नवीन मोदी, Guna. शहर की शान और बुजुर्गों की धरोहर के रूप में कल-कल बहती गुनिया नदी प्रशासन की लापरवाही से बस खत्म होने की कगार पर है। यहां बड़ा सवाल ये उठता है कि शहर के समाजसेवी और जागरुक नागरिक इसको बचाने की जद्दोजहद करते हुए NGT तक पहुंचे। बता दें कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने तीन साल पहले आदेश दिया था लेकिन जिला प्रशासन के जिम्मेदार आदेश को दबाकर बैठे हैं। नतीजा ये कि अवैध अतिक्रमण और कब्जा करने वालों ने इसे समूल खत्म करने का अभियान छेड़ा हुआ है।
गुनिया में हर जगह अतिक्रमण
गुनिया नदी सिंगवासा के गोकुल कुंड से शुरू होकर शहर के मध्य के 7 वार्डों से निकलते हुए पिपरोदा खुर्द में पनरिया और ओड़िया नदी से मिलकर एक त्रिवेणी संगम बनाती है। यहां से इसका नाम नेगरी नदी हो जाता है। इसी नेगरी नदी पर आगे चलकर मकरोदा डैम बना है। गुनिया में हर जगह अतिक्रमण है।
प्रशासन और नगर पालिका की लापरवाही
गुनिया नदी पूरी की पूरी नदी अतिक्रमण की शिकार है। मुख्य रूप से लूशन बगीचे से बांसखेड़ी तक कुल 300 मीटर के हिस्से में तो नदी को कब्जाधारियों ने 10 फीट की नाली ही बना दिया है। इस पूरी नदी पर प्रभावशाली लोगों ने किन-किन स्पॉट पर बाधित किया वो नगर पालिका को मालूम है। लेकिन नतीजा ये है कि कलेक्ट्रेट कार्यालय से आधा किलोमीटर दूर ही लूशन बगीचे से बांसखेड़ी तक नदी कुल 300 मीटर बची है। जिसको बचाने की बजाय प्रशासन लगातार अनदेखी कर रहा है।
गुनिया को बचाने की कवायद
समाजसेवियों का कहना है कि स्वच्छता को लेकर गुनिया में भी सफाई कराई जाए। अतिक्रमण हटाया जाए। नदी के पूरे रकबे में सफाई हो। दोनों तरफ पक्की नाली बने जिससे होकर किनारों के घरों का गंदा पानी गुजर सके। गुनिया से कब्जा और अतिक्रमण हटाने के लिए मुहिम चलना चाहिए या अर्थदंड लगना चाहिए। वहीं प्रशासन और नगर पालिका को अतिक्रमण हटाने को लेकर मुहिम चलानी चाहिए। गुनिया में कचरा फेंकने वालों पर भी जुर्माना लगाना चाहिए।