साधु ही नहीं योद्धा भी बनते हैं नगा संन्यासी, सीखते हैं शस्त्र-कुश्ती

अखाड़ों में साधु बनने की प्रक्रिया कठिन और लंबी होती है। धर्म की रक्षा के लिए नागा साधु शस्त्र और शास्त्रों का प्रशिक्षण लेते हैं। वे 17 श्रृंगार करते हैं और कठोर जांच से गुजरते हैं।

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Ravi Singh
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Prayagraj Mahakumbh Naga Sadhu Warrior Arms Wrestling

Prayagraj Mahakumbh Naga Sadhu Warrior Arms Wrestling Photograph: (the sootr)

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आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों का गठन किया था। यह परंपरा आज भी जारी है। सन्यासी के तौर पर अखाड़ों में प्रवेश पाना सरकारी अधिकारी की नौकरी पाने से भी ज्यादा कठिन है। सन्यासी बनने की एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है। सबसे पहले आने वाले लोगों को अखाड़ों के नियम-कायदे समझने होते हैं। धैर्य की परीक्षा होती है। कई बार तो 10 साल से भी ज्यादा इंतजार करवाया जाता है। इसके बाद आधार कार्ड, वोटर आईडी और एक गारंटर की जरूरत होती है। फिर नए सन्यासियों की गुप्त जांच होती है। सभी चरणों में सफल होने के बाद नगा सन्यासी को दीक्षा दी जाती है। फिर उसके नाम से एक सर्टिफिकेट जारी होता है। इस पर अखाड़े की मुहर लगी होती है।

अखाड़ों की संरचना सेना की तरह

Naga Sadhu Warrior
Naga Sadhu Warrior Photograph: (the sootr)

श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के नगा साधु महेशानंद गिरि बताते हैं कि अखाड़ों की संरचना सेना की तरह होती है। जैसे सैनिक देश के लिए लड़ते हैं, वैसे ही नगा साधु धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं। इसीलिए नगा साधुओं को शास्त्र के साथ शस्त्र की भी शिक्षा दी जाती है। इसके बाद नगा साधु अपनी रुचि के अनुसार शस्त्र या शास्त्र में से किसी एक को चुनते हैं और उस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं। अधिक शिक्षित साधु कथाओं और प्रवचनों के माध्यम से समाज में लोगों को जागरूक करते हैं। जबकि सैनिक साधु अखाड़ों में रहकर साधना करते हैं। ऐसे साधुओं को युद्ध कला, कुश्ती और शस्त्र चलाने की कला सिखाई जाती है। नगा साधु अपने साथ शस्त्र भी रखते हैं। हालांकि, इसका प्रयोग वे सिर्फ धर्म की रक्षा के लिए ही कर सकते हैं।

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नगा साधु दिगंबर ने कहा कि हमें योद्धाओं की तरह प्रशिक्षित किया जाता है। उन्होंने कहा कि अखाड़ों में नगाओं को लाठी चलाना, भाला फेंकना, गोलियां चलाना और कुश्ती करना सिखाया जाता है। उन्होंने कहा कि भविष्य में धर्म को कोई नुकसान न पहुंचे, इसके लिए नगाओं को प्रशिक्षित किया गया है।

नगा संन्यासी बनने के लिए किसी संत की शरण

मणिराज पुरी ने महज 13 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था. उन्होंने कहा कि अब सनातन का उद्देश्य और जन्म कल्याण के लिए सब कुछ त्याग कर निकल पड़े हैं. उन्होंने कहा, कड़ाके की ठंड से बचने के लिए नागा साधु अपने शरीर पर शमशान का भभूत मलते हैं.

पहले किसी अखाड़े में नगा संन्यासी बनने के लिए किसी संत की शरण लेनी पड़ती थी और उसकी सिफारिश पर ही प्रवेश मिलता था। लेकिन कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी अखाड़ों में प्रवेश करने लगे। इसे देखते हुए वर्ष 2000 के बाद अखाड़ों ने संन्यासियों को प्रवेश देने से पहले कड़ी जांच प्रक्रिया अपनानी शुरू कर दी। अब सरकार द्वारा जारी पहचान पत्र के अलावा अखाड़े अपने स्तर पर भी नए संन्यासियों के बारे में पूरी जानकारी जुटाते हैं और फिर उन्हें अखाड़े में शामिल किया जाता है।

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17 श्रृंगार ईश्वर के लिए

उन्होंने कहा,

नगा संन्यासियों के रहस्यों में से एक है उनका श्रृंगार। महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, लेकिन नगा संन्यासी सत्रह श्रृंगार करते हैं। यह श्रृंगार उनके आराध्य को प्रसन्न करने के लिए होता है। भस्म नगा संन्यासियों का सबसे बड़ा आभूषण है और इसके लिए 'काम' का दमन किया जाता है। इसके साथ ही रुद्राक्ष, काजल, माला, कंठी आदि भी संन्यासियों के आभूषण हैं, जिन्हें वे खास मौकों पर पहनते हैं। शाही स्नान भी ऐसा ही एक अवसर है।

 

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