दमोह में संत के प्रवचन से प्रेरित होकर गल्ला व्यापारी ने लिया देहदान का संकल्प, परिवार ने भी निर्णय पर जताई खुशी

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Rajeev Upadhyay
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दमोह में संत के प्रवचन से प्रेरित होकर गल्ला व्यापारी ने लिया देहदान का संकल्प, परिवार ने भी निर्णय पर जताई खुशी

Damoh. कहते हैं जब संत की वाणी का प्रवेश इंसान के जीवन में होता है तो बदलाव संभव है और व्यक्ति अपने आपमें बदलाव कर ही लेता है। इसी तरह से एक संत के प्रवचन सुनकर दमोह के तेंदूखेड़ा में एक प्रतिष्ठित गल्ला व्यापारी ने अपनी मृत्यु के बाद देहदान का संकल्प लिया है। गल्ला व्यापारी संजय सेठ एक समाज सेवक भी हैं और लगातार जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करते आ रहे हैं। जब उन्होंने संत के प्रवचन सुनकर अपनी देहदान का संकल्प लिया और परिवार के लोगों को बताया तो वह पहले हैरान हुए, लेकिन बाद में उन्होंने इस निर्णय पर अपनी सहमति जताई।







संत के प्रवचन ने जीवन को नई दिशा दी







संजय जैन तरण तारण दिगंबर  चैत्यालय मंदिर समिति और समाज के अध्यक्ष हैं। दो जनवरी को तेंदूखेड़ा में संत शांतनाद महराज आए थे और उनके द्वारा प्रतिदिन प्रवचन दिये जा रहे थे। जिसमें संजय जैन लगातार उपस्थित होकर धर्मलाभ ले रहे थे। उसी दौरान जब संत राजा दशरथ के जीवन के बारे में प्रवचन दे रहे थे। उसी से गल्ला व्यापारी प्रेरित हो गये और परिवार में चर्चा कर 21 जनवरी को बालब्रम्हचारी शांतनाद महराज के समक्ष संकल्प लेकर अपनी देहदान करने का फैसला लिया। गल्ला व्यापारी के अनुसार यदि मृत्यु के बाद उनका शरीर किसी के काम आ रहा तो यह बहुत बड़ी बात है।







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    गल्ला व्यापारी संजय जैन भले ही गल्ला व्यवसाई हैं, लेकिन उनका समाज हित से लगातार लगाव रहा। जब भी किसी गरीब की मदद या उपचार की बात आई तो संजय जैन सबसे पहले मददगार बनते हैं। इसी तरह समाज हित में भी पति और पत्नी दोनों तत्पर रहते हैं। कई वर्षों से लगातार तीन माह में रक्तदान करके भी उन लोगों की मदद करते है जिनको रक्त की जरूरत पढ़ती है। इसके अलावा धर्मिक कार्यो के प्रति भी इनका काफी लगाव है। इसके लिये संजय जैन को सेठ की पदवी भी मिली हैं क्योकि इनको सूखा जी में 2021 में बेदी प्रतिष्ठा कराई थी उसके बाद इनको सेठ संजय जैन के नाम से पुकारा जाने लगा।





    संजय जैन का परिवार ठेकेदार के नाम से जाना जाता है। इनके पिता तारादेही ग्राम के मूल निवासी थे और ठेकेदार परिवार हमेशा से धर्मिक कार्यो में सबसे आगे रहा है। 2007 में इनके पिता की एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी। हादसे में न्यायालय से क्लेम का पैसा मिला, उसे भी संजय जैन ने दान में दे दिया था। उसके बाद परिवार के साथ तेंदूखेड़ा आ गये। इनकी एक भतीजी बालब्रम्हचारी बहन अंजना जैन हैं, संजय जैन की तीन बेटियां और एक बेटा है। अपनी देह दान के बारे में सेठ संजय जैन ने बताया कि बालब्रम्हचारी शांतनाद महराज के प्रवचनों में सुना कि देह का कोई महत्व नहीं होता। राजा दशरथ को भी इसलिये बेदेह कहा जाता था। उसी से प्रेरित होकर मैने देहदान करने के लिये जबलपुर मेडिकल में जानकारी भेज दी। जीवन मेरा है यदि ये किसी के कार्य आता है तो इससे बड़ा कोई पुण्य नही है। 



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