रवींद्र दुबे, जबलपुर. मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर घमासान जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) के मामलों की जल्द सुनवाई के निर्देश दिए हैं। साथ ही शीर्ष अदालत ने आयुष विभाग (Department of AYUSH) में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण के मामले में भी दखल देने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने कहा कि सरकार अपनी व्यथा हाईकोर्ट को सुनाए। दरअसल, सरकार ने आयुष विभाग की परीक्षा में 27 फीसदी आरक्षण दिया था। लेकिन हाईकोर्ट ने इसे 14 फीसदी ही रखने का आदेश जारी किया था। हाईकोर्ट का ये आदेश सीट एलॉटमेंट होने के दो दिन बाद आया था। जबकि दो पहले ही सीटों का बंटवारा 27 फीसदी आरक्षण के साथ हो चुका था।
ये है पूरा मामला: सरकार ने 8 मार्च 2019 को ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था। 14 अक्टूबर 2019 को कानून पूरे प्रदेश में लागू हो गया। मार्च से ही ये कानून हाईकोर्ट में विवादों के घेरे में है। 19 मार्च को हाईकोर्ट ने इस आदेश पर कोई टिप्पणी किए बगैर नीटी पीजी मेडिकल प्रवेश परीक्षा 2019-20 में 14 फीसदी आरक्षण देने का आदेश दिया था। इस आदेश के मुताबिक पहले से ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा था। फिर भी कोर्ट ने संभावना के आधार पर अन्तरिम आदेश जारी कर दिया गया था। इस आदेश को विभिन्न याचिकाओं में लागू किया गया था। लेकिन इस आदेश पर हाईकोर्ट का कोई स्टे नहीं है।
इस कन्फ्यूजन को दूर करने के लिए तत्कालीन महाधिवक्ता ने राज्य सरकार को ओपिनयन दिया था कि जिन पांच विषयों पर स्टे है। इन मामलों को छोड़कर अन्य सभी विभागों में ओबीसी को 27% आरक्षण दिया जा सकता है। इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने 2 नवंबर 2021 को नोटिफिकेशन जारी करके 27 फीसदी आरक्षण लागू करने के निर्देश दिए थे। इसी वजह से आयुष मेडिकल प्रवेश 2022 में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिया गया था। इसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में अपील की। जस्टिस शील नागू और एम एस भट्टी की बेंच ने अंतरिम आदेश पारित किया था। 26 फरवरी 2022 को दिए इस अंतरिम आदेश में हाईकोर्ट ने 14 फीसदी आरक्षण देने के निर्देश दिए थे। जबकि 27 फीसदी आरक्षण के साथ सीट एलॉटमेंट की प्रक्रिया 24 फरवरी 2022 को पूरी हो चुकी थी।
दलील- हाईकोर्ट कर रहा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लघंन: हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में SLP दायर की थी। 21 मार्च 2022 को सुनवाई में सालीसिएटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने मध्य प्रदेश शासन का पक्ष रखते हुए कहा कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अन्तरिम आदेश कानून के विरोध मे पारित किया है। मेहता ने दलील दी कि विधायिका ने ओबीसी की 51% आबादी को प्रदेश 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून बना गिया है। इसके कानून को याचिकाओं में चुनौती दी गई थी। लेकिन हाईकोर्ट अंतिम निराकरण करने की जगह अंतरिम आदेश पारित कर रहा है। ये सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के विपरीत है। महाधिवक्ता के तर्कों से सहमत होते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से निवेदन किया है कि याचिकाओं की प्राथमिकता के आधार पर अंतिम निराकरण किया जाए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आयुष विभाग में ओबीसी को दिए गए 27 फीसदी आरक्षण पर दखल से साफ इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार अपनी व्यथा हाईकोर्ट को सुनाए।