मध्य प्रदेश में झोपड़ी में लग रहे स्कूल, विकास यात्रा फिजूल! शिक्षा का अधिकार तो दे दिया पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नदारद

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Ruchi Verma
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मध्य प्रदेश में झोपड़ी में लग रहे स्कूल, विकास यात्रा फिजूल! शिक्षा का अधिकार तो दे दिया पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नदारद

BHOPAL: मध्य प्रदेश में नौ महीने बाद यानी नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले ही सत्तारूढ़ बीजेपी पूरी तरह से चुनावी मोड में आ गई है। 15 महीने छोड़ दिए जाए तो बीजेपी मप्र में इस साल सरकार बनाने के 20 साल पूरे करेगी। और बीजेपी के विधायक राज्य में विकास यात्राएं निकाल रहे हैं। इन यात्राओं के जरिए सरकार गांव-गांव और वार्डों तक पहुंचेगी। इसके जरिए सरकार जहां जमीनी हालात की नब्ज टटोलेगी, वहीं आमजन के सामने आ रही समस्याओं का भी निदान करेगी। बात अगर आम आदमी की जरूरतों को पूरा करने की हैं, तो राज्य के गरीब तबके के माता-पिता बड़े अरमानों से अपने बच्चों को सरकारी स्कूल पढ़ने के लिए भेजते हैं। ये सोचकर कि पढ़-लिखकर वे उनके सपने पूरे करेंगे। पर आज भी मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूल अपने ख़राब बुनियादी ढांचे और शिक्षा के स्तर के लिए जाने जाते हैं। कभी भी गिर सकने वाली झोपड़ी, स्कूल परिसर की दरकती दीवारें, अस्त-व्यस्त परिसर, जीर्ण-शीर्ण कक्षाएँ जहाँ बच्चों के बैठने की पूरी जगह भी न हो, अस्वच्छ शौचालय, बच्चों की क्लासेज लगाने के लिए रूम्स या जगह की कमी। अब ऐसे में ये उम्मीद कैसे की जा सकती हैं कि वहाँ जाने वाला बच्चा मन लगाकर पढ़ाई कर पाएगा? कुछ ऐसे ही मामले सामने आए है मध्य प्रदेश के पानसेमल, सेंधवा, राजपुर और राजधानी भोपाल से। जानने के लिए पढ़िए पूरी रिपोर्ट:





पानसेमल: रामगढ़ की पहाड़ियों के बीच 10 वर्षों से कच्ची झोपड़ी में चल रहा विद्यालय, एक बार हो चुका हैं हादसा





पानसेमल विकासखंड के ग्राम पंचायत पन्नाली के अंतर्गत आने वाले वन ग्राम खामघाट में एक विद्यालय ऐसा है... जो आज भी एक झोपड़ी में लगाया जा रहा है। प्राथमिक विद्यालय चारों ओर से पहाड़ी से घिरा है। विद्यालय करीब 9 से 10 वर्षों से झोपड़ी में संचालित हो रहा है। विद्यालय में दो अतिथि शिक्षक अध्ययन का कार्य करते हैं। विद्यालय में 28 से 30 बच्चे दर्ज हैं, जिनमें कक्षा 1 से 5 तक कक्षा संचालित हैं।





विद्यालय की अतिथि शिक्षक श्रीमती निर्मला अशोक पवार ने बताया कि वो 10 साल से इस विद्यालय में सेवा दे रही हैं। वो बताती हैं कि लगभग 4 से 5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचती हैं। विद्यालय ऐसे स्थान पर है कि पहाड़ का पानी बारिश के समय में सीधे स्कूल में आता है,जिसके कारण एक बार झोपड़ी गिर चुकी है। 



इस बारे में जन शिक्षक शांतिलाल से जानकारी लेने पर उन्होंने बताया: "मैंने कई बार प्रस्ताव बीआरसी को बना कर दिया है, लेकिन उसके बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।" 





महिला बाल विकास अधिकारी का कहना हैं कि इसमें भवन स्वीकृत हुआ था। पर दुरस्त होने के कारण सचिव द्वारा काम नही कराया गया। इसके बाद जब कलेक्टर डॉ राहुल हरिदास फटिंग से बात की गई तो वो कह रहे हैं जानकारी मंगवाई है, दिखवाते हैं। शायद कलेक्टर को तस्वीरों पर यकीन नहीं है इसलिए संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट मंगवाई है। इसी लालफीताशाही की वजह से बच्चों को एक अदद स्कूल की बिल्डिंग नहीं मिल सकी है।





बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए यहां के भवन की आवश्यकता है। पर लापरवाही का हाल ये हैं कि जिस शख्स की जमीन पर स्कूल संचालित हो रहा है वो खुद इस जमीन सरकार को दान में देने के लिए तैयार है। स्कूल की बिल्डिंग के लिए कई बार प्रस्ताव बीआरसी को भी बनाकर दिया गया। मगर एक दशक में कुछ नहीं हुआ।





सेंधवा:  8 वर्षों से स्कूल भवन अधूरा, झोपड़ी में संचालित हो रही कक्षाएँ





मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के सेंधवा विकासखंड के ग्राम झिरी जामली में काफी वक़्त से शाला भवन अधूरा पड़ा है। अब तो ये आधी अधूरी बिल्डिंग भी अब जर्जर हो चुकी है। वर्षों से स्कूल भवन अधूरा रहने के चलते प्राथमिक शाला में पहली से पांचवी तक की कक्षाएं एक झोपड़ी में संचालित हो रही है। विद्यालय में कुल 40 से अधिक बच्चे दर्ज हैं। और अतिथि शिक्षक ही इस विद्यालय का संचालन कर रहे हैं।





गांव वालों के मुताबिक ये बिल्डिंग पिछले 8 साल से अधूरी पड़ी है। बिल्डिंग बनने का काम शुरू हुआ। लेकिन बंद क्यों हो गया ये गांव वालों को नहीं पता। यहां के स्थानीय विधायक ग्यारसीलाल रावत कहते हैं कि विकासखंड के चार हजार गांवों में इसी तरह की अधूरी बिल्डिंगें है। सवाल उठ सकते हैं कि विधायक कांग्रेस के है इसलिए सवाल उठा रहे हैं। मगर इससे पहले तो बीजेपी के पूर्व मंत्री अंतरसिंह आर्य यहां से विधायक थे। तब भी तो कार्य नहीं हुआ! इस मामले में द सूत्र ने विकासखंड स्त्रोत समन्वयक सुरेश खन्ना से बात की तो उन्होंने अपनी तरफ से इस मामले की सारी कार्यवाही आरईएस विभाग को सौप दी है। इसलिए इस स्कूल के मामले में आज की स्थिति की जानकारी आरईएस विभाग से ही मिल सकती है:  सुरेश खन्ना, विकासखंड स्त्रोत समन्वयक: सर, इसका क्या है की जो आरईएस विभाग है। अभी आरईएस विभाग के पास ही मामले की सारी प्रक्रिया है। विकासखंड स्त्रोत समन्वयक: अब वर्तमान परिस्थिति क्या है, क्या नहीं। हमने तो सब आरईएस विभाग को दे दिया है। अब उसका वर्तमान स्थिति क्या है। जिले स्तर पर पेंडिंग है, किनके पास पेंडिंग है। यदि आप उनसे थोड़ा बात करें तो आपको एक्चुअल कंडीशन पता चलेगी।"





वहीँ, आरईएस विभाग से जब संपर्क किया गया तो जिम्मेदार विकास यात्रा में व्यस्त थे। ये तो इसकी टोपी उसके सिर वाला हाल रहा। सरकारी सिस्टम में ये न हो तो फिर वो कैसा सिस्टम। एक विभाग दूसरे विभाग पर बातें टालता है। और हाल क्या होता है ये झिरी जामली का खंडहर हो चुका स्कूल भवन बताता है।





भोपाल: स्कूल में नहीं हैं सभी बच्चों के बैठने के पर्याप्त व्यवस्था, प्लेग्राउंड नहीं, शौचालय ख़राब





अभी तक हमने बात की सूदूर जिलों में स्थित सरकारी स्कूलों के हाल की, लेकिन राजधानी भोपाल - सरकार बैठती है - के सरकारी स्कूलों के हाल भी कुछ ख़ास अच्छे नहीं है। भोपाल में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी वो बोर्ड जो पूरे प्रदेश में 10 वीं और 12 वीं की परीक्षाएं लेता है उससे से संबंधित स्कूल के हाल बेहाल है। यानी बोर्ड ही अपने स्कूल को ठीक से रख नहीं पा रहा है।





दरअसल, मामला भोपाल के बोर्ड कॉलोनी, रविशंकर नगर स्थित एकीकृत शासकीय माध्यमिक शाला का हैं, जहाँ जब डी सूत्र की टीम पहुंची। तो वहां काफी संख्या में बच्चे खेलते दिखे। देखकर लगा कि शायद यहाँ स्थिति अच्छी होगी। तभी इतनी संख्या में बच्चे दिख रहे हैं। पर असलियत यहाँ भी कुछ और ही निकली:





क्लास संचालित करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं: पहली से आठवीं तक के इस स्कूल में सभी बच्चों को बिठाकर क्लास संचालित करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं हैं। इस कारण सुबह कि शिफ्ट में पहली से पांचवी और डे शिफ्ट में छटवीं से आठवीं तक दो बार क्लासेस लगती है। कई बार सही तरीके से क्लासेज न लग पाने के कारण बच्चों के विषय के कोर्सेज समय पर पूरे नहीं हो पाते। इससे बच्चों की पढ़ाई पर साफ़ असर पड़ता हैं। इसके लिए आवेदन भी दिया गया हैं। पर अभी तक जमीनी कार्यवाही नहीं हुई हैं। स्कूल कि प्रिंसिपल कविता वर्मा तो ये भी बताती हैं कि यह कार्य बोर्ड मैनेजमेंट के चक्कर में फंसा हुआ हैं..क्योंकि वो चाहता हैं कि नए क्लासरूम बनाने के लिए जो पैसा मिले, वो उन्हें मिले क्योंकि उनकी जमीन पर स्कूल संचालित होता हैं। इस तरह शिक्षा विभाग और बोर्ड मैनेजमेंट के बीच मामला फंसा हुआ हैं।





खेलने के लिए प्लेग्राउंड नहीं: स्कूल में बच्चों के लिए खेलने के लिए प्लेग्राउंड नहीं हैं।टीचर्स बताते है कि बच्चे इस वजह से सड़क पर खेलते है। जिससे उनके एक्सीडेंट का डर बना रहता हैं। ऐसा नहीं हैं कि स्कूल के पास जगह नहीं हैं। परिसर के सामने ही काफी जगह हैं। अगर इसे ही सही करवा दिया जाए तो बच्चों के खेलने के लिए अच्छा प्लेग्राउंड बन सकता हैं।





शौचालय की हालत बेहद ख़राब: बच्चों, खासकर लड़कियों के स्कूल से ड्रॉपआउट होने का एक मुख्य कारण स्कूल में लड़कियों के लिए शौचालय न होना होता हैं। यहाँ लड़कियों के लिए शौचालय तो हैं पर ऐसी हालत में यही कि उसे उपयोग ही नहीं किया जा सकता। और लड़कों की शिकायत ये हैं कि उनके लिए शौचालय ही नहीं हैं। उनको बाहर जाना पड़ता हैं। इस स्कूल में करीब 300 लड़के-लड़कियां है। ऐसे में बच्चों के लिए टॉयलेट होना तो जरूरी है। आपको बता दें कि मप्र में लड़कियों के स्कूलों से ड्रॉपआउट होने के कई सारे कारणों में से ये भी एक बड़ा कारण है। साल 2021-22 की रिपोर्ट के मुताबिक, मप्र में 92 हजार 695 सरकारी स्कूल है। जिसमें करीब 94 लाख से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं और टीचर्स की संख्या है महज 3 लाख से ज्यादा। स्कूलों के हाल देखें तो 28 हजार से ज्यादा स्कूलों में बिजली कनेक्शन नहीं है, साढ़े चार हजार स्कूलों में पीने का पानी नहीं, ढाई हजार स्कूलों में टॉयलेट नहीं और पांच हजार से ज्यादा गर्ल्स स्कूलों में टॉयलेट नहीं है। और यही रिपोर्ट कहती है कि मप्र में करीब 21 हजार स्कूलों की बिल्डिंग टूटी फूटी है, 18 हजार स्कूलों की बिल्डिंग ज्याया टूटी फूटी है और 2 हजार स्कूल तो ऐसे है जहां बच्चों को बैठने के लिए इंतजाम ही नहीं है।





एक आंकड़ें के अनुसार







  • सरकारी स्कूलों की संख्या: 92695 (प्राइमरी: 58518/अपर प्राइमरी: 24755/सेकेंडरी: 4886/हायर सेकेंडरी:4536)



  • सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या: 9429734


  • सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या: 303935


  • स्कूल जिनमें चालू बिजली कनेक्शंस नहीं हैं: 28275


  • स्कूल जिनमें पीने का पानी उपलब्ध नहीं हैं: 4501


  • स्कूल जिनमें टॉयलेट की व्यवस्था नहीं हैं: 2304


  • स्कूल्ज जिनमें लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं हैं: 5862


  • वो स्कूल जहाँ चालू कंप्यूटर लैब फैसिलिटी नहीं हैं: 81732


  • वो स्कूल जहाँ इंटरनेट फैसिलिटी नहीं हैं: 76226


  • माध्यमिक शिक्षा वाले वो स्कूल जहाँ साइंस लैब की सुविधा उपलब्ध हैं: सिर्फ 4700






  • 21 हजार स्कूलों की बिल्डिंग टूटी-फूटी







    • मध्य प्रदेश के करीब 21 हजार स्कूल भवन क्षतिग्रस्त हैं



  • राज्य के 18 हजार  स्कूल भवन अधिक क्षति ग्रस्त हैं


  • करीब 2 हजार स्कूलों में विद्यार्थियों के बैठने के लिए कक्ष की व्यवस्था नहीं है 






  • सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत लाखों रुपये की लागत से सरकारी विद्यालयों के भवनों के निर्माण का दवा करती है। पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया के नारे के साथ ये दावे करती है कि वह राज्य के बच्चों के लिए शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने में कार्यरत है। इसके लिए वो सीएम राइस, उत्कृष्ट विद्यालय आदि खोल रही है...लेकिन सरकारी स्कूलों से आने वाली ख़बरें कुछ और ही तस्वीर दिखाती हैं- स्कूलों में टीचर्स की कमी है। बच्चो के लिए बुनियादी शिक्षा व्यवस्थाएं नहीं हैं, सालों से स्कूल झोपड़ियों में चल रहे हैं। तो फिर कैसे दावे और कैसी विकास यात्रा? 





    (इनपुट्स: पानसेमल- राकेश वैष्णव/  सेंधवा- प्रमोद सैनी)



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