MP: तीन सालों में 441 सवालों के नहीं आए जवाब, जनता के सात करोड़ बर्बाद

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MP: तीन सालों में 441 सवालों के नहीं आए जवाब, जनता के सात करोड़ बर्बाद

Bhopal. सरकार चाहे वो केंद्र की हो या राज्य की उसकी उस राज्य की जनता के प्रति जवाबदेही होती है। जवाबदेह सरकार वो होती है, जो जनता के टैक्स के पैसे का सही तरीके से इस्तेमाल करें। अब आपको जानकर हैरानी होगी कि सरकार ने इन साढ़े तीन सालों में यानी 2019 से लेकर 2022 तक जनता के टैक्स के करीब 7 करोड़ रुपए बर्बाद कर दिए। अब आपको ये भी जानने की उत्सुकता होगी कि कैसे 7 करोड़ रुपए बर्बाद हो गए तो हम जो आपको बताने जा रहे हैं, उसे सुनकर हैरानी होगी कि विधानसभा (Madhya Pradesh Legislative Assembly) में सवालों के जवाब न देने पर टैक्स पेयर के 7 करोड़ की बर्बादी हुई है।



वीडियो देखे-





क्या है प्रश्नकाल



विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है, जो सरकार की जवाबदेही तय करता है। सरकार के असली परफॉर्मेंस का आंकलन इसी विधानसभा में होता है। जनता से जुड़े मुद्दों पर बहस होती है। जब विधानसभा का सत्र (Assembly session) शुरू होता है तो सदन की कार्यवाही (Proceedings of the House) में पहले नंबर पर होता है, प्रश्नकाल (Question Hour) यानी क्वेचन ऑवर। यही वो प्रश्नकाल होता है, जिसमें विधायक अपने अपने क्षेत्र की समस्याओं को सरकार के सामने उठाते हैं और सरकार (Government) के मंत्रियों से जवाब मांगा जाता है। प्रश्नकाल का समय 1 घंटे के लिए निर्धारित होता है। इस एक घंटे में विधायकों के 25 सवाल लिए जाते हैं। सवालों का चयन लॉटरी के माध्यम से होता है। प्रश्नकाल के दौरान जो भी आसंदी पर बैठा होता है चाहे वो विधानसभा अध्यक्ष (Speaker of the Legislative Assembly) हो, उपाध्यक्ष हो या फिर सभापति सभी की कोशिश होती है कि प्रश्नकाल में ज्यादा से ज्यादा विधायकों को प्रश्न पूछने का मौका मिलें। किसी भी प्रश्नकाल में 25 सवाल तो पूरे नहीं होते लेकिन आंकड़ा 10 से 15 सवालों के बीच रहता है। प्रश्नकाल के बाद विधानसभा में बाकी सरकारी काम निपटाए जाते हैं।



ऐसे बर्बाद हुए 7 करोड़



विधानसभा की पूरी कार्यवाही टैक्सपेयर के पैसों से ही संचालित होती है। इसलिए विधानसभा में कामकाज नहीं होता है तो ये जनता के पैसे की बर्बादी ही होती है। मंत्री-विधायकों को जो भी सुविधाएं मिल रही हैं, वो सब आपके और हमारे पैसों से ही मिल रही हैं। विधानसभा सत्र जब शुरू होता है तो विधानसभा की एक मिनट की कार्यवाही पर जनता का 66 हजार रुपए खर्च होता है। अब जिस 1 घंटे के प्रश्नकाल की हमने बात की उसमें जनता का 39 लाख 60 हजार रुपए खर्च होता है। यानी 1 घंटे में करीब 40 लाख रुपए अब प्रश्नकाल में 25 सवाल होते हैं तो एक सवाल पर जनता का पैसा खर्च होता है 1 लाख 60 हजार रुपए यानी 1 विधायक के सवाल की कीमत है करीब डेढ़ लाख रुपए। इतने महंगे सवाल का जवाब सरकार की तरफ से दिया जाता है। सरकार सवाल का जवाब देती है तो माना जा सकता है डेढ़ लाख रुपए का सही इस्तेमाल हुआ। क्योंकि सब कुछ रिकॉर्ड में दर्ज होता है। यदि जवाब नहीं दिया जाए तो फिर डेढ़ लाख रुपए तो पानी में गए क्योंकि न तो जवाब मिला न ही जनता की समस्या का हल हुआ। अब ऐसे एक लाख 60 हजार रुपए कीमत के 441 सवालों का सरकार ने पिछले तीन सालों में जवाब नहीं दिया है। विधानसभा के बजट सत्र यानी मार्च 2022 में ये जानकारी खुद सदन के पटल पर रखी गई। इस रिकॉर्ड के मुताबिक 15 वीं विधानसभा में अब तक हुए सत्रों में 441 सवालों का जवाब नहीं है। कुछ सवालों की आधी अधूरी जानकारी दी गई है। अब एक सवाल एक लाख 60 हजार रुपए का है तो 441 सवालों की कीमत हुई 7 करोड़ 5 लाख रुपए ये जनता का पैसा है, जो बर्बाद हो गया। 



अब आपको बताते हैं कि आखिरकार वो कौन से विभाग हैं, इन विभागों के कौन से मंत्री हैं, जिन्होंने सवालों का जवाब न देकर जनता का पैसा बर्बाद किया। आपको टॉप टेन विभाग और उनके मंत्रियों के नाम बताते हैं। सबसे ज्यादा खराब परफॉर्मेंस तो कृषि मंत्री कमल पटेल और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का है। इसके अलावा खुद मुख्यमंत्री शिवराज चौहान (Chief Minister Shivraj Chouhan) के पास जो विभाग हैं, उन विभागों के सवालों का भी जवाब नहीं दिया गया है। 



जवाब न देने वाले टॉप टेन विभाग और उनके मंत्री— 




  • कुल अनुत्तरित सवाल — 441


  • कृषि विभाग (कमल पटेल) — 132

  • गृह और विधि विधायी (नरोत्तम मिश्रा) — 100

  • सामान्य प्रशासन (शिवराज सिंह चौहान) — 80

  • जनजातिय और अनुसूचित जाति (मीना सिंह) — 40

  • नगरीय प्रशासन विभाग (भूपेंद्र सिंह) — 21

  • परिवहन विभाग (गोविंद राजपूत) — 18

  • सहकारिता विभाग (अरविंद भदौरिया) — 12

  • वित्त एवं आर्थिक सांख्यिकी (जगदीश देवड़ा) — 12

  • खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति (बिसाहूलाल सिंह) —  8

  • स्कूल शिक्षा विभाग (इंदर सिंह परमार) — 6



  • जनहित से जुड़े कुछ सवाल




    • क्या सरकार केंद्र प्रवर्त्तित योजनाओं के तहत गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोग और अन्य हितग्राहियों को सस्ता राशन गेहूं,चावल,नमक,शक्कर और तेल वितरित किया गया है। 


  • आदिवासी क्षेत्रों से हर साल बड़ी मात्रा में लोग पलायन कर रहे हैं, क्या इनको रोकने के लिए सरकार की कोई योजना है। 

  • क्या मनरेगा के तहत किए गए कामों में मशीनों का उपयोग कर भ्रष्टाचार किया गया है। 

  • समर्थन मूल्य पर कितनी—कितनी मात्रा में कितनी—कितनी राशि का धान का उपार्जन किया गया है। 

  • सहकारिता विभाग के कितने अधिकारियों पर ईओडब्ल्यू में प्रकरण चल रहे हैं। 

  • क्या अवैध रेत उल्खनन करने वालों के ट्रक,जेसीबी,डंपर जब्त किए गए हैंं



  • क्या कहते हैं विधानसभा अध्यक्ष



    अब विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का भी कहना है कि सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वो सदन में सवालों के जवाब दें। लेकिन अध्यक्ष का ये भी कहना है कि यदि विधायकों को जवाब नहीं मिलता तो वो प्रश्न और संदर्भ समिति के सामने अपनी बात रख सकते हैं। वहीं सवालों के जवाब ना देने और सत्र की अवधि छोटे होने पर विपक्ष सवाल उठाता है। नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह का आरोप है कि सरकार जनहित के सवालों से बचना चाहती है।



    कम रही सत्रों की अवधि



    दूसरी ओर देखा जाए तो 15 वीं विधानसभा में सत्र का अवधि भी बेहद कम रही है। 15 वीं विधानसभा में अबतक 11 सत्र हुए हैं, जिसमें से 9 सत्र ऐसे हैं जिनकी कार्यवाही एक हफ्ते भी नहीं चली।



    15 वीं विधानसभा का हाल-




    • पहला सत्र- जनवरी 2019 (4 दिन)


  • दूसरा सत्र- फरवरी 2019 (3 दिन)

  • तीसरा सत्र- जुलाई 2019 (13 दिन)

  • चौथा सत्र- दिसंबर-जनवरी 2020 (6 दिन)

  • पांचवां सत्र- मार्च-अप्रैल 2020 (2 दिन)

  • छटवां सत्र- मार्च 2020 (1 दिन)

  • सातवां सत्र- सितंबर 2020 (1 दिन)

  • आठवां सत्र- फरवरी-मार्च 2021 (13 दिन)

  • नौंवां सत्र- अगस्त 2021 (दो दिन)

  • दसवां सत्र- दिसंबर 2021 (5 दिन)

  • ग्यारहवां सत्र- मार्च 2022 (5 दिन)


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