रबड़ की डमी बॉडी में एनाटॉमी पढ़ाकर डेढ़ हजार छात्रों को आयुर्वेद की BAMS की डिग्री दी, डेड बॉडी देखने को भी नहीं मिली

author-image
Dev Shrimali
एडिट
New Update
रबड़ की डमी बॉडी में एनाटॉमी पढ़ाकर डेढ़ हजार छात्रों को आयुर्वेद की BAMS की डिग्री दी, डेड बॉडी देखने को भी नहीं मिली

ग्वालियर. देश मे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही और सरकारें लोगो को स्वस्थ्य जीवन के लिए चिकित्सा की पुरातन भारतीय पध्दति अपनाने की सीख देने और उसे बढ़ावा देने के नाम पर बड़े -बड़े दावे क़रतीं है लेकिन हकीकत ये है कि जब इस पड़ती के डॉक्टर्स तैयार करने के लिए सुविधाएं देने की बात आती है तो हालात चिंताजनक दिखते  हैं। आयुर्वेदिक शिक्षा देने वाले शासकीय  कॉलेजेज में साधनों के अभाव में छात्र - छात्राओं को आधी अधूरी ही शिक्षा और ज्ञान मिल पा रहा है।



बीस साल से बिना प्रैक्टिकल के बन रहे हैं डॉक्टर्स



 ग्वालियर के आयुर्वेदिक कॉलेज  के हालात तो यही बताते हैं।  हालत ये है कि ग्वालियर के  शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय में पिछले 20 साल के दौरान कोई मानव शव ही उपलब्ध नही कराया जा सका जिससे वह मानव अंग और रोगों का प्रैक्टिकल अध्ययन कर सकें। डेड बॉडी न होने के कारण इस दौरान यहां पढ़ने वाले बीएएमएस के छात्रों को शारीरिक संरचना का ज्ञान और उपचार सीखने से बंचित ही रहना पड़ रहा है । आंकड़े बताते हैं कि  अभी तक इस महाविद्यालय से 1500 से अधिक बीएमएस के ऐसे छात्र हैं जो बिना शारीरिक संरचना संरचना और उपचार के ज्ञान के बिना डिग्री लेकर निकल निकल चुके  हैं। यह न केवल चौंकाने बल्कि चिंता वाली बात भी है।



बगैर कैडेवर के पढ़ाई



छात्रों ने बताया कि ग्वालियर में आयुर्वेदिक महाविद्यालय में अध्ययन करने आये बीएएमएस के छात्रों की पढ़ाई के लिए एनाटॉमी विभाग पिछले 20 सालों से शव (कैडेवर) उपलब्ध नहीं करा पा रहा है और इस उपलब्धता न होने से उन्हें शारीरिक संरचना का पूरा व्यवहारिक ज्ञान और उपचार सीखने को नहीं मिल पा रहा है। बगैर शारीरिक संरचना को प्रैक्टिकल  रूप से जाने किसी का चिकित्सकीय ज्ञान शून्य जैसा होता है ऐसे  में यहां अध्ययनरत छात्रों को डिग्री तो मिल रही है, लेकिन व्यवहारिक और भौतिक ज्ञान के अभाव में वे  मरीज का बेहतर इलाज कैसे कर पाएंगे, यह चिंता की बजह है।



2003 से नहीं मिल सका शव




आयुर्वेदिक कॉलेज में पढ़ रहे स्टूडेंट्स को एनोटॉमी पढ़ाने और मानव शरीर संरचना का प्रैक्टिकल ज्ञान कराना चिकित्सा शिक्षा का एक बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा होता है । चूंकि शव गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय द्वारा प्रदान किया जाता था लेकिन स्थिति ये है कि साल 2003 के बाद आयुर्वेदिक कॉलेज को जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज में शव नहीं दिया है । अब जब  शव ही नहीं मिला तो  आयुर्वेदिक कॉलेज में पढ़ने वाले बीएमएस के छात्रों को शारीरिक संरचना का फिजिकल  ज्ञान और उसके आधार पर किये जाने वाले उपचार को सीखने का मौका नहीं मिल पा रहा है। क्योंकि शव में अंगों के साइज़ उसके फैलाव और संकुचन के आधार पर मौके पर ही तमाम सवाल और जवाब निकलते है जिनके आधार पर बीमारियों और उनके उपचार , औषधि की मात्रा आदि ठाय होती है यह शव विच्छेदन के मौके पर ही सम्भव हो पाता है। डमी में बॉडी के पार्ट सदैव एक जैसे रहते हैं इसलिए इनमे बदलाव न होने से सिर्फ किताबी जानकारी ही मिल पाती है।



डेढ़ हजार छात्र बन चुके हैं डॉक्टर



पिछले लगभग 20 सालों में ग्वालियर के इस शासकीय आयुर्वेदिक कॉलेज से 15 सौ से अधिक छात्र डॉक्टर बन चुके हैं और इन डॉक्टरों ने एक बार भी व्यवहारिक  रूप से मानव शव का बिच्छेदन अपनी आंखों से नहीं किया है । छात्रों को सिर्फ मॉडल की मदद से शारीरिक संरचना की शिक्षा दी गई है।इसको लेकर आयुर्वेदिक महाविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि "कई मर्तबा जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज को पत्र लिख  चुके हैं लेकिन अभी तक उन्हें शव प्राप्त नहीं हो पाया है।



नियम से भी दिक्कत



असली दिक्कत नियम और कानून की भी है ।  आयुर्वेदिक कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ उत्कृष्ट कल्याणकर का कहना है कि आयुर्वेदिक कॉलेज को देहदान का अधिकार नहीं है। इस बजह से आयुर्वेदिक कॉलेज स्वयं शव देह प्राप्त नहीं कर सकते।यह अधिकार सिर्फ  मेडिकल कॉलेज को है। प्रदेश सरकार के जारी आदेश के अनुसार आयुर्वेदिक कॉलेज को शव की उपलब्धता पूर्ति मेडिकल कॉलेज कराएगा,लेकिन इस आदेश का पालन नहीं हो पा रहा है।



मेडिकल कॉलेज का जबाव



 वहीं, जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग अध्यक्ष डॉक्टर सुधीर सक्सेना का कहना है कि आयुर्वेदिक कॉलेज की ओर से मुझे अभी तक संपर्क नहीं किया है। मैं इस मामले को लेकर डीन से बातचीत करूंगा और हर संभव प्रयास करूंगा कि जल्द से जल्द आयुर्वेदिक महाविद्यालय के छात्रों को शव प्राप्त हो सके। लेकिन सवाल तो ये है कि जो डेढ़ हजार डॉक्टर्स बगैर इसके ज्ञान के पासआउट होकर चले गए उनके अधूरे ज्ञान से समाज को जो नुकसान होगा उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा?


ग्वालियर patient Gwalior डॉक्टर्स प्रैक्टिकल आयुर्वेदिक शिक्षा मरीज doctors practical ayurvedic education