप्रदेश में 2021—22 में स्कूल शिक्षा का बजट 25953 करोड़ था, जिसे 2022—23 में बढ़ाकर 27792 करोड़ कर दिया गया। वहीं 2023—24 में स्कूल शिक्षा का बजट 31633 करोड़ रखा गया है। 



(इनपुट : झाबुआ से श्रवण मालवीय, रतलाम से आमीन हुसैन और रायसेन से पवन सिलावट की रिपोर्ट


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