MP में स्वाथ्य केंद्रों पर लटके ताले, मजबूर मरीज जा रहे झोलाछाप डॉक्टरों के पास

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MP में स्वाथ्य केंद्रों पर लटके ताले, मजबूर मरीज जा रहे झोलाछाप डॉक्टरों के पास

रूचि वर्मा, भोपाल. पिछले 2 सालों में कोरोना द्वारा मचाई तबाही के बावजूद भी मध्यप्रदेश सरकार लोगों के स्वास्थ्य को लेकर सजग नहीं दिखाई दे रही है। सरकारी सिस्टम की इसी लापरवाही और स्टाफ के मनमाने रवैये की वजह से प्रदेश के कई उप स्वास्थ्य केंद्र व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं।





प्रदेश के स्वास्थ्य केंद्रों की हालत बदतर





प्रदेश के गांवों में प्रत्येक 6 हजार की आबादी के बीच उप स्वास्थ्य केंद्र (SC) एवं 20 से 30 हजार की आबादी के बीच प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) की स्थापना इस मकसद से कराई गई थी कि ग्रामीणों को त्वरित प्राथमिक उपचार वहां मिल सके और लोगों को इलाज के लिए शहरों की तरफ रुख ना करना पड़े। परन्तु द सूत्र ने जब मप्र, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी पड़ताल की तो खुलासा हुआ कि 2020 से लेकर इस साल के बजट तक मप्र सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं पर करीब 25 हजार करोड़ रु. पर खर्च करने के बावजूद भी प्रदेश के स्वास्थ्य केंद्रों की हालत बदतर ही है। 





अधिकांश स्वास्थ्य केंद्रों पर लटके ताले





विभागीय देखरेख कम होने से भवन पुराने होने के कारण वर्तमान में भवन खण्डहर हो गये हैं, गंदगी से भर गए हैं। कहीं स्वास्थ्य कर्मचारी एवं अन्य स्टाफ समय पर नहीं जाते तो कहीं पर तो उन्होंने आना-जाना ही बंद कर दिया है। स्थिति ये है कि कई केंद्रों में अधिकांश समय में ताले लटके रहते हैं। इसका असर ये है कि आसपास के ग्रामीण तत्काल इलाज न मिलने के कारण परेशान होते हैं। 





स्वास्थ्य विभाग की वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार प्रदेश में कुल 10 हजार 287 उप स्वास्थ्य केंद्र एवं 1 हजार 266 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैं। प्रदेश के भोपाल, सीहोर, राजगढ़, शाजापुर एवं सतना जिले के ग्रामों से द सूत्र की एक रिपोर्ट





1. बोरदी कलां उप स्वास्थ्य केंद्र दो-दो हफ्ते तक नहीं खुलता





जिला सीहोर, विकासखंड इछावर, ग्राम बोरदी कलां, सुबह 10 बजे





हाल : सीहोर जिले के इछावर विकासखंड के ग्राम बोरदी कलां में चिकित्सा जैसी बुनियादी सेवाएं देने के लिए जिम्मेदार उप स्वास्थ्य केंद्र बदहाल हैं। जब द सूत्र के रिपोर्टर शिवराज सिंह राजपूत उप स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे तो वहां ताला लगा हुआ था एवं स्वास्थ्यकर्मी नदारद थे। ग्रामीणों का कहना है कि यहां स्वास्थ्य केंद्र दो-दो हफ्ते तक नहीं खुलता है। इन हालातों का फायदा गांवों में दुकानें खोलकर बैठे दर्जनभर से अधिक झोलाछाप डॉक्टर उठा रहे हैं, जो मजबूर मरीजों से इलाज के नाम पर मनमाने पैसे वसूलते हैं। चिकित्सा विभाग द्वारा कार्रवाई नहीं होने से इनके हौंसले बुलंद हैं। सीहोर जिले में कुल 163 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं।





2. ब्रिजिशनगर उप स्वास्थ्य केंद्र की बिल्डिंग जर्जर, अफसर बेपरवाह  





जिला सीहोर, विकासखंड इछावर, ग्राम ब्रिजिशनगर, दिन में 12 बजे





हाल: इछावर विकासखंड के ग्राम ब्रिजिशनगर में भी उप स्वास्थ्य केंद्र बंद पड़ा है एवं कभी-कभार ही खुलता है। ब्रिजिशनगर के उप स्वास्थ्य केंद्र की बिल्डिंग भी जर्जर पड़ी हुई है। केंद्र की दीवारों में दरार पड़ गई है एवं छत से प्लास्टर का मटेरियल टूटकर गिरता रहता है। ग्रामीणों के अनुसार ये बिल्डिंग लगभग 50 से 60 साल पुरानी है। इसमें इलाज कराने आने वाले मरीजों की जान हमेशा जोखिम में बनी रहती है। ब्रिजिशनगर सरपंच प्रतिनिधि ज्ञान सिंह राठौर का कहना है कि उप स्वास्थ्य केंद्र की हालत के बारे में अफसर, जनप्रतिनिधि एवं मुख्यमंत्री तक को भी अवगत करा चुके हैं, लेकिन अब तक निराकरण नहीं हुआ है। बोरदी कलां एवं ब्रिजिशनगर दोनों उप स्वास्थ्य केंद्रों में मशीनों सहित अन्य सुविधाओं का अभाव है।  





3. ओड़पुर उपस्वास्थ्य केंद्र ठप्प, दूर गावों में इलाज कराने जाते हैं मरीज





    जिला राजगढ़, ग्राम ओड़पुर, सुबह 9:30 बजे





हाल: राजगढ़ के ओड़पुर ग्राम का उप स्वास्थ्य केंद्र एक ऐसी बिल्डिंग में स्थित हैं जो खंडहर पड़ी हुई है एवं जहां जानवर बांधे जाते हैं। कोई भी स्वास्थ्यकर्मी आज तक उप स्वास्थ्य केंद्र में नहीं आया। अधिकारी यहां की कोई पूछ-परख नहीं रखते हैं। लोगों में आक्रोश है कि उन्हें आज तक इस स्वास्थ्य केंद्र का कोई फायदा नहीं मिला। ठप उप स्वास्थ्य केंद्र के चलते उन्हें करनवास एवं पचोर ग्राम में इलाज के लिए जाना पड़ता है। उनकी मांग है कि उप स्वास्थ्य केंद्र को जल्द से जल्द शुरू करवाया जाए। जब द सूत्र के बी पी गोस्वामी ने स्वास्थ्य विभाग के सीएमएचओ दीपक पिप्पल से बात की तो उन्होंने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए अपने निचले स्तर के डॉक्टर को फोन थमा दिया। वहीं डीपीएम शैलेन्द्र सिंह ने जानकारी से अलग हटकर मामले को जल्द दिखवाने की बात कहते हुए जीर्ण-शीर्ण उप स्वास्थ्य केंद्र को ठीक करवाने की बात कही। राजगढ़ जिले में कुल 215 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं।





4. गुलाना PHC सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में उन्नयित परन्तु अभी तक उसमें कोई मेडिसिन ऑफिसर नहीं





   जिला शाजापुर, तहसील गुलाना



हाल: शाजापुर की तहसील गुलाना के उप स्वास्थ्य केंद्र एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की बदहाली की कहानी भी अलग नहीं है। द सूत्र के सय्यद आफताब अली ने पाया कि उप स्वास्थ्य केंद्र मुख्यतः बंद ही रहता है तथा इसकी बिल्डिंग का फर्श टूटा पड़ा है। बात अगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की करें तो 3 सितंबर 2021 से आज तक कोई भी कम्युनिटी मेडिकल ऑफिसर गुलाना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर नहीं पहुंचा। यहां नोट करने लायक बात ये है कि गुलाना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में उन्नयन हो चुका है। परन्तु उसके बावजूद भी यहां कोई मेडिसिन ऑफिसर नहीं है। वहीं बात शाजापुर जिला मुख्यालय के ट्रामा सेंटर की आती है तो करीब 8 करोड़ की लागत से बने ट्रामा सेंटर को बने हुए करीब 3 वर्ष हो चुके हैं लेकिन अभी तक ट्रामा सेंटर में लिफ्ट की सुविधा बंद पड़ी है। ऐसे में मरीजों, खासकर गर्भवतियों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिले में कुल 117 उप स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या एवं 17 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं।  





5. सतना उप एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टरों में देर से आने और जल्दी जाने की 'लत'





जिला सतना, ग्राम उचेहरा और नागौद, सुबह 9:30 और दोपहर 12:30 बजे तक





हाल: उपरोक्त हाल सतना जिले के स्वास्थ्य केंद्रों का भी है। द सूत्र की टीम के रिपोर्टर सचिन त्रिपाठी जब कुलगढ़ी स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे तो पाया कि ओपीडी का समय सुबह 9 बजे होने के बावजूद दोपहर तक कोई डॉक्टर नहीं था। केवल टेलीमेडिसिन काउंसलर मौजूद थी। वहीं नागौद ब्लॉक के सितपुर उप स्वास्थ्य केंद्र का जायजा लिया गया तो वहां भी ताला लगा था। टीम पहुंचने की जानकारी मिलने पर ANM ने अस्पताल का गेट खोला। इसके बाद जब सोहावल के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लंच टाइम में जब टीम पहुंची तो डॉक्टर मौजूद नहीं थे। लोगों का कहना है कि हर स्वास्थ्य केंद्र के हाल बेहाल है एवं डॉक्टरों को देरी से आने और जल्दी जाने की लत पड़ चुकी है। यहां के बीएमओ से बात की गई तो उन्होंने मीटिंग में होने की बात कही। वहीं सतना के CMHO टेलीफोन पर बातों से टहलाते रहे और बाद में फोन उठाना ही बंद कर दिया। पता हो कि सतना जिले में 309 उप स्वास्थ्य केंद्र और 64 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं।





6. दीपड़ी उप स्वास्थ्य केंद्र पर इमरजेंसी केस के लिए त्वरित सुविधा नहीं, बगरौदा केंद्र में गंदगी की भरमार





    जिला भोपाल, ग्राम दीपड़ी, सुबह 11:30 बजे





हाल: भोपाल जिले के दीपड़ी उप स्वास्थ्य केंद्र पर जब द सूत्र की टीम पहुंची तो केंद्र पर ताला लटका मिला। करीब 40 मिनट इंतजार करने के बाद वहां की कम्युनिटी मेडिकल अफसर मिनाक्षी पटेल केंद्र पर पहुंची। उनसे एवं वहां मौजूद ग्रामीणों से बात करने पर पता चला की एक उपस्वास्थ्य केंद्र की जांच एवं टीकाकरण सेवाएं तो मिल जाती हैं परन्तु एमर्जेन्सी केसे के लिए वहां पर बेड अथवा एम्बुलेंस की त्वरित सुविधा नहीं है जिससे कई बार दिक्कत होती है। सेंटर पर पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है एवं लाइट आती-जाती रहती है। वहीं जब टीम बगरौदा उपस्वास्थ्य केंद्र पर जायजा लेने गई तो केंद्र पर गंदगी की समस्या थी। बगरौदा उपस्वास्थ्य केंद्र मुख्यतः बंद रहता है। भोपाल ग्रामीण जिले में कुल 66 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं।  





मध्य प्रदेश में चिकित्सा संसाधन- जिला चिकित्सालय: 51,  सिविल अस्पताल: 119,  सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र: 475,  PHC: 1266,  SC: 10287





मध्य प्रदेश के हेल्थ सिस्टम में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ का टोटा





नेशनल हेल्थ मिशन (NHM), मध्य प्रदेश ने पूरे हेल्थ सिस्टम के लिए कुल 33 हजार 84 पद स्वीकृत किए हैं इनमें डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, लैब टेक्नीशियन एवं अन्य सपोर्टिंग स्टाफ के पद शामिल है। उसमें से केवल 25 हजार 190 पद भरे हुए हैं और 7 हजार 894 पद खाली हैं। इसमें एएनएम के 1199 और कम्युनिटी हेल्थ अफसर के 2157 पद खाली पड़े हैं। वहीं प्रदेश की एनुअल हेल्थ रिपोर्ट के हिसाब से प्रदेश में एक्सपर्ट डॉक्टरों के 2 हजार 949 पद खाली हैं तथा चिकित्सा अधिकारियों के 1090 पद खाली हैं।





स्वास्थ्य पैरामीटर्स पर मप्र की रैंकिंग खराब







  • ओवरऑल स्वास्थ्य सेवाओं में मप्र की रैंकिंग: 17



  • अंडर-5 बाल मृत्यु दर में मप्र की रैंकिंग: 19


  • ट्यूबरक्लोसिस उपचार सफलता दर में मप्र की रैंकिंग: 19


  • राष्ट्रीय मृत्यु दर में मप्र की रैंकिंग: 17


  • मातृ मृत्यु अनुपात में मप्र की रैकिंग: 15






  • मप्र की 41.5 फीसदी आबादी BP की शिकार    





    मप्र का हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर होना इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि मप्र की एक बड़ी आबादी ग्रामीण एवं शहरी हाई ब्लड प्रेशर और शुगर की बीमारी से पीड़ित है। भारत सरकार के दिसंबर 2021 में हेल्थ इंडेक्स NFHS-5 के मुताबिक मप्र की 41.5 फीसदी आबादी (महिलाएं और पुरूष) ब्लड प्रेशर की बीमारी से जूझ रही है। ये 2020 की तुलना में दोगुना है। वहीं 21.35 फीसदी आबादी शुगर की बीमारी से पीड़ित है।





    A. उप स्वास्थ्य केंद्र





    क्या है: उप स्वास्थ्य केन्द्र ग्रामीण समुदाय को महत्वपूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए अपेक्षाकृत छोटी इकाई पर सबसे पहला सम्पर्क केन्द्र है। उप स्वास्थ्य केंद्र में नियमानुसार 2 मल्टीपर्पज हेल्थ वर्कर (1 महिला एवं 1 पुरुष), एक ANM तथा 1 ऐच्छिक कार्यकर्ता  होना चाहिए। आम तौर पर 5-6 उपकेन्द्र एक PHC से जुड़े होते हैं।





    भूमिका: सामान्य बीमारियों जैसे बुखार, कफ, डायरिया, कृमि, मलेरिया-रोधी उपचार एवं आवश्यकतानुसार रेफर करना। गर्भावस्था, हीमोग्लोबिन, मूत्र परीक्षण, मलेरिया की जांच की सेवाएं देना। टी.बी., कुष्ठ, हाइपरटेंशन, मधुमेह, मिर्गी अस्थमा आदि के रोगियों को दवा वितरण करना। महामारी की स्थिति में PHC को तत्काल सूचना देना। प्रजनन और बाल स्वास्थ्य के लिए कार्य करना। आशा की सहायता करना।





    प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र





    क्या है: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 4-5 उप स्वास्थ्य केंद्र के लिए एक रेफरल यूनिट की तरह काम करती है। एक PHC में 1 मेडिकल प्रभारी तथा 14 अधीनस्थ पैरामेडिकल कर्मचारी होते हैं जिनमें लैब तकनीशियन, लेडी हेल्थ विजिटर, फार्मासिस्ट कम स्टोर कीपर, ड्रेसर, वार्ड बॉय एवं स्वीपर शामिल है।





    भूमिका: PHC का कार्य आम आदमी को स्वास्थ्य तथा अन्य टीकाकरण की जानकारी देना, मामूली रोगों का उपचार; परिवार नियोजन सम्बंधित सेवाएं, गर्भावस्था के दौरान एवं प्रसव के पूर्व देखभाल मुहैया कराना, समय पर रेफरल सेवाएं, पर्यावरण की स्वच्छता, स्वास्थ्य गाईड्स, स्वास्थ्य कर्मचारियों, स्वास्थ्य सहायिका व दाईयों का प्रशिक्षण





    मध्यप्रदेश में एक ठोस हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं





    अच्छा स्वास्थ्य हर नागरिक का मूलभूत अधिकार है और सरकारों की नागरिकों को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी बनती है। परन्तु आजादी के इतने सालों बाद भी हमारे प्रदेश का एक ठोस हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर ही डेवलप नहीं हो सका है। पता हो कि भारत अपनी कुल GDP का एक से डेढ़ परसेंट ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है और उसमें भी राज्य सरकारों के पास स्वास्थ्य बजट के रूप में जो पैसा आता है वो आधा ही खर्च हो पाता है। भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में माना है कि स्वास्थ्य के प्राथमिकता देने के मामले में भारत 189 देशों में से 179वें स्थान पर है।



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