INDORE : खासगी ट्रस्ट की मानी गई सभी संपत्तियां, EOW की जांच भी रोकी, रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट में दर्ज होगा ट्रस्ट

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The Sootr CG
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INDORE : खासगी ट्रस्ट की मानी गई सभी संपत्तियां, EOW की जांच भी रोकी, रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट में दर्ज होगा ट्रस्ट

संजय गुप्ता, INDORE. खासगी ट्रस्ट मामले में मप्र शासन को सुप्रीम झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की सुनवाई करने के बाद फैसला दिया है कि ये सभी संपत्तियां मप्र शासन की नहीं होकर खासगी ट्रस्ट की हैं। ये सार्वजनिक ट्रस्ट है और ट्रस्टियों को एक महीने के अंदर इसे रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट के बाद रजिस्टर्ड करने के लिए आवेदन देना है। ट्रस्ट की जो भी संपत्तियां बिकेगी वो रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट की धारा-14 के तहत ही बिकेगी और इसकी पूरी प्रक्रिया के बाद ही हस्तांतरण हो सकेगा। इसके पूर्व जो संपत्तियां बिकी हैं, उसके लिए रजिस्ट्रार सभी पक्षों को बुलाकर पूरी सुनवाई करेगा और यदि इसमें कुछ गलत पाया जाता है तो जो उचित निर्धारण होगा, वो तय कर इस राशि को ट्रस्टियों से वसूलने की कार्रवाई की जाएगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाईकोर्ट द्वारा ईओडब्ल्यू इंदौर द्वारा जांच करने के आदेश को रोक दिया है। यानि इसमें अब जांच एजेंसी द्वारा कोई जांच नहीं की जाएगी।





संपत्तियां बिकने के लिए बनी सप्लीमेंट्री ट्रस्ट डीड भी वैध





सुप्रीम कोर्ट ने कलेक्टर, कमिश्नर, सीएम के तत्कालीन प्रमुख सचिव द्वारा दिए गए आदेशों को नियम के परे जाकर माना है। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बैंच ने कहा कि इन्हें इसके अधिकार नहीं थे, इसलिए इनका कोई मतलब नहीं है। बैंच में जस्टिस एएम खानविलकर, अभय एस. ओका और सीटी रविकुमार शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही साल 1972 में संपत्तियां बिकने के लिए बनी सप्लीमेंट्री ट्रस्ट डीड को भी वैध करार दिया है, जिसे हाईकोर्ट इंदौर ने शून्य घोषित कर दिया था। साथ ही हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी भी गठित करने के आदेश दिए थे, अब इस पर भी रोक लग गई है।





ये है मामला





दो साल पहले अक्टूबर 2020 में हाईकोर्ट इंदौर ने खासगी ट्रस्ट की सभी संपत्तियों को मप्र शासन की माना था और साथ ही ईओडब्ल्यू की जांच के भी आदेश किए थे। आदेश के बाद ट्रस्ट की करीब 26 राज्यों में फैली 248 संपत्तियों को राजस्व रिकॉर्ड में मप्र शासन के नाम करने की कार्रवाई शुरू की गई थी, कई जगह कब्जे भी लिए गए थे। बाद में ट्रस्टी सतीश मल्होत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे हो गया था। सुनवाई के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दिया है।





कई संपत्तियां बिकने पर सामने आया था मामला





साल 2012 में हरिद्वार के कुशावर्त घाट बिकने की जानकारी सामने आने के बाद ये मामला खुला था, इसमें तत्कालीन सांसद सुमित्रा महाजन ने भी मप्र शासन के सामने मामला उठाया था। इसके बाद तत्कालीन प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने जांच कर विस्तृत रिपोर्ट दी थी और इसे गंभीर मामला बताया था। तत्कालीन हरिद्वार के कमिशनर द्वारा भी इसे गंभीर अनियमितता बताते हुए जांच की अनुशंसा की थी। तभी से मामला चल रहा था।





ऐसे बना था खासगी ट्रस्ट





भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार (तब की मध्य भारत सरकार) के साथ 22 अप्रैल 1948 को लिखे विलेख के आधार पर 7 मई 1949 को हुए समझौते में होलकर स्टेट के तत्कालीन महाराजा यशवंतराव होलकर ने इन संपत्तियों का विलय मध्य प्रदेश सरकार में कर दिया था। इसके साथ ही समझौते के तहत महाराजा यशवंतराव होलकर ने डेड स्टॉक आर्टिकल्स में बेशकीमती ज्वेलरी, सोना, चांदी के आभूषण, बर्तन भी सरकार के पक्ष में हस्तांतरित किए थे, जो बाद में ट्रस्ट की ओर परिवर्तित होनी थी। उस वक्त समझौते के अनुसार इस संपत्तियों की देखरेख का जिम्मा होलकर स्टेट को देते हुए सरकार ने इसके बदले 2 लाख 91 हजार 952 स्टेट को देना स्वीकार किया। इस समझौते के आधार पर 27 जून 1962 को खासगी देवी अहिल्याबाई होलकर चैरिटेबिल ट्रस्ट का निर्माण किया, जो मध्य परदेश सरकार में निहित हुई और इन संपत्तियों की देख-रेख करने लगा। ट्रस्ट की अध्यक्ष महाराजा यशवंत राव होलकर के निधन के बाद उत्तराधिकारी उनकी पुत्री ऊषादेवी होलकर बनीं।



 



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