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जून का महीना आम तौर पर अपनी भयंकर गर्मी के लिए जाना जाता है, लेकिन इस बार इसकी शुरुआत क्लासिक हिंदी सिनेमा के फैंस के लिए एक खुशखबरी के साथ हो रही है। बॉलीवुड की महान एक्ट्रेसेज में शुमार रेखा की सबसे यादगार और आइकॉनिक फिल्मों में से एक ‘उमराव जान’ फिर से बड़े पर्दे पर लौट रही है।
1981 में रिलीज हुई फिल्म
1981 में रिलीज हुई फिल्म उमराव जान भारतीय सिनेमा की सबसे यादगार और क्लासिक फिल्मों में से एक मानी जाती है। रेखा के निभाए गए अमीरन के किरदार को आज भी सिनेमा प्रेमी प्यार देते हैं।
फिल्म के निर्देशक मुजफ्फर अली ने इस फिल्म में एक महल जैसे बैकग्राउंड और शाही पहनावे को उतारने के लिए काफी स्ट्रगल किया। फिल्म का बजट बढ़ाने के लिए कई बार दिक्कतें आईं, लेकिन लखनऊ के शाही घरानों से मिली मदद ने इसे एक नई दिशा दी।
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नेशनल मल्टीप्लेक्स सिनेमा की घोषणा
नेशनल मल्टीप्लेक्स सिनेमा चेन, पीवीआर-आईनॉक्स ने सोमवार को घोषणा की कि 1981 में बनी इस क्लासिक फिल्म को 27 जून को फिर से थिएटर में रिलीज किया जाएगा।
फिल्म के पुराने प्रिंट को 4K क्वालिटी में रिस्टोर किया गया है, जिसे अब दर्शक थिएटर में देख सकेंगे। 44 साल बाद फिर से पर्दे पर आ रही 'उमराव जान' को उसकी असली कहानी के लिए आज भी याद किया जाता है। निर्देशक मुजफ्फर अली ने 1840 के दौर की कहानी को जिस खूबसूरती से पर्दे पर उतारा, वह आज भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है।
फिल्म की सक्सेस स्टोरी
उमराव जान के प्रोडक्शन के दौरान बजट की कमी एक बड़ा मुद्दा बन गई थी। निर्देशक मुजफ्फर अली ने खुलासा किया कि फिल्म के सेट पर लखनऊ के शाही परिवारों ने सहायता की थी। इन परिवारों ने उन्हें पुराने, सैकड़ों साल पुराने गहनों और ड्रेसेज से मदद दी।
इसके अलावा, वे शाही परिवारों से विभिन्न ऐतिहासिक वस्त्र और सामान लाकर फिल्म के सेट को असली नवाबी लुक देने में मदद करते थे। फिल्म में रेखा के पहने गए गहने भी शाही परिवारों से लाए गए थे। साथ ही रेखा ने अपनी निजी ज्वेलरी भी इस फिल्म के लिए इस्तेमाल की थी।
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रेखा का रोल
उमराव जान में रेखा के अभिनय को हमेशा याद किया जाएगा। फिल्म में रेखा ने उस समय की तवायफ, अमीरन का रोल निभाया था जिसे बाद में उमराव जान नाम मिलता है।
उनके एक्टिंग और स्ट्रांग पर्सनालिटी ने फिल्म को बड़ी सफलता दिलाई। इसके अलावा, संगीत और आर्ट डाइरेक्शन के लिए भी फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिला था। फिल्म का संगीत खय्याम द्वारा रचित था और इसके गाने आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।
शाही घरानों से मिली मदद
फिल्म के निर्माण के दौरान, लखनऊ के शाही परिवारों ने न सिर्फ गहनों और ड्रेसेज की मदद की, बल्कि अन्य ऐतिहासिक सामान भी उपलब्ध कराया।
इस मदद से फिल्म का सेट बिल्कुल असली लखनऊ के नवाबी माहौल जैसा नजर आया। इसके बावजूद फिल्म का बजट 50 लाख रुपए ही था, जो उस समय के हिसाब से एक बड़ी राशि मानी जाती थी।
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फिल्म की सफलता और पुरस्कार
फिल्म के रिलीज होते ही इसे आलोचकों और दर्शकों से सराहना मिली। रेखा ने अपनी अभिनय की शक्ति और एक्सीलेंस के लिए नेशनल अवॉर्ड जीते। इसके अलावा, संगीतकार खय्याम को बेस्ट म्यूजिक डायरेक्शन और आशा भोंसले को बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगिंग के लिए नेशनल अवॉर्ड मिले।
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