News Strike: लोधी के बाद राजपूत समुदाय पर नजर, क्या है दिग्विजय सिंह की सियासी रणनीति ?

बीजेपी द्वारा 'मिस्टर बंटाधार' का टैग पाए दिग्विजय सिंह अब फिर से सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने हाल ही में असली बंटाधार कौन है, इस पर सवाल किया। उनकी सक्रियता जीतू पटवारी पर भारी पड़ सकती है।

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Harish Divekar
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news strike 18 july

Photograph: (The Sootr)

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मिस्टर बंटाधार इज बैक। अब बंटाधार कांग्रेस का होगा, बीजेपी का होगा या फिर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी का होगा ये देखने वाली बात होगी। इस नाम को सुनकर आप समझ ही गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। बिलकुल सही समझे आप, हमदिग्विजय सिंह की ही बात कर रहे हैं। जिन्हें मिस्टर बंटाधार का टैग दिया है बीजेपी ने।

बीस साल से ये नाम दिग्विजय सिंह के साथ चिपका हुआ है। फिर भी कभी उनकी सियासी ऊर्जा पर इसका कोई असर कभी नजर नहीं आया। पिछले दिनों तो उन्होंने सवाल भी पूछ लिया कि असली बंटाधार कौन है बताओ। आपने नोटिस किया होगा पिछले कुछ दिनों से दिग्विजय सिंह एकदम सक्रिय हुए हैं। उनकी इस सक्रियता का राज क्या है। और क्या ये सक्रियता जीतू पटवारी पर भारी नहीं पड़ेगी। 

साल दर साल चुनाव हारने के बाद और सत्ता से दूर होने के बाद लगता है कांग्रेस थक कर चूर हो चुकी है। ये हाल तब है जब कांग्रेस ने लीडरशिप में बड़े बदलाव भी किए हैं। पुराने नेताओं को हाशिए पर धकेल कर नए नेताओं को आगे लाया गया है। जीतू पटवारी अब प्रदेश में कांग्रेस का चेहरा हैं। और उमंग सिंगार, हेमंत कटारे जैसे युवा चेहरे विधानसभा में लीड कर रहे हैं। इसके बाद भी कांग्रेस में जान नजर नहीं आती।

पुराने नेताओं की तो बात ही क्या की जाए। वो जैसे प्रदेश की सियासत से नाउम्मीद हो कर चुप बैठ चुके हैं। कुछ ऐसे हैं जो या तो अब इस दुनिया में नहीं रहे या फिर पार्टी बदल चुके हैं। मसलन रामनिवास रावत, सुरेश पचौरी जैसे कांग्रेस के पुराने नेता अब कांग्रेसी नहीं रहे। कमलनाथ जैसे दिग्गज नेता किसी खोह में जाकर बैठे हुए से लगते हैं।

सबसे ज्यादा एक्टिव दिख रहे दिग्विजय सिंह

पंद्रह महीने सीएम रहने के बाद और पार्टी अध्यक्ष रहने के बाद भी कमलनाथ का सियासी गलियारों में कुछ अता पता नहीं है। जबकि राहुल गांधी दिल्ली में उनसे खास मुलाकात भी कर चुके हैं। इसके बाद भी सियासी पटल पर उभर कर आने की कमलनाथ की चाहत खत्म सी दिखाई देती है। सुप्त अवस्था में जा चुकी कांग्रेस के इस दौर में अगर कोई नेता ऐसा है जो आज भी सबसे ज्यादा एक्टिव दिख रहा है। इस उम्र में भी सबसे ज्यादा एक्टिव दिख रहा है वो हैं दिग्विजय सिंह। ये बिलकुल मत सोचिए कि हम इस तरह से दिग्विजय सिंह की तारीफों के पुल बांध रहे हैं। हम सिर्फ वही बात बोल रहे हैं जो नजर आ रही है। आप भी पिछले कुछ दिनों की सियासी खबरों पर गौर करेंगे तो इस बात से सहमत ही नजर आएंगे।

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दिग्विजय सिंह सियासत में खूब समझते हैं अपना कद

कांग्रेस की पुरानी और नई पीढ़ी के तमाम नेता एक तरफ और दिग्विजय सिंह एक तरफ जो फिर से खासे एक्टिव दिख रहे हैं। शुरुआत में लगा कि वो शायद चंबल के एरिया में ही एक्टिव होंगे। जब उन्होंने अशोकनगर में लोधी समुदाय के व्यक्ति पर हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई। उनके साथ उनके बेटे जयवर्धन सिंह भी नजर आए। दिग्विजय सिंह के तेवर काफी कुछ एग्रेसिव भी रहे।

उन्होंने न सिर्फ बीजेपी की सरकार पर निशाना साधा बल्कि सख्त तेवरों के साथ युवक को मल खिलाने वाले लोगों के बारे में भी पूछा। इस घटना को देखकर यही लगा कि शायद दिग्विजय सिंह अपने क्षेत्र चंबल में ही एक्टिव हैं। पर चंद ही रोज पहले वो हरदा में हुए लाठी चार्ज मामले पर भी उतने ही एक्टिव दिखे। जिसका दूर दूर तक चंबल से कोई लेना देना नहीं है। जाहिर है दिग्विजय सिंह सियासत में अपना कद खूब समझते हैं और एक एरिया में बंध कर रहने वाले नहीं है। 

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डिप्लोमेसी की भी है अच्छी समझ

ये उनकी सियासी समझ या कूटनीति का भी एक चेहरा हो सकता है। दिग्विजय सिंह को करीब से जानने वाले ये खूब जानते हैं कि एक पॉलिटिकल लीडर होने के साथ-साथ वो डिप्लोमेसी की भी खूब समझ रखते हैं। पिछले कुछ दिनों से वायरल हो रहे उनके और जयवर्धन के फुटेज दिग्गी डिप्लोमेसी की तरफ ही इशारा कर रहे हैं।

एकदम सेंसिटिव मामलों पर आवाज उठाना, सरकार पर तीखे हमले करना और पीड़ित लोगों के बीच पहुंच जाना। उसके बाद अपने वीडियोज को वायरल करवाना या खुद ही उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर करना। आलाकमान के दरवाजे तक ये बात पहुंचाने के लिए काफी है कि प्रदेश के मामलों पर वो पीसीसी के किसी दूसरे नेता, खासतौर से जीतू पटवारी से ज्यादा एक्टिव हैं। 

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कहीं जयवर्धन को हाईलाइट करना तो नहीं मकसद?

मुद्दों को लपकने और उन पर रिएक्ट करने की समझ दिग्विजय सिंह से ज्यादा प्रदेश के किसी और कांग्रेसी में नजर नहीं आती। क्या उनका ये अंदाज जीतू पटवारी पर भारी पड़ेगा या आने वाले दिनों में पड़ सकता है। इस दरम्यान अपने बेटे को साथ रख कर दिग्विजय सिंह जाहिरतौर पर उन्हें कोई सियासी ट्रेनिंग तो नहीं दे रहे होंगे। जयवर्धन सिंह को हाईलाइट कराने का ये मकसद तो नहीं कि आने वाले दिनों में वो प्रदेश में कांग्रेस की कमान संभाल सकें।

दिग्विजय सिंह की राजनीति का ये आलम तब है जब वो राहुल गांधी की गुड बुक्स में नहीं आते हैं। हमेशा से ही यही माना जाता रहा है कि राहुल गांधी दिग्विजय सिंह की राजनीति को ज्यादा पसंद नहीं करते हैं। हालांकि बहुत बार ये खबरें भी आई हैं कि अहम मुद्दों पर राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह की सलाह भी लेते रहे हैं। फिर भी उन्हें सीएम बनने का मौका नहीं दिया। दिग्विजय सिंह और राहुल गांधी की बॉन्डिंग पर कांग्रेस के ही अंदरखानों में तरह-तरह की बातें सुनने को मिल जाएंगी। लेकिन दिग्विजय सिंह के तेवर ये साफ जाहिर करते हैं कि वो आसानी से चुप बैठने वाले नहीं है।

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दिग्विजय के साए से नहीं उभर पा रही कांग्रेस

पार्टी ने लाख कोशिश की हो उन्हें हाशिए पर धकेलने की लेकिन दिग्विजय सिंह के साए से कांग्रेस पूरी तरह उभर भी नहीं पा रही है। इसे समझना है तो जीतू पटवारी की नई टीम को ही देख सकते हैं। जीतू पटवारी की कार्यकारिणी में 17 उपाध्यक्षों में से कई उपाध्यक्ष दिग्विजय सिंह के करीबी ही हैं। फिर वो चाहें प्रियव्रत सिंह हों, फूल सिंह बरैया या फिर आरिफ मसूद ही क्यों न हो। खुद जयवर्धन सिंह भी उपाध्यक्ष के ओहदे पर हैं।

नए सिरे से एक्टिव दिग्विजय सिंह के ताजा तेवर ये भी जता रहे हैं कि वो लोधी समुदाय के बाद अब राजपूत समाज की नाराजगी को कैश करने की कोशिश में हैं। लेकिन ये कोशिश पार्टी के हक में होगी। आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी का कद बढ़ाएगी या फिर पार्टी में दिग्विजय सिंह का कद बढ़ाएगी, जिसका फायदा जयवर्धन सिंह को होगा, ये भी देखने वाले बात होगी।

इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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