अंग्रेजों ने घोषित की थी आपराधिक जाति, जानिए मोनालिसा के पारधी समुदाय की कहानी

मध्य प्रदेश के महेश्वर की मोनालिसा, जो पहले महाकुंभ में माला बेचने गई थीं, अब इंटरनेट स्टार बन गई है। वह पारधी समुदाय से आती हैं, जो पहले अपराध से जुड़ा हुआ था, लेकिन अब समाज में अपनी नई पहचान बना रहा है।

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Ravi Singh
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Prayagraj Maha Kumbh Mona Lisa

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मध्य प्रदेश के महेश्वर की खूबसूरत आंखों वाली मोनालिसा की कहानी उस समय एक अप्रत्याशित मोड़ पर शुरू होती है। जब वह महाकुंभ में माला बेचने आई थी। लेकिन कैमरे का निशाना बनते ही वह कुछ ही समय में इंटरनेट सेंसेशन बन गई। महेश्वर का पारधी समुदाय, जो पहले अपराध और संघर्ष के लिए जाना जाता था, अब अपनी नई पहचान बना रहा है, जिसमें मोनालिसा का नाम भी शामिल है। हालांकि, उसकी बढ़ती प्रसिद्धि अब उसके लिए कुछ मुश्किलें भी लेकर आई है। यह कहानी सिर्फ उसके संघर्ष की नहीं, बल्कि पूरे पारधी समुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक यात्रा की है, जो आज भी अपने अतीत के बोझ से जूझ रहा है।

पारधी समुदाय से आती हैं मोनालिसा

मध्य प्रदेश के महेश्वर की रहने वाली खूबसूरत आंखों वाली मोनालिसा महाकुंभ में माला बेचने आई थीं, लेकिन वो कैमरामैन के जाल में फंस गईं। जहां से अब वो पूरी दुनिया में मशहूर हो गई हैं। हालांकि, ये परेशानी अब उनके लिए परेशानी का सबब बन गई है। महेश्वर की पहचान लोकमाता अहिल्यादेवी, किलों, मंदिरों, साड़ियों और नर्मदा नदी के लिए है, लेकिन अब ये किसी और वजह से चमक रहा है। मोनालिसा उर्फ ​​मोनी मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के किनारे बसे सांस्कृतिक और धार्मिक नगर महेश्वर के वार्ड क्रमांक 9 की रहने वाली हैं। वो पारधी समुदाय से आती हैं।

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गुरिल्ला युद्ध में माहिर हैं पारधी

समुदाय के लोगों का कहना है कि वे मूल रूप से राजस्थानी राजपूत हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश समेत देश के दूसरे हिस्सों में जाकर बस गए हैं। वे जहां भी जाते हैं, उनकी भाषा स्थानीय भाषा में घुलमिल जाती है। पहले वे शिकार और गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे। उनके कुलदेवता मौली माता, कालिका माता, सप्तश्रृंगी माता, वड़ेखान माता और खोडियार माता हैं। कुछ इलाकों में वे अपराध से जुड़े थे लेकिन अब वे मुख्यधारा में आ रहे हैं।

देशभर में बेचते हैं कंठी माला

विश्व हिंदू परिषद के दिनेश चंद्र खटोड़ ने बताया कि पहले यह समुदाय डेरों में रहता था, लेकिन करीब तीन दशक पहले नगर पंचायत अध्यक्ष पार्वती रमेश कुमरावत ने इन्हें धापला रोड, जेल रोड पर जमीन देकर पट्टे दिलवाए। इसके बाद इन्होंने पक्के मकान बना लिए। उन्होंने बताया कि ये लोग अपनी दुनिया में खुश हैं और देशभर में कंठी माला बेचते हैं। इनके समुदाय की लड़कियां बेफिक्र हैं और खुलकर चर्चा करती हैं।

हिंदू धर्म को मानते हैं

वार्ड क्रमांक 9 के विनोद चौहान ने बताया कि इस समुदाय की लड़कियां हर व्यक्ति को मामा कहकर बुलाती हैं। उन्होंने बताया कि खरगोन जिले के छोटी खरगोन और महेश्वर में करीब 700 पारधी लोग रहते हैं, जिनमें से अकेले महेश्वर में 50 परिवारों के 450 लोग रहते हैं। वे जगह-जगह धार्मिक आयोजनों और मेलों में माला, रुद्राक्ष आदि बेचते हैं। वे हिंदू धर्म को मानते हैं और समुदाय में ही विवाह संबंध बनाते हैं।

दोनों तरह के भोजन के शौकीन

इस जनजाति के पुरुष आमतौर पर शर्ट पैंट पहनते हैं जबकि महिलाएं और लड़कियां शर्ट/टी-शर्ट और घाघरा पहनती हैं। वे शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन के शौकीन हैं और अक्सर अपने मनोरंजन के लिए म्यूजिक सिस्टम किराए पर लेकर नाचते हैं। उन्होंने बताया कि आमतौर पर ये लोग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते और बच्चों को बचपन से ही सामान बेचने के धंधे में लगा दिया जाता है। इनका सामान्य ज्ञान जबरदस्त होता है और ये देश भर में यात्रा करने के लिए बसों, ट्रेनों, मार्गों और भौगोलिक स्थितियों को अच्छी तरह से जानते हैं।

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होली से दो-तीन दिन पहले लौट आते हैं महेश्वर 

मोनालिसा के परिवार की आज तीन बीघा जमीन भी है। मोनालिसा के ताऊजी विजय पटेल समाज के पटेल भी हैं। उन्होंने बताया कि वैसे तो यह समुदाय हिंदू धर्म से जुड़े सभी त्यौहार मनाता है, लेकिन होली की बात ही अलग है। वे देश में कहीं भी रहते हों, लेकिन होली से दो-तीन दिन पहले महेश्वर लौट आते हैं। होली के मौके पर वे कुलदेवी को बलि भी चढ़ाते हैं। उन्होंने बताया कि न्याय व्यवस्था से ज्यादा उन्हें पंचायत पर भरोसा है। किसी भी विवाद या झगड़े की स्थिति में यह समुदाय पटेलों को अपनी समस्या बताता है और उसी के अनुसार विवाद का निपटारा होता है।

अंग्रेजों ने घोषित किया आपराधिक जनजाति

ब्रिटिश राज के दौरान पारधियों को 'आपराधिक जनजाति' घोषित किया गया था। 1871 में लागू हुए 'आपराधिक जनजाति अधिनियम' ने करीब 500 जनजातियों को इस दायरे में ला दिया। हालांकि पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर 1952 में इन जनजातियों को 'मुक्त' कर दिया गया, लेकिन समाज में उनके प्रति नजरिया नहीं बदला। आज भी उन्हें 'मुक्त जनजाति' कहा जाता है, जो उनके अतीत की याद दिलाता है। इस कलंक के कारण समाज और सरकार दोनों ने ही उन्हें पूरी तरह स्वीकार नहीं किया है।

Monalisa Das मोनालिसा दास एमपी हिंदी न्यूज Monalisa Prayagraj Mahakumbh 2025 प्रयागराज महाकुंभ