क्यों है सरपंच का क्रेज: ग्राम सरकार में करोड़ों का बजट, राजनीतिक लाभ अलग !

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क्यों है सरपंच का क्रेज: ग्राम सरकार में करोड़ों का बजट, राजनीतिक लाभ अलग !

भोपाल. मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव (MP Panchayat Election) का बिगुल बज गया है। प्रदेश में 22 हजार 695 ग्राम पंचायतें हैं, जहां चुनाव होने हैं। पंचायत में कोई भी काम सरपंच की अनुशंसा या अनुमोदन के बगैर नहीं हो सकता। यही कारण है कि पंचायत चुनाव में सरपंच (Sarpanch) पद के पाने के लिए काफी जोर आजमाईश होती है, जो इस बार भी होगी। गांव की सरकार बनाने के लिए समीकरण बनना शुरू हो गए हैं। जिसे लेकर गांव की चौपालों पर चर्चा भी तेज हो गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि सरपंच पद में ऐसा क्या आकर्षण है, जिसके कारण ग्रामीण इसके लिए सारे पैंतरे आजमा लेते हैं? वह क्या चीज है जिसके कारण गांव के संभ्रांत परिवार इससे अपना मोह नहीं छुड़ा पाते। क्योंकि यह देखा गया है कि कई बार इन चुनाव में ग्रामीणों के बीच आपसी रंजिश इतनी बढ़ जाती है कि पीढ़ियों तक यह चलती रहती है। महिला सीट आने पर घर की महिलाओं को चुनाव लड़ाया जाता है। सीट आरक्षित (Sarpanch Reserve Seat) होने पर घर के ही आरक्षित वर्ग के कर्मचारी यहां तक की चरवाहे तक को चुनाव लड़ाकर सरपंच बना दिया जाता है, लेकिन सरपंची अपने हाथ से कोई जाने नहीं देना चाहता। जब द सूत्र ने इसकी पड़ताल की तो सच सामने आया।

सरपंच, जनपद और जिला पंचायत सदस्य का मानदेय

सरपंच को मानदेय के तौर पर 1750 रुपए महीना मिलता है। जबकि जनपद सदस्य मानदेय के तौर पर 1500 रुपए प्रति माह मिलते हैं। इसके अलावा जिला पंचायत सदस्य को 7 हजार 500 रुपए हर महीने के मिलते हैं। साथ ही अलग-अलग वेतन भत्तों के रूप में आर्थिक फायदा भी पंचायत की तरफ से इन्हें मिलता है। 

15 लाख से 2 करोड़ तक का बजट

सरपंच ग्रामसभा द्वारा निर्वाचित ग्राम पंचायत का सर्वोच्च प्रतिनिधि होता है। पंचायती राज अधिनियम-1992 (Panchayati Raj Act-1992) के बाद सरपंच पद का महत्व और भी बढ़ गया है। केंद्र और राज्य सरकार ग्राम विकास की तमाम योजनाएं पंचायतों के जरिए संचालित करती है। वर्तमान समय में पंचायतों के विकास के लिए हर साल 15 लाख से 2 करोड़ रुपए तक का बजट (Sarpanch Budget) ग्राम पंचायत में आता है। इसमें अकेले 14वे-15वे वित्त आयोग (Finance Commission) के अंतर्गत निर्माण कार्य के लिए 10 लाख से लेकर 40 लाख रूपए तक दिए जाते हैं, शेष राशि रोजगार (employment) के कामों जैसे मनरेगा (Manrega) समेत अन्य योजना के लिए होती है। जो पंचायत क्षेत्रफल और जनसंख्या के आधार पर जितनी बड़ी होगी, उसे उतनी अधिक राशि मिलेगी।

राज्य और केंद्र वित्त आयोग इसी फॉर्मूले के आधार पर पंचायत को योजनाओं में प्राथमिकता देकर राशि का आवंटन करता है। कुल मिलाकर बजट की यही राशि सरपंच पद के लिए सबसे बड़े आकर्षण का केंद्र रहती है। पंचायत में संचालित योजनाओं में आवास योजना, सड़क निर्माण या सुदृढ़ीकरण, भवन, कक्ष या चबूतरा निर्माण, स्वच्छ भारत मिशन, मनरेगा, आदर्श ग्राम योजना (Model Village Scheme), पंच परमेश्वर, हाट बाजार योजना, पंचायत भवन मरम्मत समेत अन्य योजनाएं शामिल हैं। 

मिलता है राजनीति लाभ

सरपंच पद पाने के लिए दूसरा सबसे बड़ा कारण राजनीतिक लाभ होता है। आज भी अधिकांश वोटर गांव के है। यही कारण है कि विधानसभा (MP Assembly election) और लोकसभा चुनाव में इन सरपंचों की पूछ परख काफी बढ़ जाती है। बड़े चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने पर संगठनों में बड़ा पद मिल जाता है, जिसकी आड़ में कई काम निकल जाते हैं। विधायक, सांसद से नजदीकी होने से अपने हित साधने में आसानी होती है।  

सम्मानजनक पद भी है आकर्षण का बड़ा कारण

तीसरा कारण स्थानीय लोकतंत्र (Democracy) में सरपंच का पद बहुत ही प्रतिष्ठित और गरिमापूर्ण होना है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद-243 (Article 243) के तहत पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामसभा और ग्राम पंचायत के गठन का प्रावधान किया गया है। जिस तरह से प्रदेश में मंत्रिमंडल का प्रमुख मुख्यमंत्री होता हैं, उसी तरह ग्रामसभा और पंचायत का प्रमुख सरपंच होता है। इसी कारण सरपंच और ग्राम पंचायत की भूमिका गांव के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। सम्मानजनक पद होने से भी ग्रामीण इस पद को पाने के लिए आकर्षित होते हैं। 

सरपंच की शक्तियां  

ग्राम पंचायत की कार्यकारी और वित्तीय शक्तियां सरपंच के पास होती है। ग्राम पंचायत के अधीन कार्यरत कर्मचारियों के कार्यों पर भी प्रशासकीय देखरेख और नियन्त्रण रखने का अधिकार सरपंच (Sarpanch power) को है। वैसे तो वेतन भत्तों पर साइन करने का अधिकार सरपंच को नहीं है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं (Anganwadi workers), आशा व स्वास्थ कार्यकर्ता, पंचायत कर्मी और पटवारी के कार्यों की मॉनिटरिंग कर गड़बड़ी होने पर इसके खिलाफ उच्चाधिकारी को अनुशंसा कर सकता है। 

सरपंच की जिम्मेदारियां 

गांव का मुखिया होने के नाते सरंपच ग्रामसभा की बैठकों की भी अध्यक्षता करता है। प्रतिवर्ष ग्रामसभा की कम से कम 4 बैठकें आयोजित करना सरपंच का अनिवार्य दायित्व है। पंचायत राज अधिनियम-1992 के अनुसार सरपंच ग्रामसभा की बैठक आयोजित करने के लिए भी बाध्य है। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो ग्रामसभा द्वारा इसकी शिकायत उच्च अधिकारियों से की जा सकती है। 

सरपंच के कार्य  

सरपंच गांव का मुखिया होता है उसे गांव के मुखिया के रूप में गांव की भलाई के लिए फैसले लेने होते हैं। गांव में सड़कों का रखरखाव, पशुपालन व्यवसाय को बढ़ावा देना, सिंचाई के साधन की व्यवस्था, दाह संस्कार व कब्रिस्तान का रखरखाव करना, प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देना, खेल का मैदान व खेल को बढ़ावा देना, स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ाना, आंगनवाड़ी केंद्र को सुचारु रूप से चलाने में मदद करना।

सरपंच अच्छे से काम करें तो देवता की तरह पूजा जा सकता है

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग (Panchayat and Rural Development Department) में कमिश्नर रहीं रिटायर्ड IAS वीणा घाणेकर ने बताया कि गांव के लिहाज से सरपंच पद बहुत ही गरिमापूर्ण है, वह सही से काम करे तो गांव में देवता की तरह पूजा जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य है कि ऐसा कम ही देखने को मिलता है। सरपंच पद का मुख्य आकर्षण बजट से जुड़ा है। पहले जो बजट हजारों में था वह लाखों में हुआ। फिर ये करोड़ तक पहुंच गया है। ज्यादा बजट मतलब ज्यादा कमीशन या भ्रष्टाचार (Corruption)। इसी वजह से सरपंच पद के लिए आकर्षण बढ़ा है, जो कि गलत है। वरना आप बताइए सरपंच के चुनाव में लोग हजारों और लाखों रूपए क्यों फूंक देते हैं। पांच साल की सरपंची के बाद दो से तीन बुलेरो आ जाती है, ये क्या है?

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