चंबल में बिगड़ा बीजेपी का खेल, नरेंद्र सिंह तोमर के बाद क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया का नंबर?

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Harish Divekar
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चंबल में बिगड़ा बीजेपी का खेल, नरेंद्र सिंह तोमर के बाद क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया का नंबर?

BHOPAL. 2018 में माई का लाल की आग में झुलसी बीजेपी 2023 में ओबीसी आरक्षण में जल सकती है। डोमिनेंट कास्ट डेमोक्रेसी वाले चंबल में इस बार ओबीसी ने चुनावी समीकरण गढ़ने का फैसला कर लिया है। ओबीसी की नाराजगी का पहला शिकार चंबल से सांसद नरेंद्र सिंह तोमर हो सकते हैं। उसके बाद किसका नंबर होगा।



ग्वालियर चंबल में जातीय संघर्ष



यूपी से सटे ग्वालियर चंबल के इलाके में एक बार फिर जातीय संघर्ष जोर पकड़ रहा है। ओबीसी महासभा इस इलाके में तेजी से एक्टिव है। प्रीतम लोधी के बीजेपी से निष्कासन के बाद से ग्वालियर चंबल में सवर्ण बनाम दलितों का मुद्दा उछलने लगा है। ओबीसी महासभा ने अलग-अलग जिलों में जाकर खुद को दलित समुदाय का हितैषी बताने की कवायद शुरू कर दी है। शुरुआत श्योपुर में ओबीसी महापंचायत से हुई है। महासभा तो सिर्फ एक तहसील में थी लेकिन जो भीड़ जुटी वो सत्ता की धड़कन बढ़ाने के लिए काफी थी। ये भीड़ इस शपथ के साथ वापस लौटी कि ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग का कोई भी वोटर बीजेपी या सांसद नरेंद्र सिंह तोमर को वोट नहीं देगा।



2018 में बीजेपी ने झेला था जबरदस्त घाटा



दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक पीता है। ग्वालियर चंबल में 2018 के चुनाव में बीजेपी ने जबरदस्त घाटा झेला। इसके बाद से बीजेपी की पूरी कोशिश है कि वो ग्वालियर चंबल का हर समीकरण साध सके। 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के साथ थे। उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद से ये उम्मीद थी कि अब सवर्णों के अलावा ओबीसी, एससी और एसटी भी बीजेपी के साथ होगा लेकिन समीकरण अचानक बदलने लगे हैं। खासतौर से प्रीतम लोधी एपिसोड के बाद से। लोधी के निष्कासन के बाद से दलितों ने उसे अपने अहम का हिस्सा बना लिया है। चंबल के अलावा बुंदेलखंड तक लोधी के समर्थन में कई सभाएं हो चुकी हैं। ओबीसी महासभा ही नहीं, लोधी के बहाने जयस भी आगे आया और खुद लोधी वोटर्स भी बढ़-चढ़कर आगे आए। अब ओबीसी महासभा इससे इतर भी पैर फैला रही है। कोशिश है कि दलितों से जुड़े छोटे से छोटे मुद्दे उठाकर बीजेपी को घेरे। खासतौर से जहां भी दलितों पर सवर्णों ने अत्याचार किए हैं उन मामलों को हवा देकर अपनी पहचान बनाने की कोशिश है। श्योपुर में हुई सभा में भी उन दलितों के समर्थन में थी जिनके साथ 3 नवंबर को मारपीट की गई।



बीजेपी को ओबीसी वोट बैंक खिसकने का डर



इस सभा में वर्ग विशेष  के खिलाफ ने सभी को लगता है कि भारतीय जनता पार्टी सवर्णों की पार्टी है जहां दलित और ओबीसी की कोई पूछ परख नहीं है। इसके उदाहरण भी देखने को मिल रहे हैं, इसी को लेकर पार्टी आलाकमान भी चिंतित है। क्योंकि बीजेपी के सामने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। वहीं 2024 में लोकसभा के चुनाव भी हैं। मध्यप्रदेश में लगभग 52 फीसदी जनसंख्या ओबीसी वर्ग की है। इसलिए बीजेपी का ये वोट बैंक उससे कहीं खिसक न जाए इसलिए पार्टी भी अपने स्तर पर प्रयास कर रही है। इसके उलट ओबीसी महासभा ओबीसी समुदाय में पैठ बनाने की पुरजोर कोशिश में जुटी हुई है। ऐसा ही जातीय संघर्ष 2018 में हुआ था तब खामियाजा बीजेपी ने भुगता था। इस बार जातीय संघर्ष हुआ तो बीजेपी को इसका कुछ तो खामियाजा भुगतना ही होगा।



हर जातीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश



आने वाले चुनाव में बीजेपी का दांव केवल सवर्णों पर नहीं है। हर जातीय समीकरण को साधने की पूरी कोशिश हो रही है। आदिवासियों को साधने के लिए हर मुमकिन कोशिश जारी है। दलित समुदाय को साधने की भी कोशिश पूरी थी। लेकिन ओबोसी आरक्षण के बिना नगरीय निकाय चुनाव होने से ओबीसी की नाराजगी ने बीजेपी का सारा खेल बिगाड़ दिया। खासतौर से ग्वालियर चंबल में जहां जातिगत समीकरण हर जिले में बदलते हैं। वैसे तो माइक्रो लेवल की प्लानिंग के तहत बीजेपी जिलों के अनुसार ही रणनीति तैयार कर रही है। लेकिन ओबीसी महासभा की सभाओं में जिस तरह भीड़ जुट रही है। उसे देखते हुए लगता है कि चंबल का किला फतह करना इस बार भी बहुत आसान नहीं होगा।



डोमिनेंट कास्ट डेमोक्रेसी



ये वो इलाका है जहां चाहे लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव 'डोमिनेंट कास्ट डेमोक्रेसी' लागू है यानी जिस जाति के लोगों की संख्या ज्यादा है उन्हीं के हिसाब से सीट का निजाम तय होता है। ग्वालियर चंबल की बात करें तो ब्राह्मण, ठाकुर और कुशवाहा यानी ओबीसी यहां कई सीटों पर बहु जातियों की भूमिका निभाते हैं। हालांकि इन सभी 13 सीटों पर एससी-एसटी की मौजूदगी 20 प्रतिशत से ज्यादा है। चंबल के जातीय गणित को जिलेवार इस तरह समझ सकते हैं।



जिला - श्योपुर (2 सीटें)



प्रमुख जातियां - रावत, मीना (राजस्थान के मीणा यहां ओबीसी हैं), धाकड़ किरार, ब्राह्मण और मुस्लिम।



जिला मुरैना (सीटें-6)



प्रमुख जातियां - ओबीसी, एससी, ठाकुर (सिकरवार, जादौन), ब्राह्मण, बनिया।



जिला - भिंड (सीटें-5)



प्रमुख जातियां - ओबीसी (लोधी, नरवरिया) एससी, ठाकुर (भदौरिया, कुशवाहा), ब्राह्मण।



केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का गढ़



ये इलाका बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र  सिंह तोमर का गढ़ माना जाता है। खासतौर से मुरैना। लेकिन इसी क्षेत्र में नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी महापौर का चनाव नहीं जीत सकी। जबकि प्रत्याशी तोमर की ही पसंद का था। ओबीसी महासभा इसे अपना इंपैक्ट बताने और ओबीसी की नाराजगी का नतीजा बताने में जुटी है। अगर वाकई हार के पीछे यही बड़ा कारण है तो इसका खामियाजा बीजेपी को विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ सकता है।



सारे समीकरण उलट



ग्वालियर चंबल में पिछले चुनाव में मुख्यमंत्री के माई के लाल के जुमले ने सारे समीकरण उलट कर रख दिए। इस एक अंचल की 34 सीटों में से कांग्रेस के हाथ सीधे-सीधे 26 सीटें लगीं। एक पर बीएसपी को मौका मिला। उस वक्त कांग्रेस नेता सिंधिया का जादू भी लोगों के सिर चढ़कर बोला। अब सिंधिया बीजेपी में हैं। जिनके आने के बाद उपचुनाव में बीजेपी यहां 19 सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब हो गई। इसके बाद से कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलितों के वोट अपने हाथ से नहीं निकलने देना चाहते। इसी मकसद के साथ एससी-एसटी समुदाय के गोविंद सिंह को कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष की कमान सौंपी है और बीजेपी ने यहीं के लाल सिंह आर्य को इस प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। लेकिन अचानक उठी प्रीतम लोधी की आग में अब घी डालने का काम कर रही है। ओबीसी महासभा जिसके इम्पेक्ट से निपटने के दोनों दलों को नए सिरे से रणनीति तैयार करने की मजबूरी  झेलनी पड़ रही है।



दलित इलाकों में पैठ जमा रही ओबीसी महासभा



ओबीसी महासभा की शुरुआती रणनीति दलित बहुल इलाकों में पैठ जमाना है। उन इलाकों में एससीएसटी और ओबीसी पर हुए अत्याचारों को मुद्दा बनाकर ओबीसी महासभा लगातार इमोशनल सपोर्ट हासिल करने की कोशिश में है।



ओबीसी महासभा के निशाने पर नरेंद्र सिंह तोमर



ओबीसी महासभा ने फिलहाल चंबल से शुरुआत की है और निशाने पर आए हैं बीजेपी के कद्दावर और क्षेत्र में दमखम रखने वाले नेता नरेंद्र सिंह तोमर। लेकिन ये सोचकर पार्टी इत्मीनान नहीं कर सकती कि ओबीसी महासभा की आग केवल चंबल तक सिमटी रहेगी। महासभा ने पैर पसारे तो चंबल के बाद ग्वालियर का नंबर और फिर रुख बुंदेलखंड का भी हो सकता है। क्योंकि वहां भी प्रीतम लोधी की आग सुलग रही है। ऐसे में बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। ये जातीय संघर्ष नहीं रुका तो नुकसान होना तय माना जा सकता है। इस संघर्ष से कांग्रेस भी फायदा उठाने में पीछे नहीं रहेगी। ये डर भी मुमकिन है।


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