NEW DELHI: देश की राजधानी दिल्ली में लोकसभा (delhi loksabha) की मात्र 7 सीटें हैं, लेकिन यहां अभी तक पिक्चर क्लियर नहीं हो पाई है। दिल्ली पूरे देश का ऐसा पहला राज्य है जहां आम आदमी पार्टी (AAP) व कांग्रेस (congress) में सीट बंटवारे को लेकर समझौता (seat sharing agreement) हुआ है। इसके बावजूद कांग्रेस अभी तक अपने हिस्से की तीन सीटों के प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस दिल्ली की एक सीट पर जेएनयू नेता कन्हैया कुमार (JNU leader kanhaiya kumar) को चुनाव लड़वाना चाहती है, लेकिन लोकल नेताओं में उसको लेकर सहमति नहीं बन पा रही है। दूसरी ओर दिल्ली में बीजेपी (BJP) की बल्ले-बल्ले है। यहां पिछले दो लोकसभा चुनाव में बीजेपी सातों सीटें जीतती रही हैं। विशेष बात यह है कि राजधानी की सातों सीटों पर लोकल नेताओं का दबदबा हमेशा रहा है।
क्या कांग्रेस आज करेगी अपने उम्मीदवारों की घोषणा
दिल्ली में सीट बंटवारे को लेकर आप व कांग्रेस में समझौता हो चुका है। आप अपने हिस्से की चार सीटों पर प्रत्याशियो की घोषणा कर चुकी है, लेकिन कांग्रेस अपने हिस्से की तीन सीटों पर अभी तक उम्मीदवारों का चयन नहीं कर पाई है। वैसे तो दिल्ली में 25 मई को वोटिंग है, इसके बावजूद बीजेपी व आप अपने उम्मीदवारों को लेकर प्रचार में आगे है। खास बात यह हे कि दिल्ली के प्रत्याशियों के चयन को लेकर कांग्रेस दो बार बैठक कर चुकी है, लेकिन दिल्ली का मसल रुक जाता है और अन्य प्रदेश के उम्मीदवारों की घोषणा की जाती रही है। अपने प्रत्याशियों की घोषणा न होने से दिल्ली के पार्टी नेता व कार्यकर्ता बेचैन हैं, क्योंकि वे अभी तक प्रचार की दौड़ में शामिल नहीं हो पाए हैं। वैसे प्रत्याशी चयन को लेकर कांग्रेस की बैठक आज फिर है, उम्मीद है कि इसमें उम्मीदवारों की घोषणा हो सकती है।
जेएनयू के कन्हैया कुमार या फिर लोकल नेता?
दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर एकाध को छोड़कर हमेशा लोकल नेता ही चुनाव लड़ते व जीतते रहे हैं। पहले कांग्रेस की बात करें। कांग्रेस में इस बार एक सीट को लेकर बवाल मचा हुआ है। असल में पार्टी हाईकमान पूर्वी दिल्ली सीट पर जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को लड़ाना चाहता है, क्योंकि बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के गठबंधन के बावजूद उन्हें मनपसंद सीट नहीं मिल पाई। दूसरी ओर दिल्ली के लोकल नेता कन्हैया को लेकर एकमत नहीं है। पहली बात तो यह कि दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली इस सीट पर लड़ना चाहते हैं, दूसरे दिल्ली के कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता मान रहे हैं कि यह वीआईपी सीट नहीं है, जहां कन्हैया जैसे इलीट नेता को खपाया जा सके। इसी के चलते कन्हैया का नाम अभी तक फाइनल नहीं हो पा रहा है। इसलिए माना जा रहा हे कि हाईकमान से उनका नाम फाइनल होने के बावजूद इस लोकसभा सीट का जो मिजाज है, उसके चलते जेएनयून नेता को बहुत मशक्कत करनी होगी।
आप-कांग्रेस का गठबंधन कितना प्रभावी रहेगा
दिल्ली ऐसा राज्य है, जहां पर आप व कांग्रेस में सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन हुआ है। खास बात यह है कि पंजाब तक में दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं। बड़ा सवाल यह है कि दिल्ली में इनका गठजोड़ कामयाब हो पाएगा। पहले राजनीतिक बात करें। अभी हाल तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष लवली समेत पार्टी के अजय माकन, संदीप दीक्षित, अलका लांबा व अन्य कई नेता दिल्ली में आप सीएम अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी को भ्रष्टाचार के मसले पर लगातार घेर रहे थे। कहा जा रहा है कि दिल्ली की कांग्रेस लीडरशिप व कार्यकर्ता आप से गठबंधन के खिलाफ है, लेकिन आलाकमान के निर्णय के आगे उन्हें झुकना पड़ा। अब तकनीकी बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में जितने वोट बीजेपी (56.9 प्रतिशत) को मिले थे, उससे खासे कम वोट कांग्रेस (22.5 प्रतिशत) आप (18.1) को मिले थे। यानि इन दोनों के वोट मिला भी लें तो दोनों पार्टियां बीजेपी से करीब 16 प्रतिशत वोट पीछे थीं। अब इस चुनाव में दोनों पार्टियां मिल तो गई हैं, लेकिन नतीजा बताएगा कि क्या इनके दिल भी मिल गए थे।
दिल्ली में बीजेपी की स्थिति मजबूत दिख रही है
लोकसभा चुनाव को लेकर दिल्ली में पिछले दो लोकसभा चुनावों से बीजेपी का पलड़ा भारी चल रहा है। पिछले दोनों चुनावों में सातों सीटें बीजेपी ने ही जीती हैं। बीजेपी ने इस बार छह सीटों पर जीते अपने नेताओं को टिकट नहीं दी है। सिर्फ भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी को दोबारा टिकट से नवाजा है। बाकी की सभी छह सीटों पर उसने दिल्ली के नेताओं को ही तरजीह दी है। दिल्ली का चुनावी ट्रेंड देखें तो लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी रहते हैं और विधानसभा चुनाव में लोकल मसले। देखना होगा कि इस बार इस ट्रेंड में बदलाव होगा, या वह जारी रहेगा। आपको यह भी बताते चलें कि आम आदमी पार्टी ने भी अपने हिस्से की चार सीटों पर लोकल नेताओं को स्थान दिया है, इसके अलावा उसने पिछले उम्मीदवारों में से किसी को टिकट नहीं दिया है।
केजरीवाल की गिरफ्तारी इस चुनाव में गुल खिला सकती है?
यह सर्वविदित है कि दिल्ली में लोकसभा चुनावों के दौरान राष्ट्रीय मसले ही छाए रहते हैं। इसीलिए पिछले दो चुनाव में बीजेपी ने सभी सीटों पर जीत हासिल की। विधानसभा चुनाव में लोकल मसलों को प्रमुखता देने से ही अरविंद केजरीवाल पिछले दो बार से दिल्ली में आप की सरकार बना रहे हैं। वैसे इससे पहले वर्ष 2013 में उन्होंने कांग्रेस से मिलकर सरकार बनाई थी, लेकिन वह 49 दिन ही चल पाई थी। तो अब देखना होगा कि इस बार सीएम केजरीवाल की गिरफ्तारी इस लोकसभा चुनाव में आप के लिए लाभकारी हो सकती है। इस मसले पर दिल्ली की राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी भ्रष्टाचार के आरोप में हुई है, इसलिए संभावना कम है कि आप लाभ की स्थिति में रहे। दूसरी बात यह है कि दिल्ली का शासन पूरी तरह ठप पड़ा है और आप नेता आरोप-प्रत्यारोप में ही उलझे हुए हैं। सरकारी कामकाज न के बराबर हो रहा है। इसलिए लोग नाराज हैं। लेकिन माना यह भी जा रहा है कि केजरीवाल में सहानुभूति पाने की गजब क्षमता है। ऐसा हो गया तो इस बार दिल्ली लोकसभा चुनाव में आप का खाता खुल सकता है।
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