सुनील शुक्ला/योगेश राठौर. स्वच्छता सर्वे में नंबर 1 का चौका लगाने के बाद वॉटर प्लस सिटी का तमगा हासिल करने का प्रयोग इंदौरवासियों पर भारी पड़ रहा है। वॉटर प्लस का अवॉर्ड हासिल करने के लिए इंदौर नगर निगम प्रशासन को शहर से निकलने वाले सीवेज को 27 नालों और 2 नदियों में जाने से रोकना था। इसके लिए उसने नाला टैपिंग करने और शहर के बीच से बहने वाली नदियों पर रिटेनिंग वॉल खड़ी करने के लिए करीब 300 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। इससे इंदौर को वॉटर प्लस का अवॉर्ड तो मिल गया लेकिन इसका खामियाजा अब शहर की जनता को भुगतना पड़ रहा है। सीवेज आज भी नदी-नालों में मिल रहा है और अब डेढ़-दो घंटे की बारिश में ही शहर में जगह-जगह घुटनों तक पानी भरने लगा है।
आखिर वॉटर प्लस है क्या?
देश में स्वच्छ भारत अभियान पर अमल के लिए 2014 में स्वच्छ भारत मिशन बनाया गया। इस मिशन के तहत हर साल हर शहर-कस्बे में स्वच्छता सर्वे कर उनकी रैंकिंग जारी की जाती है। इसी सर्वे के अंतर्गत वॉटर प्लस कैटेगरी का पैमाना शामिल किया गया। इसके लिए जरूरी है कि शहर से निकलने वाला सीवेज का पानी और अपशिष्ट (Waste) ट्रीटमेंट के बाद ही बाहर छोड़ा जाए। इसके अलावा ट्रीटेड सीवेज वॉटर की कम से कम 30% मात्रा रिसाइकल कर निर्माण कार्य या बगीचों की सिंचाई में उपयोग में आए। इंदौर स्वच्छता सर्वे के इसी पैमाने पर देश के 250 शहरों में अव्वल आया।
क्या हैं वॉटर प्लस होने के मायने?
1.शहर के सभी मकान और परिसर ड्रेनेज लाइन या सेप्टिक टैंक से कनेक्टेड होने चाहिए। किसी भी घर का सीवरेज खुले में नहीं बहना चाहिए।
2. नालों और नदी में किसी प्रकार का सूखा कचरा तैरता नजर नहीं आना चाहिए।
3. सीवरेज वाटर का ट्रीटमेंट कर कम से कम 30% पानी सड़क धुलाई, गार्डन, खेती समेत अन्य कार्यों में उपयोग में आए।
4. सभी ड्रेनेज के ढक्कन बंद होने चाहिए और उनसे गंदा पानी बहकर सड़क पर नहीं आना चाहिए।
5. चैंबर और मैन होल साल में कम से कम एक बार साफ होने चाहिए।
इंदौर नगर निगम का अपना दावा
इंदौर नगर निगम प्रशासन का दावा है कि उसने वॉटर प्लस का सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए शहर में खुले में बहने वाले सीवेज वॉटर के 1746 स्थानों की पहचान कर उन्हें सीवर नेटवर्क से जोड़ा। इन्हीं जगहों से रोजाना सीवेज वॉटर बहकर शहर के 27 छोटे-बड़े नालों से शहर के बीच बहने वाली कान्ह और सरस्वती नदी में मिलता था। निगम कमिश्नर प्रतिभा पॉल की मानें तो इंदौर के घरों से रोजाना निकलने वाला 312 एमएलडी (मिलियंस ऑफ लीटर पर डे-MLD) सीवेज वॉटर अब ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के जरिए ही छोड़ा जा रहा है।
हकीकत जरा हटके हैं
वॉटर प्लस का अवॉर्ड मिलने के बाद शहर की मैदानी हकीकत कुछ और है। सीवेज और ड्रेनेज की गंदगी आज चंद्रभागा पुल हनुमान मंदिर के पास सरस्वती नदी में मिल रही है। शहर के बीच बहने वाली यही वो नदी है, जिसे निगम प्रशासन वॉटर प्लस सिटी के अवार्ड के लिए कागज पर सीवेज मुक्त साबित कर निर्मल और स्वच्छ बना चुका है। पुजारी सतनाम गुरु नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि दावा है कि सरस्वती नदी साफ हो चुकी है, पर अभी भी खासी गंदगी है। मल-मूत्र उसी में जा रहा है। कई बार शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। एक पीड़ित नीलम पुरोहित का कहना है कि गंदा पानी घर के सामने बह रहा है। वीडियो बनाकर निगम को भेजे। लोग आए, लेकिन चलताऊ तरह से ठीक कर दिया। अब गंदा पानी सरस्वती नदी में मिल रहा है।
सरकार के दावे से सामाजिक कार्यकर्ता भी हैरान
सोशल एक्टिविस्ट किशोर कोडवानी का कहना है कि कचरा अभी भी डंप किया जा रहा है। क्या नदियों में अभी जो सीवेज का पानी डाला जा रहा है, वो साफ है? सैकड़ों करोड़ खर्च कर आपने नाला टैपिंग करने का दावा किया जा रहा है। वास्तव में नाला है क्या? ये वर्षा जल की नदियां हैं, जिन्हें गंदा पानी डालकर नाला बनाया। इंदौर में 11 नदियां है, लेकिन प्रशासन ये तय ही नहीं कर पाया कि कितनी नदियां हैं?
सच ये है
वॉटर प्लस के तमगे के लिए निगम के जल कार्य विभाग के इंजीनियरों ने नाला टैपिंग के नाम पर बारिश का पानी निकलने के रास्ते भी बंद कर दिए। नतीजा यह हुआ कि इस मॉनसून में डेढ़-दो घंटे की बारिश में भी शहर के कई इलाकों में घुटने-घुटने तक पानी भर गया। पिछले 1-2 सितंबर की दरमियानी रात में सिर्फ ढाई इंच की बारिश में आधा शहर डूबा नजर आया। शहर के मोती तबेला, पलासिया, अन्नपूर्णा रोड, आजाद नगर, गीता भवन और डीआईजी ऑफिस के पास रहने वाले सैकड़ों लोगों के मकानों और दुकानों में पानी भर गया। इससे पहले शहर में इतनी बारिश होने पर कभी भी इतने बड़े पैमाने पर पानी नहीं भरा। जानकार इस स्थिति के लिए निगम के अफसरों की अदूरदर्शिता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।