अरुण तिवारी, BHOPAL. इन दिनों राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी निशा बांगरे मध्यप्रदेश की सियासत में सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। चुनाव लड़ने की इच्छुक निशा बांगरे ने अपनी सेवा से इस्तीफा तो दे दिया लेकिन सरकार उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रही। निशा की सियासी भोर में यही पेंच फंस गया है। जब तक निशा का इस्तीफा मंजूर नहीं होता तब तक न तो वे चुनाव लड़ सकती हैं और न ही वे कोई राजनीतिक बयानबाजी कर सकती हैं। आइए आपको बताते हैं कि किस तरह निशा की मंशा पर पानी फिर रहा है।
ये हैं सरकार के नियम
आमतौर पर सरकार किसी भी अधिकारी का इस्तीफा स्वीकार करने में या वीआरएस देने में न तो देरी करती और न ही कोई अड़ंगा लगाती। लेकिन छतरपुर जिले के लवकुश नगर की एसडीएम निशा बांगरे के इस्तीफे को तीन महीने से ज्यादा हो गए हैं, फिर भी सरकार ने अभी तक उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया है। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और चुनाव विशेषज्ञ कहते हैं कि सरकारी नियमों के मुताबिक जब तक किसी अधिकारी पर किसी भी तरह की विभागीय या अन्य जांच चल रही हो तब तक सरकार उसका इस्तीफा मंजूर नहीं करती। और इसके लिए सरकार को कोई बाध्य नहीं कर सकता। जब तक इस्तीफा मंजूर नहीं होता तब तक वो अधिकारी अपने पद पर माना जाता है। ऐसे में वो अधिकारी न तो राजनीतिक मंच साझा कर सकता है और न ही कोई राजनीतिक बयानबाजी ही कर सकता है। यहां तक कि वो किसी राजनीतिक पार्टी का समर्थन या विरोध भी नहीं कर सकता। यदि अधिकारी इस तरह का कोई आचरण करता है तो ये सिविल सेवा आचरण के नियमों का उल्लंघन माना जाएगा।
नियमों के फेर में उलझे अरमान
इन नियमों के जाल में ही निशा के अरमान उलझ कर रह गए हैं। निशा बैतूल की आमला सीट से चुनाव लड़ना चाहती हैं और सरकार उनका इस्तीफा मंजूर नहीं कर रही। दरअसल निशा ने 25 जून को बैतूल में सर्वधर्म शांति सम्मेलन किया। इस आयेजन की अनुमति प्रशासन ने उनको नहीं दी। इसके बाद भी निशा ने ये आयोजन किया। हालांकि निशा इस आयोजन के पहले अपने पद से इस्तीफा दे चुकी थीं। लेकिन फिर भी सरकार ने इस आयोजन पर आपत्ति जताई और इसकी जांच बैठा दी। जांच इस बात की थी कि कहीं ये राजनीतिक आयोजन तो नहीं है। जांच चल रही है और इस्तीफा अटका हुआ है। इस्तीफा मंजूर हुए बिना निशा की चुनाव लड़ने की मंशा पूरी नहीं हो सकती।
न्याय यात्रा से जेल यात्रा तक
निशा बांगरे ने अपना इस्तीफा मंजूर कराने के लिए बैतूल के आमला से 28 सितंबर को न्याय यात्रा शुरु की जो 9 अक्टूबर को भोपाल पहुंची। यहां पर उनके साथ कांग्रेस मैदान में उतर आई। महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष विभा पटेल, विधायक पीसी शर्मा और भोपाल जिला अध्यक्ष मोनू सक्सेना निशा के साथ आंदोलन में शामिल हो गए। यहां पर पुलिस और निशा के समर्थकों में झड़प हो गई। इसमें निशा के कपड़े भी फट गए। निशा समेत अन्य नेताओं को पुलिस ने हिरासत में लेकर जेल भेज दिया। निशा ने जेल में भी भूख हड़ताल शुरु कर दी। जेल से बाहर आकर निशा हाईकोर्ट की शरण में गईं। हाईकोर्ट ने सरकार को निशा के इस्तीफे पर फैसला करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया।
आमला का चुनावी गणित और सियासी पेंच
बैतूल जिले की आमला विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। निशा यहां से चुनाव लड़ने की मंशा जता चुकी हैं। बैतूल जिले में उनका घर है और वे यहां पर पदस्थ भी रही हैं। यहां पर बीजेपी मौजूदा विधायक डॉ. योगेश पंडाग्रे को अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। निशा के साथ कांग्रेस नेताओं की मौजूदगी ये इशारा करती है कि वे आमला से कांग्रेस की उम्मीदवार हो सकती हैं। नामांकन की शुरुआत 21 अक्टूबर से होगी जिसकी आखिरी तारीख 30 अक्टूबर है। अब यहां पर समस्या ये है कि यदि 30 अक्टूबर तक सरकार ने इस्तीफा मंजूर नहीं किया तो निशा की मंशा इस चुनाव में पूरी नहीं हो सकती क्योंकि तब तक नामांकन की तारीख ही निकल जाएगी। निशा चाहती हैं सरकार जल्द उनका इस्तीफा मंजूर करे ताकि वे विधानसभा का चुनाव लड़ सकें। निशा कह चुकी हैं कि यदि वे बीजेपी से चुनाव लड़तीं तो उनका इस्तीफा एक दिन में मंजूर हो जाता। शिवराज सरकार उनके साथ अन्याय कर रही है।