BHOPAL. ऐसा लगता है कि बीते कुछ महीनों से सुर्खियों में उड़ान भर रहे प्रतीम लोधी के पर अचानक कतर दिए गए हैं। अभी तक ऐसा लग रहा था कि प्रीतम लोधी बीजेपी की मुश्किल बढ़ाएंगे। लेकिन बीजेपी ने कुछ इस तरह डैमेज कंट्रोल किया कि प्रीतम तो घर और घाट दोनों से बेजार हुए ही उन्हें पनाह देने वाला संगठन भी दो टुकड़ों में बंट गया।
बीजेपी की चतुराई, OBC महासभा की लड़ाई सड़क पर आई
बीजेपी से निष्कासन के बाद प्रीतम लोधी के समर्थन में जबरदस्त जनसैलाब उमड़ रहा था। हालात ये थे कि प्रीतम लोधी, बीजेपी के लिए कांग्रेस से भी बड़ा खतरा बनते नजर आ रहे थे। ओबीसी महासभा के साथ मिलकर प्रीतम लोधी खुद को चंबल और फिर बुंदेलखंड में भी कोई चमत्कार कर दिखाने के काबिल समझ रहे थे। उनके हर बयान पर बीजेपी खामोश ही रही। लेकिन ये खामोशी शायद किसी तूफान के आने का इशारा थी। ये तूफान भी कुछ यूं आया कि लोधी के नाम पर उछल रही ओबीसी महासभा के टुकड़े-टुकड़े कर गया। महासभा की लड़ाई सड़क पर आ चुकी है। बीजेपी के लिए खतरा बनती दिख रही ओबीसी महासभा फिलहाल खुद को संभाल ले वही बहुत है। क्योंकि जो सियासी ड्रामा शुरू हुआ और पल-पल बयान बदलते रहे वो साफ संकेत दे रहे हैं कि बहुत चतुराई से बीजेपी बड़े संकट से पार होने की स्थिति में पहुंच चुकी है।
प्रीतम लोधी के मुद्दे पर बंटी ओबीसी महासभा
एमपी में ओबीसी वोटर्स बीजेपी के लिए खास मायने रखते हैं। जिन्हें मनाए रखने के लिए कई जतन भी हो रहे हैं। खुद ओबीसी वर्ग से आने वाले सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए इस वर्ग को अपने पास रखना एक बड़ी चुनौती है। जिसे ललकार-ललकारकर और बड़ा बना दिया प्रीतम लोधी ने। जो निष्कासन के बाद से ओबीसी वर्ग के हीरो बन गए। साथ में एससी-एसटी भी आ जुटे। इस वर्ग के लिए लोधी सरकार के खिलाफ उनकी नाराजगी का फेस बन गए। तब से ये लगता रहा कि बस प्रीतम लोधी ओबीसी महासभा के साथ मिलकर चुनावी नतीजों को उलटकर रख देंगे। उलट न भी सके तो कम से कम कुछ प्रभावित तो करेंगे ही। अगस्त में निष्कासन के बाद से बीजेपी की नाक में दम करने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो अब तक कायम रहा। अब अचानक प्रीतम लोधी ओबीसी महासभा से भी निष्कासित कर दिए गए हैं। उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने के बाद बीजेपी ने तो पलट कर नहीं देखा लेकिन सिर्फ तीन माह में ही प्रीतम लोधी के दिन फिर फिर गए। या यूं कहें कि प्रीतम लोधी के चक्कर में ओबीसी महासभा के दिन फिर गए। जो लोधी के मुद्दे पर बंटी हुई नजर आई।
बीजेपी की डैमेज कंट्रोल की रणनीति
सियासी हलकों में इसे बीजेपी की ही रणनीति माना जा रहा है। जो काफी समय से ओबीसी तबके में हुए डैमेज कंट्रोल का तरीका ढूंढने में जुटी हुई थी। न जाने बीजेपी को कौन सी जादुई छड़ी मिली जो घूमी और प्रीतम बेवजह ओबीसी महासभा से बाहर कर दिए गए। उसके बाद देखते ही देखते खुद ओबीसी महासभा में दो टुकड़ों में टूट गई। दो फाड़ हुई ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का बयान कुछ और है प्रदेश अध्यक्ष की दलील कुछ और है। इस बीच प्रीतम लोधी ने जो बयान दिया वो तो इन दोनों के बयानों से ही उलट है।
कांग्रेस की उम्मीदों पर फिरा पानी
ओबीसी वर्ग को साधे रखना बीजेपी के लिए वैसे ही टेढ़ी खीर साबित हो रहा था। इस काम को और मुश्किल बना रहे थे प्रीतम लोधी और ओबीसी महासभा। जो अब तक फेविकॉल के मजबूत जोड़ की तरह साथ थे। पर अचानक ये जोड़ कमजोर पड़ा और दोनों छिटक कर दूर जा गिरे। इस टूट से ओबीसी महासभा को फायदा होना या नुकसान ये बाद में आंकलन करने का विषय है। फिलहाल तो दो फाड़ ओबीसी महासभा की वजह से कांग्रेस की उम्मीदों पर जरूर पानी फिर गया होगा। जबकि बीजेपी के लिए ये एक जीती हुई बाजी के समान है।
प्रीतम को लेकर ओबीसी महासभा का सियासी ड्रामा
प्रीतम लोधी को लेकर ओबीसी महासभा में सियासी ड्रामा पूरे दिन चला। सबसे पहले राष्ट्रीय इकाई के कार्यालय प्रभारी दिनेश कुमार ने दावा किया कि उन्होंने लोधी को निष्कासित कर दिया है। इसका लेटर भी मीडिया में वायरल हुआ। उसके कुछ ही देर बाद प्रदेश इकाई के अध्यक्ष जीतू लोधी ने निष्कासन की खबरों को खारिज कर एक और लेटर जारी किया। जिसमें प्रीतम लोधी के निष्कासन को कोरी अफवाह बताया गया। इस मुद्दे पर उनका बयान भी वायरल हुआ।
टूट का शिकार हो चुकी है ओबीसी महासभा
इन बयानों ने ये तो जाहिर कर दिया कि प्रीतम लोधी के मुद्दे पर ओबीसी महासभा ही टूट का शिकार हो चुकी है। इस बीच आए प्रीतम लोधी के बयान ने ये साफ कर दिया कि दाल में कुछ काला नहीं बहुत कुछ काला है। पिछड़े तबके की एकता को मजबूत करने का दावा करने वाले संगठन खुद कितना बंटे हुए हैं ये लोधी के बयान से साफ हो गया। लोधी ने दावा किया कि वो खुद महासभा से बाहर हो रहे हैं क्योंकि वो एससी-एसटी को साथ लेकर नहीं चल रही। सबको साथ लेकर चलने की चाह में वो सपा, बसपा, आप, जयस, भीम पार्टी और गोंडवाना को जोड़ने के काम में जुटे हुए हैं।
ओबीसी महासभा को लगा सदमा
इस मसले पर महासभा के जो भी दावे हों और प्रीतम लोधी की जो भी दलीलें हों। सब एकतरफ हैं। दिनभर चले तमाशे ने ये साफ कर दिया कि ओबीसी महासभा में ही फूट पड़ चुकी है। इसके बाद बीजेपी ने जरूर राहत की सांस ली होगी। सियासी तबके तो ये अंदेशा भी जता रहे हैं कि ओबीसी महासभा का ये हाल बीजेपी की छुपी हुई रणनीति की वजह से ही हुआ है। ये घटना ओबीसी महासभा के लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं है। जब तक महासभा इससे उभरेगी बीजेपी के पास तब तक ओबीसी तबके में पैठ गहरी करने का मौका है। जिसका सबसे बड़ा फेस खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान हैं। ये भी तय है कि ये तमाशा कांग्रेस की उम्मीदों पर भी भारी पड़ेगा।
चंबल में बढ़ने वाली हैं बीजेपी की मुश्किलें
ओबीसी महासभा का हर कदम लगातार ये इशारा कर रहा था कि बीजेपी की मुश्किलें चंबल में बढ़ने वाली हैं। ओबीसी समाज के लोगों पर हो रहे अत्याचार को मुद्दा बनाकर महासभा पहले ही नरेंद्र सिंह तोमर को वोट न देने का ऐलान कर चुकी है। ओबीसी आरक्षण न हो पाने पर निकाय चुनाव में बीजेपी ने घाटा झेला। उसके बाद से लगातार पार्टी इस समुदाय के लिए नई-नई घोषणा और चुनावी रणनीति तैयार कर रही थी। अंदर ही अंदर ये डर तो जरूर होगा कि ओबीसी महासभा कहीं बीजेपी की रणनीति पर पानी न फेर दे।
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प्रीतम के मुद्दे पर बीजेपी ने ली राहत की सांस
ओबीसी महासभा कुछ कमाल दिखा पाती उससे पहले ही टूटी नजर आ रही है। जिस प्रीतम लोधी के दम पर महासभा जमीन मजबूत कर रही थी वही प्रीतम लोधी महासभा की आंख की किरकिरी बन चुके हैं। बीजेपी को डैमेज पहुंचाने की कोशिश में महासभा ही भारी नुकसान का शिकार हो गई। इस पूरे घटनाक्रम के बाद ये भी माना जा सकता है कि बीजेपी के लिए प्रीतम लोधी एपिसोड ओवर हो चुका है। क्योंकि महासभा से भी निष्कासन के बाद अब लोधी के पास कोई बैनर नहीं बचा जो उनके शक्तिप्रदर्शन का हिस्सा बन सके। ये भी इत्तेफाक है कि सरकार ने चंद ही रोज पहले अपनी सालगिरह मनाई है। दो दिन के बाद ही सही देरी से मिले इस तोहफे से बीजेपी ने राहत की सांस जरूर ली होगी।