लोकसभा चुनाव 2024 में कौन-कौन से मुद्दे रहेंगे हावी, आइए जानते हैं चुनावी समर के इन हथियारों को

लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है। चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद, सियासी नेताओं के कुछ प्रमुख मुद्दे ऐसे होंगे जो हर नेताओं के जुंबा पर रहेंगे। आइए नजर डालते हैं चुनावी मुद्दों पर...

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Sandeep Kumar
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लोकसभा चुनाव 2024 के चुनावी मुद्दे

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BHOPAL. लोकसभा चुनाव 2024 का शंखनाद हो चुका है। तमाम मुद्दों को लेकर राजनीतिक दल के नेता जनता के बीच पहुंच रहे हैं, वहीं आज दोपहर तीन बजे के बाद चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद, सियासी नेताओं के कुछ प्रमुख मुद्दे ऐसे होंगे जो हर नेताओं के जुंबा पर रहेंगे। CAA, विकास, राम मंदिर, परिवारवाद, भ्रष्टाचार और विकास समेत कई मुद्दों पर नेता एक दूसरे सियासी तीर छोड़ते नजर आएंगे। 

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चुनाव के बड़े मुद्दे

राम मंदिर: इस चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा छाया रहेगा। एक तरफ बीजेपी भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का श्रेय ले रही है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद लगातार बीजेपी के नेता से लेकर मंत्री तक लगातार अयोध्या के दौरे कर रहे हैं। बीजेपी के नेता अलग-अलग इलाकों से श्रद्धालुओं को दर्शन कराने के लिए ले जा रहे हैं। इस मुद्दे का बीजेपी को लाभ नहीं मिले इसकी पूरी कोशिश विपक्ष की होगी। यही वजह है कभी कोई नेता मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पर सवाल उठाता है तो कभी कोई नेता कहता है कि अब अयोध्या जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या घटकर कुछ हजार में रह गई है। 

विकास: सत्ताधारी बीजेपी पिछले दस साल में हुए विकास के मुद्दे को भी चुनाव के दौरान जमकर उठाएगी। बीते दस साल में बिजली, सड़क, पानी से लेकर तकनीक तक के क्षेत्र में सरकार की उपलब्धियों को चुनाव के दौरान जमकर प्रचारित करेगी। वहीं, विपक्ष विकास के दावों को खोखला बताने के लिए महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाएगा। 

परिवारवाद: चुनाव तारीखों की घोषणा से पहले ही राजनीतिक दलों के बीच परिवारवाद के मुद्दे पर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। एक तरफ बीजेपी विपक्ष को परिवारवादी पार्टियों का गठबंधन बता रही है। दूसरी ओर विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी के परिवार पर सवाल उठा दिया। हालांकि, बीजेपी ने इसे भी अपने पक्ष में करने के लिए ‘मोदी का परिवार’ नाम से सोशल मीडिया कैंपेन तक शुरू कर दिया। 

भ्रष्टाचार: भाजपा विपक्ष को इस मुद्दे पर पूरे चुनाव के दौरान घेरती नजर आएगी। चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं के घरों पर छापे में मिली नोटो की गड्डियों का जिक्र खुद प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों में करते रहे हैं। वहीं, विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि छापे सिर्फ विपक्ष के नेताओं पर पड़ते हैं। जो भ्रष्टाचारी भाजपा में शामिल हो जाता है उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती। चुनाव के दौरान इस तरह के नेताओं के नाम विपक्ष की ओर से भी लगातार लिए जाएंगे। 

बेरोजगारी: बेरोजगारी का मुद्दा भी विपक्ष चुनाव के दौरान जमकर उठा सकता है। भर्ती परिक्षाओं में होने वाले पेपर लीक का मुद्दा भी चुनाव के दौरान विपक्ष द्वारा उठाया जाएगा। वहीं, सत्ता पक्ष पेपर लीक के बाद सरकारों द्वारा की गई कार्रवाई को गिनाएगा। 

जातिगत जनगणना: राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव तक विपक्ष के ज्यादातर नेता  जातिगत जनगणना के मुद्दे को उठाते रहे हैं। चुनाव के दौरान भी विपक्ष इस मुद्दे पर सत्ताधारी भाजपा को घेरने की कोशिश करेगा। वहीं, भाजपा इस मुद्दे पर लगातार कहती रही है कि देश में केवल चार जातियां होती हैं।  ये जातियां गरीब, किसान, महिला और युवा हैं। चुनाव के दौरान भी कुछ इसी तरह के दावे प्रतिदावे किए जाएंगे।

CAA  : बीजेपी के लिए पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ही सीएए लागू करने का वादा एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था। बीजेपी सोचती है कि सीएए हिंदू राष्ट्रवाद के उनके एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है और हिंदू वोटरों को पार्टी के प्रति ध्रुवीकृत किया जा सकता है। दरअसल बीजेपी जानती है कि इस मुद्दे का विपक्ष जमकर विरोध करेगा। विपक्ष जितना इस मुद्दे का विरोध करेगा उतना ही बीजेपी को फायदा पहुंचेगा। बीजेपी यह साबित करने की हर संभव कोशिश करेगी कि विपक्ष एंटी हिंदू है और मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए यह विरोध कर रहा है। फिलहाल देश में CAA कानून लागू है। 

इलेक्टोरल बॉंड: इलेक्टोरल बॉंड का डेटा सामने आने के बाद राजनीतिक फंडिंग को लेकर बहस एक बार फिर से तेज हो गई है। देश के पूर्व वित्त और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मंत्री पी. चिदंबरम मानते हैं कि इलेक्टोरल बॉंड ने बीजेपी को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया है। चिदंबरम ने कहा कि इलेक्टोरल बॉंड  के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद सामने आई जानकारी से उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ, उन्होंने कहा, जिन्होंने बॉंड खरीदे हैं, उन सबके सरकार के साथ नजदीकी रिश्ते रहे हैं। खनन, फर्मा, कंस्ट्रक्शन और हाइड्रोइलेक्ट्रिक कंपनियों के केंद्र सरकार से नज़दीकी रिश्ते होते ही हैं। कई बार कुछ मामलों में ऐसा राज्य सरकारों के साथ भी होता है।

 

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