भारत में सनातन धर्म के रक्षकों के रूप में नगा संन्यासी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुंभ मेले में इनकी उपस्थिति लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है, लेकिन अफसोस यह है कि हम इनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते। ये संन्यासी न केवल धार्मिक परंपराओं के रक्षक हैं, बल्कि उन्होंने भारत के विभिन्न युद्धों में अपनी वीरता और बलिदान भी दिया है। नगा संन्यासी सनातन धर्म के असली योद्धा हैं जिनकी वजह से हम अपनी संस्कृति और परंपराओं का पालन स्वतंत्र रूप से कर पाते हैं।
साधु ही नहीं योद्धा भी बनते हैं नगा संन्यासी, सीखते हैं शस्त्र-कुश्ती
इतिहास में अहम भूमिका
नगा संन्यासी केवल साधु नहीं, बल्कि वीर योद्धा भी रहे हैं। मुगलों के खिलाफ युद्धों में इनका योगदान अनमोल था। महाराणा प्रताप के संघर्ष से लेकर औरंगजेब के हमलों तक, नगा संन्यासियों ने हमेशा सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। नगा संन्यासी न केवल धार्मिक कर्मकांड में निपुण होते हैं, बल्कि शारीरिक रूप से भी अत्यंत मजबूत और कुशल होते हैं। वे सैन्य पंथ की तरह संगठनबद्ध होते हैं और विभिन्न शस्त्रों में प्रवीण होते हैं। कुंभ मेले में उनकी ताकत और संगठन देखने योग्य होती है।
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नगा संन्यासियों के द्वारा लड़े गए ऐतिहासिक युद्ध
नगा संन्यासियों ने देश के कोने-कोने में कई ऐतिहासिक युद्धों में भाग लिया। राजस्थान के युद्धों से लेकर बंगाल में हुए संघर्षों तक, इन संन्यासियों ने अपनी वीरता से इतिहास को बदलने में मदद की। आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित अखाड़ों में नगा संन्यासी शस्त्र संचालन और व्यायाम करते हैं। ये अखाड़े सैन्य व्यवस्था की तरह होते हैं, जहां उनकी शक्ति और संगठन का प्रदर्शन होता है। आध्यात्मिक परंपरा में आगे बढ़ते जाने पर नगा साधुओं को चार पद प्राप्त होते हैं। जो कि इस प्रकार है...
1. कुटीचक
2. बहूदक
3. हंस
4. परमहंस
बेहद कठिन है नगा साधु का जीवन
नगा साधुओं का जीवन बेहद कठिन होता है। जो कि इनमें संघर्ष का जुनून पैदा करता है। एक योद्धा बनने से पहले नगा संन्यासियों को कड़े प्रशिक्षण से गुजरना होता है। जिसमें महीनों तक एक पैर पर खड़ा होना, गर्मी में आग जलाकर उसके पास बैठना, सर्दियों में गले तक पानी में डूबे रहना, कांटों की शय्या पर सोना, पेड़ पर उल्टा लटककर साधना करना, बिना भोजन पानी के लंबे समय तक रहना, जमीन में गहरे गढ्ढे खोदकर उसमें समाधि लगाकर बैठ जाना जैसे कठिन कार्य किए जाते हैं।
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नगा साधु वस्त्र धारण नहीं करते
नगा साधु वस्त्र धारण नहीं करते हैं। लेकिन समाज में आने पर सामान्य मनुष्यों का ध्यान रखते हुए कौपीन (लंगोटी) पहन लेते हैं। नगा साधु बिस्तर पर नहीं सोते। उन्हें किसी भी मौसम में जमीन पर ही सोना होता है। वह ज्यादा से ज्यादा राख बिठा सकते हैं। जिसपर शयन करने की उन्हें अनुमति है। आज भी हिमालय के सुदूर इलाकों में बर्फीले पहाड़ों पर बिना वस्त्रों के नगा साधु दिखाई दे जाते हैं। शस्त्रधारी नगाओं के अलग अलग गुट हैं। जिन्हें औघड़ी, अवधूत, महंत, कापालिक, श्मशानी आदि नामों से जाना जाता है।
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नगा साधुओं ने अपने प्राणों का बलिदान
नगा साधुओं ने भारत की गुलामी के दिनों में भारी संघर्ष किया है और अपने प्राणों का बलिदान दिया है। लेकिन आजादी प्राप्त होने के बाद देश को सुरक्षित हाथों में जानकर उन्होंने अपनी सैन्य क्षमता को समेट लिया है। अब नगा साधु आध्यात्मिक उन्नति की साधना में ही लीन होते हैं। इन संन्यासियों को संसार से कुछ भी नहीं चाहिए। लेकिन धर्म को बचाए रखने के लिए इन नगा साधुओं के संघर्ष को जानना सभी भारतीयों के लिए बेहद आवश्यक है। क्योंकि उनकी बलिदान का गाथाएं हमें धर्म संरक्षण हेतु संघर्ष के लिए प्रेरित करती हैं।