कुछ नेता कहते हैं- मैं लाया, मैं लाया... नरेंद्र सिंह तोमर के इस बयान ने मचाई सियासी हलचल

ग्वालियर-चंबल अंचल में भाजपा की अंदरूनी खींचतान फिर सामने आई। मुरैना में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने बिना नाम लिए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर तंज कसते हुए कहा कि...

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Sourabh Bhatnagar
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ग्वालियर-चंबल अंचल में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अंदरूनी खींचतान एक बार फिर से खुलकर सामने आ गई है। हाल ही में मुरैना में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने जो बयान दिया, उसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।

इस बयान में तोमर ने क्षेत्र के विकास कार्यों के संदर्भ में कथित तौर पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधा, हालांकि उनका नाम सीधे तौर पर नहीं लिया गया था। यह बयान भाजपा में बढ़ती गुटबाजी को उजागर करता है।

कुछ नेता कहते हैं- 'मैं लाया, मैं लाया'

अपने भाषण में नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, "गांवों में सड़क, बिजली और नल-जल जैसी योजनाएं पहुंच रही हैं, लेकिन ये मेरे या मुरैना सांसद के कारण नहीं आई हैं। यह सभी योजनाएं भाजपा सरकार की नीतियों और योजनाओं का परिणाम हैं।"

इस बयान का मतलब यह था कि केंद्रीय मंत्री सिंधिया या मुरैना के सांसद किसी एक व्यक्ति के रूप में इन विकास कार्यों का श्रेय लेने के हकदार नहीं हैं।

तोमर ने इस पर तंज कसते हुए यह भी कहा, "कुछ नेता कहते हैं- 'मैं लाया, मैं लाया', लेकिन उनको अपने आप से ही फुर्सत नहीं मिलती।"

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क्या सिंधिया-तोमर के बीच बढ़ रही खींचतान?

यह बयान तब आया है जब ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंधिया और तोमर गुट के बीच पहले से ही तनाव बढ़ चुका है। भाजपा के अंदरूनी समीकरणों को लेकर पहले से ही सवाल उठ रहे थे और अब तोमर के इस बयान ने इन गुटों के बीच के तनाव को और स्पष्ट कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के बयान पार्टी की छवि पर असर डाल सकते हैं और भाजपा में आगे भी गुटबाजी बढ़ सकती है।

सिंधिया-तोमर के बीच का पूरा मामला शॉर्ट में समझें

  1. तोमर का बयान: मुरैना में भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर ने यह बयान दिया कि क्षेत्र में विकास कार्य भाजपा की नीतियों का परिणाम हैं, न कि किसी एक व्यक्ति का। कहा जा रहा है कि यह बयान केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए दिया गया।

  2. भाजपा में गुटबाजी: तोमर और सिंधिया के बीच ग्वालियर-चंबल अंचल में पहले से ही गुटबाजी चल रही है। इस बयान ने इन गुटों के बीच का तनाव और बढ़ा दिया है, जिससे पार्टी की एकता पर सवाल उठने लगे हैं।

  3. सिंधिया की चुप्पी: इस विवाद पर सिंधिया ने अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। उनका मौन पार्टी में विभाजन और तनाव को और बढ़ा सकता है, जो पार्टी के लिए हानिकारक हो सकता है।

  4. पार्टी की छवि पर असर: इस तरह के बयान भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर। पार्टी के भीतर बढ़ती गुटबाजी कार्यकर्ताओं में भ्रम पैदा कर सकती है।

  5. सिंधिया-तोमर विवाद का इतिहास: 2021 और 2022 में कई घटनाओं के दौरान दोनों नेताओं के बीच विवाद सामने आए थे, जैसे शराब त्रासदी में सिंधिया का पहले प्रभावितों से मिलना और ग्वालियर के मेयर चुनाव में पार्टी की हार, जो गुटबाजी के कारण हुई।

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सिंधिया की चुप्पी

हालांकि, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर से अब तक इस मुद्दे पर कोई बयान सामने नहीं आया है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के बयान से पार्टी में बिखराव और अंदरूनी टकराव बढ़ सकता है। सिंधिया वर्तमान में भाजपा के बड़े नेताओं में से एक हैं और उनकी ग्वालियर-चंबल अंचल समेत कई अन्य क्षेत्रों में मजबूत पकड़ है। ऐसे में पार्टी के ही वरिष्ठ नेता द्वारा इस तरह का बयान दोनों गुटों के बीच टकराव पैदा कर सकता है, जो पार्टी के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

भविष्य में पार्टी की दिशा पर प्रभाव

भविष्य में भाजपा के लिए यह स्थिति मुश्किलें पैदा कर सकती है, खासकर जब पार्टी को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव और अन्य चुनावों का सामना करना है। गुटबाजी पार्टी की एकजुटता पर सवाल उठा सकती है और कार्यकर्ताओं के बीच भी भ्रम पैदा कर सकती है। इस घटनाक्रम ने पार्टी के अंदरूनी समीकरणों को एक बार फिर से उजागर किया है, और इस पर आने वाले समय में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को स्थिति को संभालने की आवश्यकता होगी।

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सिंधिया और तोमर के बीच कब-कब विवाद आया सामने

ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के बीच खींचतान मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में प्रमुख रूप से देखी गई है। 2021 और 2022 में कुछ घटनाएं हुईं जिन्होंने इस राइवलरी को सार्वजनिक किया। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि ये विवाद कितने गंभीर थे। इन घटनाओं ने दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक खींचतान को उजागर किया।

  • 2021 की शराब त्रासदी: 2021 में, मुरैना (नरेंद्र सिंह तोमर के क्षेत्र) में नकली शराब पीने से 25 लोगों की मौत हो गई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रभावित परिवारों से पहले मुलाकात की और वित्तीय सहायता दी, जबकि तोमर ने एक दिन बाद मुलाकात की। ऐसा कहा जाता है कि तोमर इससे (ज्योतिरादित्य सिंधिया के कदम से) खुश नहीं थे। 
  • 2022 के मेयर चुनाव: 2022 में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के मेयर चुनाव में बीजेपी की हार हुई। ग्वालियर सीट पर बीजेपी का 57 साल पुराना किला ढ़ह गया था। इसका मुख्य कारण पार्टी में टिकट वितरण और शीर्ष नेताओं के बीच तनाव था। यही कारण रहा कि ग्वालियर में महापौर के उम्मीदवार का चुनाव बीजेपी द्वारा आखिरी वक्त तक किया गया। तोमर और सिंधिया के बीच विवाद की खबरें तो पहले से ही आती रही थीं, लेकिन इस बार दोनों नेताओं का आपसी मतभेद पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। सिंधिया गुट के नेताओं ने पूरी तरह से प्रचार में भाग नहीं लिया, और इसका असर यह हुआ कि सिंधिया समर्थक कार्यकर्ताओं ने भी चुनाव में अपनी भागीदारी कम कर दी, जिसका परिणाम पार्टी को चुनावी हार के रूप में झेलना पड़ा।
  • 2021 में मोदी कैबिनेट में शामिल होना: जुलाई 2021 में, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोदी कैबिनेट में शामिल किया गया, तो उनकी और तोमर के बीच तनाव की अटकलें लगाई गईं। उनकी सार्वजनिक मुलाकातों को राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने गंभीरता से लिया, हालांकि बाहरी रूप से सब कुछ सामान्य दिखा।

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