RTE : शिक्षा का अधिकार अधर में, आखिर कब खुलेंगे आरटीई के दरवाजे...? अभिभावकों को इंतजार
आरटीई के तहत स्कूलों में दाखिले की प्रक्रिया को लेकर वंचित वर्ग के अभिभावकों में चिंता बढ़ती जा रही है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अंतर्गत गैर-अनुदान प्राप्त निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित होती हैं।
MP News : शिक्षा का अधिकार (RTE) सिर्फ एक कानून नहीं, हर बच्चे का सपना है - खासकर उन मासूमों का जो समाज के वंचित और कमजोर वर्ग से आते हैं। आरटीई (नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम) उनके लिए उम्मीद की एक किरण बनकर आया था। 2009 में लागू इस अधिनियम ने गरीब अभिभावकों को ये भरोसा दिया कि उनका बच्चा भी अच्छे स्कूल में पढ़ सकेगा, बड़े सपने देख सकेगा।
लेकिन इस साल अब तक दाखिले की प्रक्रिया को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश सामने नहीं आए हैं, जिससे उन अभिभावकों की चिंता बढ़ती जा रही है, जिनकी दुनिया उनके बच्चों के भविष्य में सिमटी हुई है। वे रोज़ उम्मीद लेकर अख़बार पलटते हैं, सरकारी वेबसाइट देखते हैं कि शायद आज कोई सूचना मिले, कोई रास्ता खुले।
गैर-अनुदान प्राप्त निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित होती हैं - ये केवल एक आंकड़ा नहीं, हज़ारों परिवारों की उम्मीदों का सहारा है। लेकिन जब प्रक्रिया ही साफ नहीं हो, तो कैसे कोई भरोसा बनाए रखे? अब सवाल सिर्फ तारीखों का नहीं है, सवाल है उन नन्हीं आंखों में पल रहे सपनों का। सरकार से अनुरोध है कि जल्द से जल्द स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जाएं, ताकि हर बच्चे को उसका हक़ और हर मां-बाप को सुकून मिल सके।
हर साल की तरह आरटीई के अंतर्गत कक्षा पहली से आठवीं तक की कक्षाओं में ऑनलाइन लॉटरी के जरिए एडमिशन मार्च-अप्रैल माह में पूरे कर लिए जाते हैं। पिछले वर्ष तक की बात करें तो 8 अप्रैल तक दूसरे चरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिल चुका था।
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अभिभावकों में असमंजस
नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो चुका है और अप्रैल माह भी समाप्ति की ओर है, बावजूद इसके राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा अब तक कोई ठोस निर्णय या शेड्यूल जारी नहीं किया गया है। इससे न केवल अभिभावकों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है, बल्कि हजारों बच्चों का भविष्य अधर में लटका नजर आ रहा है।
इंदौर के कुछ अभिभावकों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा"हम हर साल की तरह इस बार भी समय पर तैयारी कर रहे हैं, लेकिन प्रक्रिया कब शुरू होगी इसकी कोई जानकारी नहीं मिल रही है।"
शिक्षा के अधिकार को लेकर सरकार की ओर से लगातार जागरूकता अभियान चलाए गए हैं, लेकिन समय पर प्र्रक्रिया न होने से योजना की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
बच्चों के भविष्य से खिलवाड़
शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही का खामियाज़ा उन हजारों वंचित परिवारों और उनके मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है, जो इस वर्ष की अधिकतम आयु सीमा 7 वर्ष पार कर रहे हैं। यह देरी न केवल उनके भविष्य के साथ अन्याय है, बल्कि शिक्षा के मौलिक अधिकार के साथ एक गंभीर मज़ाक भी है।
एक ओर निजी विद्यालयों में वार्षिक परीक्षाओं के तुरंत बाद ही नवीन शैक्षणिक सत्र प्रारंभ हो चुका है, वहीं दूसरी ओर आरटीई के अंतर्गत नामांकन प्रक्रिया को लेकर शासन की उदासीनता ने पालकों के मन में भ्रम और संशय की स्थिति उत्पन्न कर दी है। पात्र होने के बावजूद, गरीब और वंचित वर्ग के कई अभिभावकों को निजी स्कूलों में महंगी फीस चुकाकर अपने बच्चों का दाखिला करवाने को मजबूर होना पड़ रहा है।
ऑनलाइन पोर्टल भी नहीं हुए अपडेट
अभिभावकों ने कहा, संबंधित ऑनलाइन पोर्टल भी आज तक अपडेट नहीं किए गए है। यह अभी भी पुरानी स्थिति को ही दर्शा रहा है, जिससे अभिभावकों को न तो सटीक जानकारी मिल पा रही है और न ही वे समय रहते कोई निर्णय ले पा रहे हैं।
इस संबंध में वंचित बहुजन आघाड़ी के प्रतिनिधि - दिनकर राव अंभोरे, भीमराव वानखेड़े और प्रहलाद वाकोडे ने सरकार से मांग की है कि वह इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द शुरू करे। इनका कहना है राज्य सरकार के पास सभी आवश्यक संसाधन और स्कूलों से संबंधित पूरा डेटा ऑनलाइन उपलब्ध है। इसके बावजूद अब तक इस विषय में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। न ही कोई सूचना या निर्देशात्मक पत्र जारी किया गया है।