महाकुंभ में अनोखी भक्ति, संगम की रेती पर 13 साल की बेटी का आत्मसमर्पण

प्रयागराज के महाकुंभ में एक दंपति ने अपनी 13 वर्षीय बेटी गौरी का संगम की रेती पर कन्यादान किया, जो आस्था और भक्ति की अनूठी मिसाल बन गई। ये घटना दर्शाती है कि आध्यात्मिकता उम्र की सीमा से परे होती है।

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Siddhi Tamrakar
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प्रयागराज के महाकुंभ में हर बार आस्था और भक्ति के अद्भुत नजारे देखने को मिलते हैं। लाखों लोग संगम की रेती पर अपने पापों से मुक्ति पाने और पुण्य कमाने आते हैं। लेकिन इस बार महाकुंभ में एक ऐसी घटना घटी, जिसने सभी को अचंभित कर दिया। महाकुंभ में एक दंपति ने अपनी 13 वर्षीय बेटी गौरी का कन्यादान संगम की रेती पर कर दिया। यह निर्णय उनके लिए ही नहीं, बल्कि वहां उपस्थित हर किसी के लिए अद्वितीय और प्रेरणादायक बन गया। ये घटना न केवल आस्था और भक्ति की गहराई को दर्शाती है, बल्कि ये भी साबित करती है कि आध्यात्मिकता उम्र की सीमा से परे है। 

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बेटी ने लिया धर्म और भक्ति का संकल्प

गौरी अपने माता-पिता के साथ महाकुंभ में केवल 2-3 दिनों के लिए आई थी। यहां का वातावरण, गंगा-यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम का प्रभाव और साधु-संतों की भक्ति ने गौरी को गहराई तक प्रभावित किया। इसी दौरान अचानक गौरी के मन में इच्छा जाग्रत हुई कि, वो अब घर वापस नहीं जाएगी और अपना जीवन धर्म और आध्यात्म को समर्पित कर देंगी। गौरी ने अपने माता-पिता को इस फैसले के बारे में बताया।

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परिवार ने किया समर्थन

वहीं गौरी के इस निर्णय पर उसके माता-पिता ने उसकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए उसपर किसी भी तरह का दबाव नहीं बनाया। उन्होंने इसे गौरी का आत्मनिर्णय माना और उसका समर्थन किया। संगम की रेती पर विधिवत रूप से गौरी का कन्यादान किया गया और वो आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हो गई। बता दें कि, गौरी का कहना है कि महाकुंभ में आने के बाद उसके मन में एक अलौकिक शक्ति और शांति का अनुभव हुआ, जिसने उसे आध्यात्मिक के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

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आस्था की मिसाल

इस घटना ने महाकुंभ में शामिल श्रद्धालुओं को भक्ति की एक नई प्रेरणा दी है। उनको ये दिखाया कि, भक्ति की शक्ति किसी भी उम्र में जीवन का मार्ग बदल सकती है। गौरी की भक्ति और समर्पण ये दिखाते हैं कि, धर्म और आध्यात्म की शक्ति किसी भी उम्र में जीवन का मार्ग बदल सकती है।

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