ये कैसा फसल बीमाः नुकसान के डेढ़ साल बाद भी भुगतान को तरसे 44 लाख किसान

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ये कैसा फसल बीमाः नुकसान के डेढ़ साल बाद भी भुगतान को तरसे 44 लाख किसान

भोपाल। मध्य प्रदेश (MP) में किसानों (farmers) की सरकार (government) होने का दावा करने वाली बीजेपी (BJP) की शिवराज सरकार (Shivraj Sarkar) में 44 लाख किसानों को खरीफ-2020 की फसल बीमा (Crop Insuranc) की करीब 7 हजार करोड़ रुपए राशि का अब तक भुगतान नहीं हो पाया है। वर्ष 2020 में अतिवृष्टि (Heavy Rain) से खराब हुई अपनी फसल की बीमा राशि के लिए कृषि मंत्री कमल पटेल (Agriculture Minister Kamal Patel) का दावा किसानों के लिए अदालत (Court) से मिलने वाली तारीख पर तारीख साबित हो रहा है। उन्होंने पिछले साल 11 नवंबर को उज्जैन (Ujjain) में पार्टी  के दीपावली मिलन समारोह (deepaavalee milan samaaroh) में किसानों की लंबित बीमा राशि हर हाल में एक माह में दिलाने का वादा किया था। लेकिन साल बीत गया पर बीमा राशि किसानों के खातों में नहीं पहुंची। दरअसल इसकी वजह बीमा कंपनी (insurance company) की एक ऐसी शर्त है जिसके पेंच में सरकार उलझ गई है। जिसके चलते किसानों का इंतजार और लंबा होने के पूरे आसार हैं।  



जानिए, बीमा कंपनी की किस शर्त के कारण उलझी सरकार :  द सूत्र की टीम ने जब इस लेटलतीफी के कारणों की पड़ताल की तो पता चला कि सरकार बीमा कंपनी की शर्तों में फंस गई है। बीमा कंपनी एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन लिमिटिड (agriculture insurance corporation ltd) से एग्रीमेंट के मुताबिक फसल का कुल प्रीमियम राशि ( करीब 3 हजार करोड़ रुपए)  से 110 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर क्लेम की राशि का भार सरकार को उठाना होगा। जानकार बताते हैं कि खरीफ-2020 में फसल के नुकसान की राशि बहुत अधिक (करीब 7 हजार करोड़)  है।  बीमा कंपनी की इसी शर्त के कारण अब सरकार को क्लेम की बकाया राशि भार खुद उठाना होगा। यही वजह है कि 11 नवंबर 2021 को उज्जैन के बड़नगर में बीजेपी ग्रामीण के दीपावली मिलन समारोह में किसानों की बकाया बीमा राशि का भुगतान एक महीने में हो जाने की कृषि मंत्री कमल पटेल की घोषणा के बाद भी रकम अब तक खातों में नहीं पहुंची है। विभाग के जानकार इसके पीछे मुख्य कारण सरकार के पास बजट की कमी को बता रहे हैं। सप्लीमेंट्री बजट (supplementary budget) में भी फसल बीमा के भुगतान के लिए अपेक्षित राशि का कोई जिक्र नहीं होने से किसानों की मन में इस बात की आशंका कि यह मामला अभी और खिंच सकता है।  



इस पेंच के कारण फंसा फसल बीमा राशि का भुगतान : दरअसल खरीफ-2020 में फसल बीमा के लिए बुलाए गए टेंडर दो से तीन बार कैंसिल हुए। इस बीच में किसानों ने फसल की बोवनी कर दी। जब तक एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (aic) का टेंडर फाइनल हुआ तब तक प्रदेश में खरीफ की करीब 70 फीसदी फसल ज्यादा बारिश के कारण बर्बाद हो चुकी थी। पहले से घाटे का सौदा देख एआईसी ने बीमा करने से इंकार कर दिया। इसके बाद तय हुआ कि बीमा कंपनी को मिलने वाले प्रीमियम की कुल राशि के मुकाबले क्लेम की राशि यदि 110 प्रतिशत से कम होगी तो बीमा राशि कंपनी देगी। लेकिन यदि क्लेम की राशि  कुल प्रीमियम राशि से 110 प्रतिशत या उससे अधिक हुई तो किसानों को भुगतान का भार सरकार को करना होगा। जानकारों की माने तो खरीफ-2020 में फसल का नुकसान बहुत अधिक है। इसके कारण बीमा राशि के भुगतान का बोझ सरकार पर आ गया है। इसी वजह से डेढ़ साल से किसानों को बीमा राशि नहीं मिल पा रही है। 



कृषि मंत्री के गृह जिले में किसानों को साहूकारों से लेना पड़ा उधार : फसल बीमा राशि का भुगतान अटका होने से किसानों को किस तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है इसे कृषि मंत्री कमल पटेल के गृह जिले हरदा (harda) के ही एक मामले से समझा जा सकता है। हरदा जिले के रहटगांव के छीरपुरा के किसान शैलेंद्र वर्मा (shailendra verma) के पास 4.5 एकड़ जमीन है। उन्हें खरीफ-2020 के बीमा की राशि तो मिली नहीं। इससे पहले 2019 का क्लेम भी नहीं मिला। पूरे परिवार की जिम्मेदारी का बोझ इन्हीं के कंधों पर है। उनके पिता की तबीयत खराब रहती है। बेटा 10वीं में पढ़ता है और बेटी एमबीए कर रही है। इन दोनों की फीस भरने के लिए शैलेंद्र वर्मा को साहूकार से महंगे ब्याज पर पैसा उधार लेना पड़ा। शैलेंद्र वर्मा तल्ख होकर कहते हैं,  फसल बीमा का प्रीमियम तो कंपनी को एकदम समय पर चाहिए। बैंक भी तुरंत प्रीमियम की राशि हमारे खाते से काट लेता है,लेकिन जब देने का समय आता है तो हर बार कोई न कोई बहाना बना दिया जाता है। इसी गांव के एक अन्य नाराज किसान कहते हैं, हम सरकार से कोई भीख नहीं बल्कि अपना जायज हक मांग रहे हैं। 



प्रीमियम 3 हजार करोड़ रु, क्लेम की राशि 7 हजार करोड़ : सूत्रों की मानें तो बीमा कंपनी को खरीफ-2020 में फसल बीमा के लिए प्रीमियम राशि 2800 से 3000 करोड़ तक मिली है। 11 नवंबर 2021 को उज्जैन के बड़नगर में आयोजित समारोह में खुद कृषि मंत्री कमल पटेल इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि फसल बीमा  क्लेम की राशि करीब 7000 करोड़ रु है। मतलब क्लेम की राशि  प्रीमियम की राशि के मुकाबले 200 प्रतिशत से भी कहीं अधिक है। ऐसे में फसल बीमा क्लेम की करीब 4 हजार करोड़ रुपए की राशि का बड़ा बोझ सरकार पर आ रहा है। 



सप्लीमेंट्री बजट में भी फसल बीमा राशि का कोई उल्लेख नहीं : प्रदेश सरकार के दिसंबर 2021 के सप्लीमेंट्री बजट में किसान कल्याण तथा कृषि विकास के लिए 1000 करोड़ की राशि रखी गई है। लेकिन यह पूरी राशि मुख्यमंत्री कृषक फसल उपार्जन सहायता योजना के लिए है। किसान नेता केदार सिरोही का कहना है कि जब किसानों की फसल बीमा राशि सरकार का भुगतान सरकार को करना है तो उसका उल्लेख औऱ राशि का आवंटन बजट में होना चाहिए। वे सवाल उठाते हैं कि आखिर बजट में प्रावधान किए बिना किसानों को करोड़ों की राशि का भुगतान कैसे किया जाएगा। इसलिए पूरी आशंका है कि फरवरी-मार्च में आने वाले सालना बजट से पहले किसानों को फसल बीमा राशि का भुगतान हो पाना बहुत मुश्किल है। कुल मिलाकर अभी किसानों को इसके लिए और इंतजार करना होगा।



मंत्री बोले, एक-दो महीने में हो जाएगा भुगतान : उधर इस पूरे मामले को लेकर द सूत्र के संवाददाता ने कृषि मंत्री कमल पटेल से बात की तो उन्होंने किसानों को खरीफ-2020 की बीमा राशि का भुगतान लेट होने की बात स्वीकार की। लेकिन उन्होंने इसके कई कारण भी गिनाए। उनका कहना है कि पूरे प्रदेश में फसल के नुकसान का आंकलन कराने के बाद ही क्लेम की राशि का भुगतान किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस मसले पर उनकी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बात हो गई है। किसानों को बकाया बीमा राशि का भुगतान एक-दो महीने में हो जाएगा।  केंद्र और राज्य सरकार ने बीमा कंपनी को अपने-अपने हिस्से का पैसा दे दिया है।

 


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