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Photograph: (THESOOTR)
NEWS STRIKE : मध्यप्रदेश के एक बॉयज हॉस्टल में हुई घटना ये इशारा कर रही है कि अगला विधानसभा चुनाव सिर्फ राजनीतिक दलों के बीच नहीं बल्कि जातियों के बीच भी लड़ा जाएगा। मध्यप्रदेश की राजनीति भी अब इस दिशा में चलती नजर आ रही है।
इस प्रदेश की छवि ऐसे स्टेट की रही है जो पॉलिटिकली बेहद डल या क्वाइट स्टेट माना जाता रहा है, लेकिन मध्यप्रदेश भी अब तासीर बदलता दिख रहा है। ताजा घटनाक्रम न सिर्फ पुलिस प्रशासन की मनमानी जता रहा है। बल्कि ये भी जाहिर कर रहा है कि इस तरह के मामलों की अनदेखी अगले चुनावों में बीजेपी पर भारी पड़ सकती है।
प्रदेश की राजनीति भी यूपी-बिहार की तर्ज पर
हरदा के एक होस्टल में जो कुछ भी हुआ वो स्टूडेंट्स और पुलिस के बीच हुई आम झड़प से कहीं ज्यादा है। इसे महज एक कैंपस की घटना मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ये घटना इशारा करती है कि प्रदेश में भी जातिगत भेदभाव का कीड़ा कुलबुलाने लगा है।
अगर हालात यही रहे तो आने वाले चुनावों में कोई शहर, कोई अंचल या वर्ग चुनाव में अहम नहीं होंगी। बल्कि, जातियां ही भाग्य विधाता होंगी। जिस जाति का दबदबा ज्यादा होगा वही किंग बनेगा या किंग मेकर बनेगा।
अगर हम ये कहें कि उत्तरप्रदेश या बिहार की तर्ज पर प्रदेश की राजनीति आगे बढ़ेगी तो भी कुछ गलत नहीं होगा। जातियों के सियासी समीकरण पर बात करने से पहले आपको हरदा की घटना बता देते हैं।
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पुलिस ने नाम पूछकर लाठियां मारी: करणी सेना
हरदा में करीब दो दिन पहले करणी सेना ने विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध प्रदर्शन को काबू में करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया। यहां तक तो सब कुछ सामान्य सी एक घटना या विरोध प्रदर्शन लग सकता है, लेकिन इसके बाद जो कुछ भी हुआ वो वाकई चौंकाने वाला है।
पुलिस की लाठियों की मार से बचने के लिए बहुत से लोग होस्टल में घुस गए। पुलिस भी उनके पीछे होस्टल में घुसी और जमकर लोगों की सुताई उड़ाई। ये मामला इतना बढ़ा कि राजपूत समाज के युवाओं ने इसकी तुलना पुलवामा की आतंकी घटना से भी कर दी है।
सोशल मीडिया पर बहुत से राजपूत युवाओं ने लिखा कि पुलवामा में धर्म पूछा गया था। यहां जाति पूछकर पुलिस ने मारा है। करणी सेना ने भी आरोप लगाया कि राजपूतों का नाम पूछ-पूछकर पुलिस ने लाठियां मारी हैं।
हिंदू राष्ट्र की बात करने वाले लोग कहां है: शैलेंद्र झाला
इस पूरी घटना का वीडियो खुद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है। उन्होंने होस्टल के बच्चों से बात की। इसके बाद उन्होंने पूरी घटना की जांच और कार्रवाई की मांग भी की है। इसके बाद से ही करणी सेना भी एक्टिव मोड में आ चुकी है। करणी सेना के संगठन मंत्री शैलेंद्र सिंह झाला ने एक विडियो जारी कर पूछा कि हिंदू राष्ट्र की बात करने वाले लोग कहां है। क्या राजपूत समुदाय हिंदू नहीं है।
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राजपूत समाज ने खटखटाया मानव अधिकार का दरवाजा
इन सियासी लोगों को कुछ देर के लिए अनदेखा कर दें तो राजपूत समाज का ही स्टेंड काफी चौंकाने वाला है। राजपूत समाज के संगठनों ने इस घटना पर मानव अधिकार का दरवाजा खटखटाया है और जांच की मांग की है। राजपूत समाज ने पूरे मामले पर नाराजगी जाहिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
इस मामले में राज्य सरकार की तरफ से कोई खास रिएक्शन नहीं आया है। लेकिन समाज विशेष के खिलाफ पुलिस की नाराजगी, पुलिस के एक्शन पर समाज का रिएक्शन और कांग्रेस का इस मुद्दे पर आगे आकर मांग उठाना जाहिर करता है कि कांग्रेस भी जातियों के गेम में पीछे रहने वाली नहीं है। इस बात की अनदेखी करना आने वाले समय में बीजेपी पर भारी भी पड़ सकता है।
पिछली सरकार में समाजों से जुड़े बोर्ड भी किए थे गठित
ये घटना साफ इशारा करती है कि मध्यप्रदेश की फिजा में भी यूपी बिहार का रंग घुलता जा रहा है। जातियों की सोशल इंजीनियरिंग करके चुनाव जीतने का चलन विधानसभा चुनाव पर हावी हो सकता है। इसकी शुरुआत खुद शिवराज सिंह चौहान ने अपने कार्यकाल से ही कर दी थी। शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में जातियों का संतुलन बनाने की कोशिश होती रही। उन्होंने पिछली सरकार में अलग-अलग समाजों से जुड़े बोर्ड भी गठित किए।
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40 से 45 सीटों पर दमखम रखता है राजपूत समाज
एक मोटे मोटे आकलन के अनुसार देखें तो यूपी से सटे इलाकों में यादव समाज का दबदबा है। बुंदेलखंड और चंबल के कुछ हिस्सों में यादव समाज की आबादी 80 से 90 लाख तक है। इन सीटों पर कुशवाहा समाज का भी दखल रहता है।
बुंदेलखंड की करीब 24 सीटें ऐसी हैं जहां इस समाज का वोट गेमचेंजर बन जाता है। शायद इसलिए शिवराज सरकार में कुशवाहा समाज कल्याण बोर्ड भी बनाया गया था। राजपूत समाज भी 40 से 45 सीटों पर दमखम रखते हैं। विंध्य की बात करें तो यहां सवर्ण खासतौर से ब्राह्मणों का मत मायने रखता हैं। इस इलाके में 14 प्रतिशत के करीब ब्राह्मण वोटर्स हैं।
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आगे बारीक सोशल इंजीनियरिंग की जरूरत
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी का भी एक सर्वे है उसके मुताबिक राज्य के 29 प्रतिशत सवर्ण वोटर इसी क्षेत्र से आते हैं। इसके अलावा ओबीसी वर्ग का 45 सीटों पर दबदबा है। एससी वोटर्स 40 सीटों पर और एसटी वोटर्स करीब 50 सीटों पर असर डालते हैं।
ये अनुमान सिर्फ वर्गों के आधार पर है। अभी वर्गों के आधार पर की गई सोशल इंजीनियरिंग से ही मध्यप्रदेश में जीत की राह आसान हो जाती है, लेकिन जिस तरह से जातिगत जनगणना की बात हो रही है और अलग-अलग जातियां अपना दबदबा जाहिर कर रही हैं। उसे देखकर ये कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में बारीक से बारीक सोशल इंजीनियरिंग करने की जरूरत पड़ सकती है।
इसलिए हरदा जैसी घटनाओं पर गौर करना बेहद जरूरी है। क्योंकि जैसे बूंद बूंद से घड़ा भरता है वैसे ही छोटी-छोटी घटनाएं ही मतदाता के गुस्से के घड़े को भर देती हैं और खामियाजा हार में बदल सकता है।
News Strike Harish Divekar | न्यूज स्ट्राइक | न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर
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