ग्वालियर में अंबेडकर महाकुंभ की सफलता के लिए बीजेपी ने फूंकी पूरी ताकत, 2018 के चुनाव नतीजों को पलटने हो रहा है यह मेगा इवेंट

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The Sootr
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ग्वालियर में अंबेडकर महाकुंभ की सफलता के लिए बीजेपी ने फूंकी पूरी ताकत, 2018 के चुनाव नतीजों को पलटने हो रहा है यह मेगा इवेंट

देव श्रीमाली, GWALIOR. 16 अप्रैल, रविवार को ग्वालियर में आयोजित होने वाले दलित महाकुंभ से बीजेपी ग्वालियर चंबल में दलितों के साथ हुई बड़ी दूरी को पाटने का बड़ा दांव खेलना चाहती  है। कहने को तो यह आयोजन सरकारी है और सरकार इस पर दस करोड़ रुपए से ज्यादा फूंक रही है, लेकिन असल में यह बीजेपी का एक बड़ा इवेंट है, जिसे वह गेम चेंजर मान रही है और पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। बीते एक पखबाड़े से अंचल में प्रशासनिक काम ठप पड़ा है, क्योंकि प्रशासन सिर्फ इसकी तैयारियो में जुटा हुआ है। इसमें एक लाख लोगों की भीड़ जुटाने का लक्ष्य है, जिसके जरिए बीजेपी यह संदेश देना चाहती है कि ग्वालियर चंबल में अब 2018 जैसे हालात नहीं है। दलित अब बीजेपी के साथ है। 



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यह होंगे शामिल 



इस दलित महाकुंभ के मुख्य अतिथि राज्यपाल मंगूभाई पटेल होंगे, जबकि भाग लेने वाले अतिथियों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया , संभाग भर के सभी बीजेपी विधायक, पार्टी के सभी दलित नेता और अंचल के अभी प्रदेश सरकार के मंत्री मौजूद रहेंगे। 



2500 बसों से आएंगे दलित वर्ग के लोग



ग्वालियर के व्यापार मेला मैदान में आयोजित होने जा रहे इस अंबेडकर महाकुंभ में ग्वालियर चंबल अंचल के साथ-साथ अलग-अलग जिलों से एक लाख की अधिक संख्या में दलित वर्ग के लोगों को लाने की योजना है। इसको लेकर प्रशासन की तरफ से 2500 बसें लगाई गई हैं, जो अलग-अलग जिले से लोगों को लाने का काम करेंगी। इस अंबेडकर महाकुंभ को लेकर प्रशासन से लेकर अंचल के मंत्री और केंद्रीय मंत्री पूरी ताकत झोंक रहे हैं और भीड़ जुटाने के लिए हर जिले के विधायक, मंत्री के साथ-साथ प्रशासन को भी जिम्मेदारी दी गई है। 



दलित वोटरों को साधने की भाजपा की कवायद



दरअसल ग्वालियर चंबल अंचल में इस महाकुंभ के बहाने नाराज दलित वोटरों को बीजेपी लगाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि साल 2018 में दलित आंदोलन के बाद राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया था। दलित आंदोलन में आधा दर्जन दलित मारे गए थे और इसके बाद दलित वोटर्स एकजुट होकर शिवराज सरकार और बीजेपी  के खिलाफ लामबंद हो गए थे। यही कारण है कि साल 2018 में शिवराज सरकार को ग्वालियर चंबल अंचल से बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था और इसी कारण सरकार चली गई थी। इसके बाद से ही ग्वालियर चंबल अंचल में दलित वोटर बीजेपी के खिलाफ काम कर रहा है और इसी को साधने के लिए अब बीजेपी इस महाकुंभ का आयोजन कर रही है।



परिवहन विभाग को मिले 4.94 करोड़



परिवहन आयुक्त द्वारा परिवहन आयुक्त एसके झा द्वारा प्रमुख सचिव अनुसूचित जाति कल्याण विभाग को 6 अप्रैल को एक पत्र में लिखकर कहा था  कि बाबा अंबेडकर जयंती के उपलक्ष्य में ग्वालियर में आयोजित होने जा रहे आयोजन में ग्वालियर-चंबल अंचल के आठ जिलों से एक लाख अनुयाइयों को लाने का तय हुआ है। इसके लिए नियमानुसार 2500 बसें अधिग्रहित करना है। अधिग्रहण के  नियमों के आधार पर 6 करोड़ 18 लाख रुपए का व्यय होगा। नियम के अनुसार इस राशि का अस्सी फीसदी यानी 4 करोड़ 94 लाख 40 हजार रुपए अग्रिम आवंटित करें। विभाग के सूत्रों का कहना है कि शासन ने इसमें बसें अधिग्रहित करने के लिए वांछित धनराशि की  नियमानुसार व्यवस्था कर दी है । 



लाल सिंह आर्य एक हफ्ते से डाले हैं डेरा



बीजेपी इस आयोजन की सफलता में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। यही वजह है कि उसने अपने सभी दलित नेताओं यही भेज रखा है। बीजेपी के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य बीते एक सप्ताह से यही डेरा डालकर बैठे है। पार्टी के बड़े नेता वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए अपने कार्यकर्ताओं से सतत संपर्क साधे हुए है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एक दिन पहले ही ग्वालियर पहुंच गए और सीधे आयोजन स्थल पर ही पहुंच गए।



ग्वालियर चंबल में दलितों की इतनी चिंता क्यों 



सवाल यह है कि आखिरकार सरकार को चुनावी वर्ष में ग्वालियर चंबल में दलितों को लेकर इतनी चिंता क्यों सता रही है तो हम आपको बता दें कि इस अंचल में दलित वोटों की संख्या काफी अधिक है। संभाग में कुल 34 सीट है और इन सीटों पर 20 से 25 फीसदी तक दलित वोटर हैं। इतनी बड़ी संख्या निर्णायक हो जाती है र औपिछली बार दलितों की नाराजी का खामियाजा बीजेपी भुगत चुकी है। वह अच्छी तरह जानती है कि ग्वालियर चंबल अंचल की सभी सीटों पर दलित वोट की काफी अहम भूमिका है। इसी को ध्यान में रखकर अब बीजेपी सरकार के जरिए दलितों को साधने की कोशिश में जुट गई है। साल 2018 के चुनाव में ग्वालियर चंबल अंचल से बीजेपी सिर्फ 7 सीटें जीतने में सफल हो पाई थी, तो वहीं कांग्रेस ने 26 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके साथ ही बसपा के खाते में एक सीट आई थी। इसकी वजह दलित वोट का कांग्रेस में शिफ्ट होना ही माना जा रहा था। अब बीजेपी ग्वालियर चंबल अंचल में हार की कमी को पूरा करने के लिए दलित वोटरों पर सबसे अधिक निगाह रखी हुई है। 



अन्य दलों की निगाह भी दलितों पर 



इस बार के चुनावों में एक खास बात यह भी है कि दलित वोटरों पर ग्वालियर चंबल अंचल में बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस बसपा और आप पार्टी पर निगाहें बनाए हुए है। सभी अपनी जोर आजमाइश कर रहे है। लिहाजा अभी तक किसी को नहीं पता कि यह दलित वोट कहां जाएगा। वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि "ग्वालियर चंबल अंचल में इस बीजेपी के महाकुंभ के आयोजन से दलित वोटरों को ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है, क्योंकि दलित वोट स्थानीय मुद्दों को लेकर वोट डालते हैं और इसके साथ ही दलित वोटर की युवा पीढ़ी इस समय भीम आर्मी के साथ है। भीम आर्मी की लगातार लोकप्रियता बढ़ने के कारण उनका पूरा सहयोग कर रही है। ऐसे में शहर के अलावा जो ग्रामीण दलित वोटर्स है, उसे बीजेपी अपना बनाने में कितना कामयाब हो सकती है।


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