सुधा मूर्ति इन्फोसिस फाउंडेशन के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति की पत्नी और एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं। कुछ लोग महान् लक्ष्यों को हासिल करने का मकसद लेकर जिंदगी जीते हैं लेकिन सुधा मूर्ति एक ऐसी शख्सियत हैं जो जिंदगी को सादगी से जीने में यकीन रखती हैं। इसी सादगी की वजह से आज उन्होंने वो लक्ष्य हासिल किया है जिसके लिए लोग सपने देखते हैं। आइये बताते हैं आपको सुधा मूर्ति के जीवन की एक ऐसी ही प्रेरणा देने वाली कहानी।
इंजीनियरिंग करने के लिए मानी तीन शर्तें
सुधा मूर्ति ने उस समय इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की ठान ली थी जब समाज में लड़कियों के इंजीनियरिंग करने को लेकर कई तरह के सवाल उठा करते थे। सुधा जी ने जब पढ़ाई के लिए BVB कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में एडमिशन लिया तब प्रिंसिपल ने उनके सामने तीन शर्ते रख दी। पहली शर्त की उन्हें तीन सालों तक साडी में ही कॉलेज आना होगा । दूसरी शर्त वो कभी कैंटीन नहीं जाएंगी और आखिरी शर्त कॉलेज में किसी भी लड़के से वो बात नहीं कर सकती।
600 की स्ट्रेंथ में अकेली लड़की
सुधा जी ने यह सारी शर्तें मान ली जिनमे से दो पूरी भी की, लेकिन तीसरी शर्त कॉलेज के लड़कों ने ही पूरी नहीं होने दी। जब उन्होंने कॉलेज में टॉप किया तो लड़के खुद आगे से आकर उनसे बात करने लगे। 600 की स्ट्रेंथ वाले कॉलेज में वो एकलौती लड़की थी। जिस वजह से उन्हें कॉलेज के टाइम पर गर्ल्स टॉयलेट ना होने की वजह से काफी दिकत्तों का सामना करना पड़ा था। लेकिन इंफोसिस के शुरू होने के बाद उन्होंने देश भर में 16 हजार से अधिक टॉयलेट बनवाए ताकि किसी और को दिक्कत न हो।
टाटा इंडस्ट्रीज में काम करने वाली पहली महिला
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुधा मूर्ति का चयन टाटा इंडस्ट्रीज में हुआ। यहां उन्होंने खूब लगन से काम किया। जब वो पुणे में जॉब कर रहीं थी तभी उनकी मुलाकात नारायण मूर्ति से हुई। कुछ मुलाकातों के बाद ही दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। नारायण मूर्ति केवल नौकरी नहीं करना चाहते थे। वो अपना खुद का एक भी बिजनेस शुरू करने का सोच रहे थे पर उस वक्त उनके पास उतने पैसे नहीं थे।
सुधा ने इंफोसिस में लगाई अपनी पूंजी
भारत के साथ ही दुनिया की टॉप आईटी कम्पनी में गिनी जाने वाली इंफोसिस को भले ही नारायण मूर्ति ने शुरु किया हो पर इस की बैक बोन तो सुधा जी ही हैं। सुधा जी के सामने जब नारायण मूर्ति ने बिजनेस करने का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने उनका साथ दिया और अपनी पूंजी जमाकर नारायण को थमा दी। सुधा जी ने 10000 रूपए नारायण को दिए जिन्होंने इस कम्पनी की शुरुआत की जो आज पूरी दुनिया में नाम कमा रही है ।