भोपाल. अरुण तिवारी. प्रदेश में युक्तियुक्तकरण के नाम पर सरकार ने 23 हजार से ज्यादा स्कूलों पर ताले लटका दिए। मकसद था प्रदेश में चरमराई प्राथमिक शिक्षा को पटरी पर लाना। युक्तियुक्त करण के तहत दो किलोमीटर के आस—पास के स्कूलों को बड़े स्कूलों में मर्ज करना ताकि वहां छात्र भी पूरे रहें और शिक्षकों की संख्या भी पर्याप्त हो। लेकिन सरकार की ये युक्ति काम नहीं आई। 23 हजार 242 स्कूलों पर ताला लटकाकर उनको पास के बड़े स्कूलों में मर्ज कर दिया। नतीजा ये निकला कि इस अवधि के दौरान सरकारी स्कूलों से चार लाख छात्र कम हो गए जबकि प्रायवेट स्कूलों में पांच लाख छात्रों की संख्या बढ़ गई। मतलब साफ है कि पढ़ाई तो ठीक हुई नहीं उल्टे छात्रों ने स्कूल से नाता तोड़ लिया। ये पूरी जानकारी सरकार की उस रिपोर्ट से सामने आई जो उसने केंद्र सरकार को भेजी है। ये सारी जानकारी कोरोना काल के पहले यानी शैक्षणिक सत्र 2017—18 से 2019—20 के दौरान की है।
ये है स्कूलों की स्थिति
प्रदेश में कुल स्कूलों में 74 फीसदी सरकारी स्कूल हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार 2017—18 में प्रदेश में सरकारी स्कूल 1 लाख 22 हजार 653 थे जबकि प्रायवेट स्कूलों की संख्या 28 हजार 103 थी। 2018-19 में सरकारी स्कूल 1 लाख 22 हजार 56 थे और प्रायवेट स्कूल 29 हजार 182 थे। 2019—20 में सरकारी स्कूल कम होकर 99 हजार 411 बचे जबकि निजी स्कूलों की संख्या बढ़कर 31 हजार 201 हो गई। प्रदेश में 23 फीसदी ही प्रायवेट स्कूल हैं।
ये है छात्रों की स्थिति
2017—18 में सरकारी स्कूलों में 96 लाख 55 हजार 148 छात्र थे। साल 2018—19 में सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या 92 लाख 85 हजार 196 थी। साल 2019—20 में छात्रों की संख्या घटकर 91 लाख 19 हजार 353 रह गई। यानी इन तीन सालों में छात्रों की संख्या 5 लाख 35 हजार 796 घट गई। प्रायवेट स्कूलों की स्थिति पर नजर डालें तो 2017—18 में प्रायवेट स्कूलों में छात्रों की संख्या 67 लाख 81 हजार 573 थी। 2018—19 में छात्रों की संख्या 67 लाख 4 हजार 433 थी। 2019—20 में ये संख्या बढ़कर 72 लाख 88 हजार 66 हो गई। यानी इन तीन सालों में प्रायवेट स्कूलों में 5 लाख 6 हजार 593 छात्र बढ़ गए।
ये स्कूलों में ड्रापआउट की स्थिति
सरकारी स्कूलों में प्रायमरी में 77 लाख 30 हजार 956 छात्र—छात्राओं ने एडमिशन लिया। इनमें 40 लाख 37 हजार 999 छात्र और 36 लाख 92 हजार 957 छात्राएं थीं। दसवीं में ये संख्या 25 लाख 82 हजार 88 हो गई। इनमें 13 लाख 87 हजार 527 छात्र और 11 लाख 94 हजार 561 छात्रा शामिल हैं। बारहवीं में ये संख्या और घट गई। बारहवीं तक आते—आते सरकारी स्कूलों में 13 लाख 72 हजार 24 छात्र ही बचे। इनमें 7 लाख 37 हजार 87 छात्र और 6 लाख 34 हजार 937 छात्राएं शामिल थीं। यानी पहली से बारहवीं तक आते—आते 64 लाख छात्र सरकारी स्कूलों से दूर हो गए।
सुझाव देने वाले बीजेपी नेता ने भी माना फेल व्यवस्था
2017 में बीजेपी के तत्कालीन विधायक हेमंत खंडेलवाल ने स्कूलों का मर्जर कर शिक्षा व्यवस्था सुधारने का पूरा ड्राफ्ट मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सौंपा था। इसमें खंडेलवाल ने बच्चों के लिए बस चलाने का सुझाव भी दिया था। हेमंत खंडेलवाल ने द सूत्र से बातचीत करते हुए कहा कि सरकार की मर्जर की जो प्लानिंग थी वो सही तरीके से अमल में नहीं आई। सरकार ने बच्चों के लिए बस की व्यवस्था भी नहीं की जिससे बच्चे दूसरे स्कूल नहीं जा सके। सरकार ने स्कूलों का मर्जर बिना प्लानिंग के कर दिया। अब सीएम राइस स्कूल उनके सुझावों के आधार पर खोल रहे हैं।
सरकारी बोली प्राइमरी शिक्षा सुधार की कोशिश
स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि स्कूलों में ताला नहीं डाला है बल्कि स्कूलों का आपस में मर्जर किया है। परमार ने कहा कि कई सरकारी स्कूलों में बच्चे कम थे तो कई स्कूलों में शिक्षकों की कमी थी। आस—पास के स्कूलों को एक स्कूल में मर्ज कर ये कोशिश की गई है कि छात्रों की संख्या भी बढ़ जाए और शिक्षकों की कमी भी पूरी हो। इसीलिए ये व्यवस्थाा लागू की है। हम ये मानते हैं कि सरकारी स्कूलों में बड़ी संख्या में ड्रापआउट बच्चे होते हैं लेकिन उनको भी तलाश की स्कूल से जोड़ने की केाशिश की जा रही है। प्राइमरी शिक्षा को सुधारने के लिए ही सीएम राइस स्कूल खोले जा रहे हैं जिसमें कान्वेंट स्कूलों की तर्ज पर केजी वन से पढ़ाई कराई जाएगी।
स्कूलों का रियलटी चैक
सरकार ने ये योजना बड़े जिलों से शुरु की। द सूत्र संवाददाता ओपी नेमा ने जबलपुर में स्कूलों का रियलटी चेक किया। ये जबलपुर के उस स्कूल का नजारा है जिसमें आस—पास के स्कूल मर्ज किए गए हैं। इसमें पढ़ाने के लिए शिक्षक तो हैं लेकिन पढ़ने के लिए छात्र नहीं। एक क्लास में तीन छात्र बैठे हैं और एक टीचर उनको पढ़ा रही है। अगर छात्र ही नए स्कूल पढ़ने नहीं जा रहे हैं तो ऐसी योजना लागू करने का मतलब क्या है। जबलपुर जिले में साल 2018 में ग्रामीण क्षेत्रों के 77 विद्यालयों को मर्ज किया गया जबकि 2018 में ही नगर के 27 स्कूल और 2020 में नगर के ही 40 स्कूलों को आपस में जोड़कर एक स्कूल बनाया गया। सारे स्कूलों की हालत कमोबेश इसी तरह की है। कैमरे के पीछे अधिकारी भी मान रहे हैं कि ये योजना व्यवहारिक नहीं है। एमएलबी स्कूल की प्राचार्य प्रभा मिश्रा कहती हैं कि स्कूलों में शिक्षकों की कमी नहीं है और धीरे—धीरे सब ठीक हो रहा है। सवाल यही है कि शिक्षक भले ही पर्याप्त हों लेकिन जब छात्र नहीं रहेंगे तो फिर तो इसे युक्तियुक्तकरण कैसे कहेंगे।