Advertisment

एवरेस्ट पर बन रहा है बैक्टीरिया-फंगस का पहाड़, जानिए... -1.4 डिग्री तापमान में भी क्यों नष्ट नहीं हो रहे बैक्टीरिया

author-image
Jitendra Shrivastava
एडिट
New Update
एवरेस्ट पर बन रहा है बैक्टीरिया-फंगस का पहाड़, जानिए... -1.4 डिग्री तापमान में भी क्यों नष्ट नहीं हो रहे बैक्टीरिया

DELHI. दुनिया की छत यानी Mount Everest कुछ सालों बाद सिर्फ बर्फ का पहाड़ नहीं रहेगा। 8.85 किलोमीटर ऊंचे पहाड़ पर लगातार बैक्टीरिया और फंगस जमा हो रहे हैं। वो भी इंसानों के छींक और खांसी से निकलने वाले। वैज्ञानिकों को माउंट एवरेस्ट की मिट्टी में ऐसे बैक्टीरिया और फंगस मिले हैं, जो पर्वतारोहियों की नाक और मुंह से निकले हैं।





कम तापमान में ये बैक्टीरिया-फंगस सदियों तक जीवित रहते हैं





छींक और खांसी से निकले बैक्टीरिया और फंगस सबसे ज्यादा मात्रा में एवरेस्ट के साउथ कोल बेस कैंप और रास्ते में मिले हैं। क्योंकि सबसे ज्यादा पर्वतारोही इसी रास्ते से माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ते हैं। हड्डी जमा देने वाले मौसम और कम तापमान में ये बैक्टीरिया और फंगस कई सदियों तक खुद को जीवित रख सकते हैं। 





महालंगूर हिमाल रेंज में भी रोगाणु सर्वाइव कर रहे हैं

Advertisment





माउंट एवरेस्ट हिमालय के महालंगूर हिमाल रेंज में मौजूद 29,031 फीट ऊंची चोटी है। इसे नेपाली में सागरमाथा और तिब्बती भाषा में चोमोलंगमा बुलाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के माइक्रोबियल इकोलॉजिस्ट निकोलस ड्रैगोन ने कहा कि धरती के सबसे ऊंचे स्थान पर जहां मौसम इतना एक्सट्रीम है, वहां भी रोगाणु सर्वाइव कर रहे हैं। 





यह खबर भी पढ़ें





Advertisment







एवरेस्ट के 7900 फीट पर सबसे ज्यादा बैक्टीरिया-फंगस मिले 





publive-image

Advertisment





निकोलस और उनकी टीम ने एवरेस्ट के 7900 फीट की ऊंचाई पर सबसे ज्यादा बैक्टीरिया-फंगस मिले हैं। आमतौर पर छींक और गले से निकले बैक्टीरिया-फंगस गर्म मौसम की तलाश में रहते हैं। जैसे स्टैफाइलोकोकस और स्ट्रेप्टोकोकस, लेकिन सूखे, कठिन और ठंडे मौसम में भी सर्वाइव कर रहे हैं। फिलहाल सो रहे हैं, लेकिन सही मौसम मिलते ही उभर जाएंगे। 





पर्वतारोही कितने भी मास्क लगा लें, वो रोगाणु छोड़ते ही हैं





निकोलस के दूसरे साथी स्टीवन श्मिट ने कहा कि एवरेस्ट के माइक्रोबायोम में इंसानों द्वारा छोड़े गए बैक्टीरिया-फंगस ने अपनी जगह बना ली है। कोई भी पर्वतारोही कितना भी मास्क, गीयर लगा ले, लेकिन वो ऐसे रोगाणुओं को छोड़ ही देता है। एवरेस्ट से लाई गई मिट्टी के सैंपल की जांच एंडीज, हिमालय और अंटार्कटिका पर स्टडी करने वाले अन्य वैज्ञानिकों ने भी की। उन्होंने भी इंसानों द्वारा छोड़े गए रोगाणुओं के एवरेस्ट पर होने की पुष्टि की है। 

Advertisment





558 फीट पर बेस कैंप लगते हैं यहीं सबसे ज्यादा बैक्टीरिया





publive-image





स्टैफाइलोकोकस और स्ट्रेप्टोकोकस आमतौर पर मिट्टी में मिलता है, लेकिन ये उसी बैक्टीरिया के संबंधी हैं, जो हमारी त्वचा और मुंह के अंदर रहते हैं। बेस से लेकर 8000 फीट तक की ऊंचाई तक ये बहुत ज्यादा है। यहां तक की 558 फीट पर छींक से निकले बैक्टीरिया सबसे ज्यादा पाए गए। आमतौर पर यहीं पर बेस कैंप लगते हैं। इसके बाद लोग चढ़ना शुरू करते हैं। 

Advertisment





-1.4 डिग्री तापमान होने से पानी और बैक्टीरिया दोनों जमे रहते हैं





एवरेस्ट के साउथ कोल का तापमान पूरे साल औसत माइनस 10 डिग्री सेल्सियस रहता है। इससे ऊपर कम ही जाता है। हवा में भी इतने ही तापमान की ठंडी रहती है। अगर तापमान थोड़ा साथ दे और पानी बहने लगे तो बैक्टीरिया को बहाव का मौका मिल जाएगा। साउथ कोल का अधिकतम तापमान अब तक माइनस 1.4 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया है। यानी भविष्य में इस जगह पर जो सूक्ष्मजीव अभी वहां पर एक्टिव नहीं हैं, वो भविष्य में एक्टिव हो सकते हैं।



Mount Everest mountain of bacteria-fungus bacteria in base camp bacteria even in -1.4 degree why bacteria not getting destroyed माउंट एवरेस्ट बैक्टीरिया-फंगस का पहाड़ बेस कैंप में बैक्टीरिया -1.4 डिग्री में भी बैक्टीरिया क्यों नष्ट नहीं हो रहे बैक्टीरिया
Advertisment