BHOPAL. दिल्ली और पंजाब की सत्ता पर काबिज होने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) 14 मार्च से मध्यप्रदेश में चुनावी अभियान का शंखनाद करने जा रही है। प्रदेश में पिछले साल हुए नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों से उत्साहित आप ने मप्र विधानसभा की सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। पार्टी के रणनीतिकार दावा कर रहे हैं कि आप प्रदेश में वोट की राजनीति करने नहीं बल्कि राजनीति का मिजाज बदलने के लिए मैदान में उतरेगी
तीसरा विकल्प बनेगी आम आदमी पार्टी!
आप मप्र में बीजेपी-कांग्रेस की दो ध्रुवीय राजनीति का वर्चस्व खत्म कर जनता के लिए मजबूत तीसरा विकल्प बनेगी। पार्टी के नेता जनता के बीच जाकर बताएंगे कि कैसे दोनों पार्टिंयां वोटों की सौदागर हैं, इनमें कांग्रेस विक्रेता है और बीजेपी खरीदार। इस लिहाज से माना जा रहा है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए ही दोधारी तलवार साबित हो सकती है। आइए आपको बताते हैं कि क्या आम आदमी पार्टी वाकई प्रदेश में तीसरा विकल्प बन सकती है ? आप बीजेपी या कांग्रेस में से किसे ज्यादा डैमेज करेगी ?
मप्र के शहरी इलाकों में बढ़ा आप का वोट परसेंटेज
दिल्ली के शराब घोटाले में सीबीआई और ईडी के फंदे में फंसी आप सरकार के मुख्यमंत्री और पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल गुजरात चुनाव के बाद अब मध्यप्रदेश में चुनावी बिगुल फूंकने जा रहे हैं। भोपाल में मंगलवार (14 मार्च) को केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की आम सभा को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ही नजरें लगी हुई हैं। मप्र में पिछले साल हुए नगरीय निकाय के चुनाव में सिंगरौली महापौर के साथ नगर निगम और नगर पालिकाओं में पार्षदों के 50 पद जीतकर आप ने सभी को चौंका दिया था। ग्वालियर और रीवा में आप के महापौर पद के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे थे। इससे उत्साहित आप के रणनीतिकारों ने विधानसभा की सभी 230 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर प्रदेश में सत्ताधारी बीजेपी और विपक्ष के रूप में कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। इसकी वजह नगरीय निकाय चुनाव में आप के वोट प्रतिशत में इजाफा होना है। पिछले विधानसभा चुनाव (2018) में आप 208 सीट पर ही चुनाव लड़ी थी। तब उसका वोट प्रतिशत 0.60 फीसदी रहा था। लेकिन नगरीय निकाय चुनाव -2022 में उसका वोट प्रतिशत में खासा उछाल हुआ।
आम आदमी पार्टी से जुड़े 5 लाख से ज्यादा सदस्य
पार्टी के पूर्व प्रदेश संगठन महामंत्री डॉ.मुकेश जायसवाल के मुताबिक नगरीय और पंचायत चुनाव में पार्टी का वोट प्रतिशत 6.30 फीसदी रहा है। इस लिहाज से पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में आप को करीब 5.70 फीसदी वोट ज्यादा मिले। ये प्रदेश में पार्टी के जमानी स्तर पर मजबूत होने का प्रमाण है। नगरीय निकाय चुनाव के बाद पार्टी में करीब 5 लाख नए सदस्य जुड़े हैं। प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रभारी भूपेंद्र सिंह जून का कहना है कि मप्र में एक अंडर करंट है जिसे पार्टी महसूस कर रही है। ये अंडर करंट बताता है कि प्रदेश की जनता बदलाव के पूरे मूड में है।
विधानसभा चुनाव में 0.13 फासदी वोट ज्यादा मिलने पर भी पिछड़ गई थी बीजेपी
प्रदेश में पिछले 20 सालों की राजनीति पर नजर डालें तो 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की कमलनाथ सरकार महज 15 महीने ही सत्ता में रह पाई। इस चुनाव में कांग्रेस को 230 सीटों में से 114 और बीजेपी को 105 सीट मिली थीं। यानी कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले महज 5 सीट ही ज्यादा मिली थीं जबकि बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले 0.13 फीसदी वोट ज्यादा मिले थे। इस चुनाव में बीजेपी को 41.02 फीसदी वोट मिले और कांग्रेस के खाते में 40.89 प्रतिशत वोट आए, लेकिन 0.13 फीसदी वोट ज्यादा हासिल करने के बाद भी बीजेपी राज्य की सत्ता से बेदखल हो गई थी। इस चुनाव में आप को महज 0.66 फीसदी वोट ही मिले थे। आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पंकज सिंह का कहना है कि नगरीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी की प्रदेश इकाई ने अपने दम पर चुनाव लड़ा था। उस वक्त पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ज्यादा सक्रिय नहीं थे। ये लोकल लेवल का इलेक्शन था, लेकिन विधानसभा चुनाव में पूरी पार्टी एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरने जा रही है इसलिए बदलाव जरूर नजर आएगा।
मालवा-निमाड़ में नहीं चला आप का जादू
प्रदेश में आप नेताओं के इस कॉन्फिडेंस के पीछे आधार क्या है, क्योंकि विधानसभा 2018 के चुनाव में तो पार्टी का परफॉर्मेंस जरा भी दमदार नहीं रहा। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 208 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 2 लाख 54 हजार वोट हासिल किए थे। यानी महज 0.66 फीसदी। क्षेत्रवार बात करें तो 2018 में आप का मालवा-निमाड़ पर कोई जोर नहीं चला था। पार्टी ने यहां की 66 में से 57 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और सभी की जमानत जब्त हो गई थी। इस अंचल में आप के उम्मीदवारों को कुल 41 हजार वोट मिले थे। सिर्फ 15 सीटें ऐसी थी जहां उम्मीदवार एक हजार या उससे ज्यादा वोट हासिल कर पाए थे। कुक्षी विधानसभा सीट पर आप उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहा था।
ग्वालियर-मुरैना-रीवा में आप ने बिगाड़ा बीजेपी का गणित
2018 के विधानसभा चुनाव में कोई कमाल नहीं दिखा पाने वाली आम आदमी पार्टी के आत्मविश्वास के पीछे आधार है। गुजरात चुनाव में पार्टी का परफॉर्मेंस और दूसरा मप्र में नगरीय निकाय चुनाव में बढ़ा वोट परसेंटेज। पिछले साल हुए नगरीय निकाय चुनाव में आप ने जितनी सीटों पर चुनाव लड़ा और करीब 6.3 फीसदी वोट हासिल किया। सिंगरौली नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी की रानी अग्रवाल मेयर चुनी गईं। वहीं पूरे प्रदेश में 51 पार्षद चुने गए हैं जिसमें सिंगरौली, उमरिया, कटनी, छतरपुर, टीकमगढ़, राजगढ़, शाजापुर, रतलाम, डबरा, श्योपुर, छिंदवाड़ा में पार्टी के पार्षद चुनकर आए। सिंगरौली के बरगंवा में आप अपनी नगर परिषद बनाने में काययाब रही। खास बात ये है कि नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी के 100 उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे। इंदौर नगर निगम मेयर के चुनाव में आप के कमल गुप्ता उम्मीदवार थे और 9 हजार 152 वोट के साथ वो तीसरे नंबर पर रहे। वहीं ग्वालियर-चंबल में आप को नगर निगम चुनाव में अपेक्षाकृत ज्यादा वोट मिले। ग्वालियर और मुरैना में आप के प्रत्याशियों को मिले वोट के कारण बीजेपी महापैर पद गंवा बैठी। ग्वालियर में आप ने 45 पार्षद प्रत्याशी उतारे और तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। एक सीट पर उनका प्रत्याशी दूसरे नंबर पर भी रहा। आप के कैंडिडेट्स को मेयर सहित 71 हजार 394 वोट मिले। डबरा नगर पालिका और मोहना नगर पंचायत में आप ने एक-एक वार्ड जीता और मुरैना नगर निगम चुनाव में आप को 20 हजार 356 वोट मिले। यानी बीजेपी के शहरी वोट में आप ने सेंध लगाई और फायदा कांग्रेस को मिला। रीवा में भी आप के महापौर प्रत्याशी दीपक पटेल करीब 9 हजार वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे, लेकिन उन्होंने बीजेपी का चुनावी गणित बिगाड़ दिया और यहां से कांग्रेस के अजय मिश्रा महापौर का चुनाव जीत गए।
विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर होगा आप का फोकस
आप के रणनीतिकारों के मुताबिक आने वाले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का फोकस ऐसी सीटों पर होगा, जहां बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत-हार का अंतर बेहद कम रहा है। प्रदेश में विधानसभा के 2018 के चुनाव में ऐसी 26 सीटें थी जिन पर हार-जीत का अंतर 5 हजार या इससे कम रहा। इनमें से 9 सीट ऐसी थीं जिन पर हार-जीत का अंतर 1 हजार या इससे कम रहा।
इन 9 सीट पर हार-जीत का अंतर 1 हजार से कम रहा
ग्वालियर दक्षिण सीट पर ये अंतर 121, जबलपुर नॉर्थ 578, राजनगर 732, राजपुर 932, सुवासरा 350, दमोह 798, ब्यावरा 826, मांधाता 1236 और नेपानगर सीट पर ये अंतर 1264 रहा। हालांकि 2020 में हुए विधानसभा के उपचुनाव में इनमें से 5 सीटों सुवासरा, दमोह, ब्यावरा, मांधाता और नेपानगर में जीत-हार का आंकड़ा बदल गया।
इन 6 सीट पर हार-जीत का अंतर 3 हजार से कम रहा
गुन्नौर 1984, तराना 2209, पिछोर 2675, जोबट 2056, मुंगावली 2136 और सांवेर में हार-जीत का अंतर 2945 रहा। हालांकि उपचुनाव में जोबट, मुंगावली और सांवेर इन तीन सीटों पर हार-जीत का अंतर बदल गया।
इन 5 सीटों पर जीत-हार का अंतर 3 से 5 हजार रहा
छतरपुर 3495, चंदेरी 4175, देवरी 4304, घट्टिया 4628 और पेटलावद में 5 हजार रहा।
इन 6 सीट पर हार-जीत का अंतर 5 हजार से साढ़े 6 हजार रहा
नागदा 5117, बड़नगर 5318, आलोट 5448, कसरावद 5539, राऊ 5703 और भोपाल दक्षिण सीट पर 6587 रहा।
वीडियो देखें.. क्या सिर्फ वोट काटने वाली पार्टी बनकर रह जाएगी आम आदमी पार्टी?
बीजेपी-कांग्रेस के असंतुष्ट थामेंगे आप की झाड़ू
2018 के चुनाव नतीजों के बाद ये सभी 26 सीटें कांग्रेस के खाते में थीं, बीजेपी के खाते में एक भी सीट नहीं थी। लेकिन उपचुनाव के बाद अब मौजूदा में 26 सीटों में से कांग्रेस के खाते में 20 सीटें हैं तो बीजेपी के खाते में 6 सीटें हैं। अब आम आदमी पार्टी इन सीटों पर फोकस कर इसे त्रिकोणीय मुकाबले में बदलने की ख्वाहिश रखती है। साथ ही पार्टी ने अपना पूरा फोकस 40 सीटों पर किया है। ऐसी सीटें भी चयनित की है जहां जनता का मिजाज हर 5 साल में बदलता है और आप की नजर उन नेताओं पर है जिन्हें बीजेपी और कांग्रेस टिकट नहीं देगी तो वो सीधे आप से चुनाव लड़ सकते हैं क्योंकि बीजेपी कह चुकी है कि 25 फीसदी टिकट काटे जाएंगे। अब मान लीजिए कि यदि बीजेपी अपने 75 से 80 विधायकों के टिकट काटेगी तो जाहिर तौर पर बीजेपी के बागी या तो निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे या फिर आप का दामन थामेंगे और कमोवेश ऐसी ही स्थिति कांग्रेस की भी होने वाली है। यानी आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकती है।
गुजरात में दावों के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर पाई आप
आप के रणनीतिकारों के तमाम दावों के बीच इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि गुजरात में पार्टी ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर सरकार बनाने के दावे किए थे, लेकिन चुनाव के नतीजे उसके मुताबिक नहीं आए। पार्टी केवल 5 सीटों पर सिमट गई, लेकिन 35 सीटों पर वो दूसरे नंबर पर रही। जानकारों की मानें तो गुजरात में आप ने कांग्रेस का नुकसान किया और बीजेपी को फायदा पहुंचाया। हालांकि गुजरात में आप का वोट शेयर करीब 13 फीसदी रहा जिससे वो राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने में कामयाब हो गई। राजनीतिक विश्लेषक अजय बोकिल कहते हैं कि मप्र में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के ही असंतुष्ट नेता आप का दामन थामेंगे, लेकिन नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों के आधार पर अभी ये मानना जल्दबाजी होगी कि आप प्रदेश में कोई बड़ा उलटफेर करने में कामयाब होगी। इसकी वजह प्रदेश की कुल विधानसभा सीटों में शहरी पृष्ठभूमि वाली सीटों की संख्या करीब एक तिहाई होना है जबकि 2 तिहाई से ज्यादा सीटें ग्रामीण आबादी वाली हैं। आप के अभी तक के ट्रैक रिकॉर्ड के अनुसार वो आम मतदाताओं को मुफ्त की सुविधाओं और घोषणाओं से लुभाती है, लेकिन प्रदेश में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का काम बीजेपी सरकार ने पहले से ही शुरू कर दिया है।
(स्टोरी इनपुट : पुनीत पांडेय, देव श्रीमाली, संजय गुप्ता, राजीव उपाध्याय)