BHOPAL. खाद के लिए कतार में लगे किसानों की मौत से प्रदेश सरकार सकते में है। ये मामला तूल पकड़े और कांग्रेस इसे भुना पाए उससे पहले भारतीय किसान संघ ने मुद्दा लपक लिया है और प्रदर्शन भी कर दिया है। ये वाकई किसानों की परेशानी सुलझाने का तरीका है या फिर सरकार की कोई रणनीति है।
संघर्ष के लंबे खिंचने के पहले ही सीएम ने की घोषणाएं
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अचानक सैकड़ों किसान आए, सड़क पर उतरे, आंदोलन किया। ये संघर्ष या प्रदर्शन लंबा खिंचता। सरकार की नींद उड़ाता उससे पहले ही सीएम शिवराज सिंह चौहान प्रदर्शन स्थल पर पहुंचे और जरूरी घोषणाएं कर दीं। सबकुछ एकदम पहले से प्लान्ड प्रोग्राम के तहत हुआ या अचानक सीएम को अहसास हुआ कि प्रदेश का किसान वाकई परेशान है। इस बात को समझने के लिए प्रदर्शन के इर्द-गिर्द हुई घटनाओं को जान लेते हैं।
सियासी गलियारों में उठ रहे सवाल
प्रदेश का किसान कुछ दिनों से खाद की किल्लत से परेशान था। राजगढ़, रतलाम, शाजापुर जैसी जगहों पर खाद के लिए लगी किसानों की कतारें लंबी हो रही थीं लेकिन सरकार खाद की किल्लत से इनकार करती रही। तब तक जब तक सीहोर से किसान की मौत की खबर नहीं आ गई। सियासी पारा गर्माया और कांग्रेस भी एक्टिव हुई। हालात साफ इशारा कर रहे थे कि मामला सरकार के हाथ से निकल रहा है जिसे भुनाने में विपक्ष पीछे रहने वाला नहीं है। बमुश्किल दो ही दिन बाद भारतीय किसान संघ राजधानी भोपाल में आंदोलन करने पहुंच जाता है। आरएसएस से जुड़े माने जाने वाले संघ के इस प्रदर्शन में खुद सीएम दौड़े-दौड़े जाते हैं और कई ऐलान करते हैं। अब ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सिर्फ किसानों को दिखाने के लिए ये पूरा घटनाक्रम रचा गया। क्या बीजेपी की कोशिश है कि किसानों की नाराजगी चुनाव में उसकी मुश्किलें न बढ़ाए। क्योंकि, इन्हीं किसानों के लिए बड़ी घोषणा कर बीते चुनाव में कांग्रेस ने बाजी मार ली थी। ये सवाल हमारे नहीं बल्कि सियासी गलियारों में तेजी से जोर पकड़ रहे हैं।
किसान के सड़क पर उतरने से उड़ जाते हैं सरकार के होश
किसान सड़क पर उतरता है तो सरकार के होश उड़ जाते हैं। माने या न माने सरकार बनाने की ताकत अब भी प्रदेश के अन्नदाता के हाथ में ही है। जिनके नाम पर कर्जमाफी की घोषणा कर साल 2018 में कांग्रेस ने बाजी पलटकर रख दी थी। मुद्दे भी कई थे। उस वक्त मंदसौर गोलीकांड के बाद किसानों के हक में एक्टिव हुई कांग्रेस, किसानों के बूते ही तख्ता पलट करने में कामयाब हुई। प्रदेश में एक बार फिर वैसे ही हालात बन रहे हैं। किसान गुस्साया हुआ है।
मध्यप्रदेश का अन्नदाता परेशान
पिछले एक साल से किसान कई मुद्दों पर लड़ रहे हैं। सबसे खास लहसुन और प्याज के रेट को लेकर। धार, उज्जैन, शाजापुर, आगर समेत कई जिलों में लहसुन के रेट इतने गिर गए कि लागत भी नहीं निकल पाई। 5 रुपए किलो से भी कम रेट मिले। प्याज को लेकर भी यही हुआ। इस दौर से जैसे-तैसे किसान निकले तो तेज बारिश से फसलें बर्बाद हो गईं। इन दोनों समस्याओं से जूझने के बाद किसानों ने गेहूं-चने की बुआई तो कर ली लेकिन अब उनके सामने खाद का बड़ा संकट खड़ा हो चुका है। राजगढ़, रतलाम और शाजापुर में सुबह से शाम तक लाइन में लगने के बावजूद किसानों को दो बोरी खाद नसीब नहीं हो रहा है। दूसरी ओर सरकार दावे कर रही है कि खाद की कहीं कोई परेशानी नहीं है। बस यही बात किसानों के मन में घर कर रही है। इसी बीच किसानों की मौत की भी खबर आ गई। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया। इन सबके बीच भारतीय किसान संघ ने भोपाल आकर किसानों के हित में आंदोलन किया।
किसानों की नाराजगी जानती है सरकार
किसान हुंकार भरेगा तो सरकार का टेंशन बढ़ना लाजिमी है। लेकिन इस बार टेंशन दो तरफा। एक तरफ किसानों की नाराजगी है जो सरकार से छुपी नहीं है। दूसरी तरफ कांग्रेस जो लगातार किसानों के समर्थन में जाती दिखाई दे रही है। ये मुद्दा कांग्रेस भुना पाए उससे पहले आरएसएस के अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ ने मुद्दा तो लपका लेकिन वो भीड़ नहीं जुटा सका जिसकी दरकार थी। जिसके बाद सरकार की टेंशन बढ़ी या घटी ये भी बड़ा सवाल है। किसानों का मुद्दा कोई और संगठन उठाएगा तो सरकार का घिरना लाजिमी है। लेकिन भारतीय किसान संघ के मुद्दा उठाने से भी सरकार की परेशानी कम होती नजर नहीं आती। क्योंकि असल किसान बहुत कम संख्या में भोपाल में हुए प्रदर्शन में नजर आया। तो क्या किसान संघ प्रदेश में किसानों का भरोसा गंवा चुका है। सियासी गलियारों में ये माना जा रहा है कि फिलहाल किसान संघ को एक शील्ड की तरह मैदान में उतारा गया है। जो किसानों का हितैषी नजर आएगा, चुनाव तक उनके गुस्से को संभालेगा और उसकी आंच पार्टी तक नहीं पहुंचने देगा।
पहली बार सड़क पर नहीं उतरा है भारतीय किसान संघ
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि भारतीय किसान संघ सड़क पर उतरा है। इससे पहले शिव कुमार कक्काजी के नेतृत्व में संघ ने भोपाल में प्रदर्शन किया। तकरीबन दो दिन तक किसान पूरी राजधानी को घेरे रहे। सीएम शिवराज के करीबी माने जाने वाले शिव कुमार अचानक उनके धुर विरोधी बन गए थे। लेकिन इस बार जो संघ का प्रदर्शन हुआ उसमें शिव कुमार के नेतृत्व वाले आंदोलन की तरह कोई आग नजर नहीं आई। ये प्रदर्शन किसानों की मांगों पर विशेष सत्र और भावांतर जैसी 18 मांगों को लेकर हुआ। बमुश्किल डेढ़ से दो हजार किसान इस आंदोलन में नजर आए। जिनके बीच सीएम पहुंचे। सत्र के लिए तो कोई घोषणा नहीं की लेकिन जमीन अधिग्रहण से जुड़ा ऐलान किया।
इसके बावजूद किसान संघ ने आंदोलन आगे भी जारी रखने का ऐलान कर दिया है। विपक्षी दलों ने जरूर संघ के इस आंदोलन पर कुछ सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
- भारतीय किसान संघ, क्या किसानों का भरोसा खो चुका है?
कांग्रेस का दावा है कि किसान संघ का ये प्रदर्शन महज किसानों को बहकाने के लिए। ताकि किसान ये मान लें कि उसके हक की आवाज बुलंद हो रही है और चुनाव में सरकार का खेल न बिगाड़े। किसानों की 18 सूत्रीय मांगों को लेकर किसान संघ दिसंबर माह में दिल्ली में भी प्रदर्शन करने की तैयारी में है।
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किसान सियासी ड्रामेबाजी का हिस्सा बनेगा या चुनाव के दिन फैसला सुनाएगा
कांग्रेस के ये सवाल इसलिए भी मौजू हैं क्योंकि भारतीय किसान संघ और आरएसएस का संबंध गहरा है। ये यकीन कर पाना मुश्किल ही है कि संघ के नेता चाहते तो किसानों के मुद्दे पर सीधे सीएम से मुलाकात नहीं कर सकते थे। आरएसएस भी संघ के नेताओं को तवज्जो देने में कभी पीछे नहीं रहा। तो फिर इस तरह प्रदर्शन करने की नौबत क्यों आ पड़ी। हालांकि भोपाल में हुआ प्रदर्शन जंगी प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता। लेकिन क्या अब इस और धार देकर किसानों को ये यकीन दिलाना है कि किसान संघ ही उनका असल साथी है। ताकि आने वाले चुनाव से पहले किसान किसी और का दामन थामने से पहले किसान संघ के साथ हो लें। जो पहले से ही बीजेपी के साथ है। आखिरी और सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या किसान चुपचाप इस सियासी ड्रामेबाजी का हिस्सा बन जाएगा या अपना फैसला चुनाव के दिन ही सुनाएगा।