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Photograph: (THESOOTR)
NEWS STRIKE (न्यूज स्ट्राइक): मध्यप्रदेश में बीजेपी सरकार अक्सर ये दावा करती है कि सरकार जनसेवा के रास्ते पर है। अफसरशाही के नहीं, लेकिन जब राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों से गुजरना होता है तो कुछ और ही आहटें सुनाई देती हैं। हर गलियारे की कानाफूसी यही कहती है कि अफसर मंत्रियों पर आज भी हावी हैं।
ऐसे अफसरों की गिनती एक दो में नहीं है। करीब एक दर्जन से ज्यादा मंत्री अपने अफसरों की मनमानी के शिकार हैं। या अफसर उन पर हावी हैं या फिर टकराव की स्थिति है। हम आपको बताते हैं ऐसे मंत्रियों का हाल जो अफसरों से परेशान हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो तालमेल के साथ काम कर रहे हैं। चलिए जानते हैं एक-एक मंत्री का नाम।
मध्यप्रदेश में अफसरशाही शबाब पर
नई सरकार को तकरीबन दो साल का समय पूरा हो चुका है। सत्ता की जिम्मेदारी थामते ही नई सरकार ने ये मैसेज देने की पूरी कोशिश की थी, कि इस बार जनता की चलेगी अफसरों की नहीं। पर इतने समय बाद भी हालात कुछ अलग ही हैं। अफसरशाही पूरे शबाब पर हैं और मंत्रियों की सुनने वाला शायद कोई नहीं है।
इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि करीब एक दर्जन से ज्यादा मंत्रियों ने अपने ही विभाग के आला अधिकारियों के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है। कुछ ने तबादले की सिफारिश तक कर डाली है। पर अब तक उस पर कोई अमल नहीं हुआ। कहीं टकराव तो कहीं मन मुटाव की स्थिति बनी ही हुई है।
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सरकार के भीतर बढ़ी है संवाद की कमी
मंत्रियों और अफसरों के बीच तालमेल न होना कोई नई बात नहीं, लेकिन जिस पैमाने पर आज असहमति दिख रही है। वो संकेत देती है कि सरकार के भीतर संवाद की कमी बढ़ी है।
बड़े विभागों से लेकर छोटे मंत्रालयों तक कहीं न कहीं कोल्ड वॉर के आसार बने ही हुए हैं। हालात ये हैं कि आदेश देने वालों और आदेश मानने वालों के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है।
- सबसे पहले बात करते हैं मोहन सरकार के उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा की। जगदीश देवड़ा वाणिज्यिक विभाग की कमान संभाल रहे हैं। इस विभाग के प्रमुख सचिव अमित राठौर से तो उनकी पटरी बैठ रही है, लेकिन वित्त विभाग में मामला जरा गड़बड़ है। वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव मनीष रस्तोगी से उनके संबंध ठीक ही ठाक हैं।
- कैलाश विजयवर्गीय भी मोहन कैबीनेट के काफी सीनियर नेता हैं। उनके विभाग यानी कि नगरीय विकास और आवास विभाग के अपर प्रमुख सचिव हैं संजय दुबे। दोनों के बीच अब हालात बेहतर हैं। पर एक समय ऐसा था जब दोनों के संबंध ठीक नहीं थे। तब दुबे इंदौर के संभागायुक्त थे।
- बात करते हैं एक और सीनियर मंत्री की। ये मंत्री हैं प्रहलाद पटेल। इनके विभाग में मामला थोड़ा ज्यादा गड़बड़ है। पंचायत और ग्रामीण विकास में उनके मातहत हैं अपर मुख्य सचिव दीपाली रस्तोगी। बताया जाता है कि मंत्रीजी रस्तोगी के काम से संतुष्ट नहीं हैं। अंदर की खबर ये है कि तबादलों के मामले में मंत्रीजी ने बंगले से एक नोटशीट भेजी थी, लेकिन उस पर रस्तोगी ने कोई संशोधन नहीं किया। इस बात पर पटेल इस कदर नाराज हुए कि सीएम तक भनक पहुंच गई।
- मोहन कैबीनेट में एक और कद्दावर मंत्री और डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला का अनुभव अफसरों के साथ सामान्य तालमेल में मददगार साबित हो रहा है, लेकिन इसका असर कामकाज पर दिख रहा है। प्रशासनिक गलियारों में अक्सर ये सुगबुगाहट सुनने को मिल जाती है कि मंत्रीजी के स्वास्थ्य विभाग में काम की रफ्तार बहुत धीमी है। क्या बनाकर रखने के चक्कर में मंत्रीजी सुस्ती को मंजूर कर रहे हैं।
- कुंवर विजय शाह मोहन कैबिनेट के शायद सबसे पॉपुलर मंत्री हैं, लेकिन काम की वजह से नहीं अपने बयानों की वजह से। पर जनजातीय कार्य विभाग में हालात जरा उलट हैं। मंत्रीजी और प्रमुख सचिव गुलशन बामरा के बीच सब कुछ ठीक है। शायद मंत्रीजी के विवादित कमेंट्स विभाग के भीतर सुनाई नहीं देते। गुलशन बामरा काफी अनुशासित और नियम कायदे पसंद करने वाले अफसर बताए जाते हैं। सैन्य अधिकारी सोफिया कुरैशी पर दिए बयान के बाद से मंत्रीजी के तेवर भी ठंडे ही चल रहे हैं।
- राकेश सिंह जरूर थोड़े परेशान हैं। उनके पास लोक निर्माण विभाग का जिम्मा है और यहां अफसर और मंत्री के बीच ही मजबूत दीवार खिंची हुई है। बताया जाता है कि राकेश सिंह और प्रमुख सचिव सुखवीर सिंह के बीच का तालमेल कमजोर है।
- शिक्षा विभाग के हालात भी ठीक नहीं है। मंत्री उदय प्रताप सिंह और सचिव संजय गोयल के बीच ज्यादा पट नहीं रही है। शिक्षकों के तबादलों के समय सचिव के आगे मंत्रीजी की भी नहीं चली। नाराज मंत्री ने मुख्यमंत्री से शिकायतें भी कीं।
- परिवहन राजस्व विभाग में प्रमुख सचिव विवेक पोरवाल से मंत्री करण सिंह वर्मा की पटरी नहीं बैठ रही। पटवारियों के तबादलों को लेकर नाराजगी इतनी बढ़ी कि मामला कैबिनेट में उठा। इससे साफ है कि संवाद की जगह अब आरोपों ने ले ली है।
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कुछ विभागों में बढ़िया तालमेल
कुछ ऐसे विभाग भी है जहां मंत्री और अफसर बैलेंस बनाकर चल रहे हैं। इसमें नाम आता है संपत्तिया उइके और पी नरहरी का जो पीएचई को ठीक तरह से संभाल रहे हैं।
जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट और राजेश राजौरा भी तालमेल बनाकर चल रहे हैं। कृषि विभाग के एंदल सिंह कंसाना पर भी अफसर हावी नहीं है।
गोविंद सिंह राजपूत भी अफसरों के दबदबे का शिकार नहीं हैं। विश्वास सांरग के खेल विभाग और सहकारिता दोनों ही जगह के अफसरों से तालमेल ठीक है।
सभी के हालात ऐसे नहीं हैं। नागर सिंह चौहान और कृष्णा गौर जैसे मंत्री अपने विभागीय प्रमुखों से परेशान हैं। कहा जा रहा है कि उनके पत्रों का जवाब तक नहीं दिया जा रहा। यानी मंत्री आदेश देते हैं और सचिवालय से आदेश आता है कि प्रक्रिया चल रही है।
तालमेल ठीक नहीं तो फैसले आखिर ले कौन रहा है...
कुल मिलाकर, मप्र सरकार में सुशासन का आदर्श फिलहाल अफसरशाही के व्यवहार में कहीं गुम सा दिखता है। सरकार के दो साल पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन प्रशासनिक तालमेल की कमी ने कई मंत्रियों की नाराजगी बढ़ा दी है। जब मंत्री ही अपने विभागों में प्रभावी न दिखें तो सवाल उठना लाजमी है कि आखिर फैसले ले कौन रहा है।
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