News Strike: देश की सियासत पर हावी होंगे ये तीन अहम मुद्दे, कांग्रेस या बीजेपी किसे होगा फायदा, किसे नुकसान ?

आने वाले चुनावों में जातिगत जनगणना, परिसीमन और महिला आरक्षण अहम मुद्दे बनेंगे। जातिगत जनगणना पर सरकार ने जल्दबाजी में निर्णय लिया है। इस मुद्दे से सामाजिक न्याय और सत्ता-संतुलन प्रभावित होंगे।

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Harish Divekar
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news strike 24 june

Photograph: (The Sootr)

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NEWS STRIKE: अब तक आपने बहुत से लोकसभा और विधानसभा चुनाव देखे होंगे। आपमें से कई लोगों ने अलग-अलग मुद्दों को ध्यान में रखते हुए वोटिंग भी की होगी। चुनाव कोई से भी हों कुछ मुद्दे अक्सर ही पुराने होते हैं। लेकिन आने वाले समय में राजनीति भी कुछ अलग होगी और अहम मुद्दे भी। इस साल होने वाले बिहार चुनाव से लेकर आने वाले सभी चुनाव मूल रूप से तीन मुद्दों के इर्द गिर्द घूमते नजर आएंगे। लेकिन इन तीन मुद्दों में रोजगार, गरीबी जैसे इश्यूज शामिल नहीं होंगे।

हम जिन तीन मुद्दों की बात कर रहे हैं, वो हैं जातिगत जनगणना, परिसीमन और महिला आरक्षण। आने वाले दिनों में आप देखेंगे कि ये तीन हर चुनाव से पहले अहम मुद्दे बन रहे होंगे। जातिगत जनगणना का मुद्दा तो अभी से ही जोर पकड़ चुका है। ये तीनों मुद्दे नीतिगत रूप से बेहद अहम हैं। इसके अलावा सामाजिक न्याय, प्रतिनिधित्व और सत्ता-संतुलन की पूरी बुनियाद को प्रभावित करेंगे। 

बिहार चुनाव सिर पर हैं जिसे देखते हुए केंद्र सरकार ने जल्दबाजी में जातिगत जनगणना करवाने का ऐलान कर दिया है। जल्दबाजी इसलिए भी थी क्योंकि विपक्ष इसे एक बड़ा मुद्दा बना सकता था। कांग्रेस इस मुद्दे को कैश कराने के पूरे मूड में थी। लेकिन बीजेपी ने इस मुद्दे की हवा ही निकाल दी। अब जातिगत जनगणना कराने की तैयारियां जोरों पर हैं। सब कुछ ठीक रहा तो मार्च 2027 की रेफरेंस डेट से जातिगत जनगणना भी शुरू हो जाएगी। पहाड़ी राज्यों में जातीय जनगणना का समय अक्टूबर 2026 रखा गया है। 

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जातीय जनगणना इसलिए जरूरी

इस जनगणना की जरूरत काफी लंबे समय से महसूस की जा रही है। विपक्ष का मानना है कि ओबीसी वर्ग की सही आबादी जानने के लिए ये जनगणना बेहद जरूरी है क्योंकि अब तक पुराने आंकड़ों के आधार पर ही उन्हें योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। अब तक जो आंकड़े इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। वो इस संदर्भ में करीब नब्बे साल पुराने हो चुके हैं।

जातिगत जनगणना साल 2011 में भी हुई थी। लेकिन दूसरे दलों के दबाव के चलते आंकड़े जारी नहीं किए गए। जब से कांग्रेस विपक्ष में बैठी है। तब से लगातार वो इस जनगणना की मांग करती रही है। ये तय है कि जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण की फिर से समीक्षा होगी। योजनाओं पर भी विचार होगा, साथ ही सत्ता में ओबीसी की साझेदारी पर नई बहस होना भी तय ही होगा।

परिसीमन का मुद्दा पकड़ेगा जोर

एक बार जनगणना हो गई तो फिर परिसीमन का मुद्दा भी जोर पकड़ेगा। ये वो मुद्दा है जो देश का पूरा सियासी नक्शा ही बदल सकता है। 2026 के बाद होने वाला परिसीमन भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा गेमचेंजर साबित हो सकता है। जनगणना के बाद जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन होगा।

परिसीमन की चर्चा के बाद से दक्षिण के राज्यों में इसका लगातार विरोध हो रहा है। खासतौर से तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेस जैसे राज्य इसका विरोध कर रहे हैं। डर इस बात का है कि जिन राज्यों की जनसंख्या कम हो गई है। उन राज्यों का प्रतिनिधित्व भी लोकसभा में कम हो सकता है। परिसीमन का असर मध्यप्रदेश की राजनीति पर भी पड़ेगा। माना जा सकता है कि मध्यप्रदेश में जनसंख्या वृद्धि हुई ही होगी। इसके आधार पर प्रदेश की वजनदारी संसद में भी बढ़ सकती है।

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महिला आरक्षण का मुद्दा भी होगा अहम

इन दो मुद्दों के अलावा महिला आरक्षण का मुद्दा भी ऐसा है जो साल दर साल रबर की तरह खिंचता चला जा रहा है। कांग्रेस बीजेपी समेत हर सियासी दल इस मुद्दे की पैरवी जरूर करता है। लेकिन 33 प्रतिशत आरक्षण देने से पीछे हो जाता है। लेकिन परिसीमन के बाद हालात बदल सकते हैं। जनगणना के बाद महिलाओं की संख्या में कितना इजाफा हुआ है वो सीटों के आरक्षण की तस्वीर भी जरूर बदलेगा या बदलने पर मजबूर जरूर करेगा।

सितंबर 2023 में संसद ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम पास भी किया जा चुका है। इसमें 33% महिला आरक्षण की घोषणा की गई। लेकिन, ये भी तय किया गया था कि आरक्षण लागू होगा परिसीमन और जनगणना के बाद।
जाति का हिसाब, जनसंख्या का संतुलन और महिलाओं की भागीदारी, ये तीन मुद्दे अगले दस सालों तक भारतीय लोकतंत्र की दिशा तय करेंगे। इन पर पार्टी लाइनें खिंचेंगी, नए गठबंधन बनेंगे और चुनावी घोषणा-पत्रों की प्राथमिकताएं भी तय होंगी।

इस नियमित कॉलम के लेखक हरीश दिवेकर मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं

News Strike Harish Divekar | न्यूज स्ट्राइक | MP | बिहार विधानसभा चुनाव 

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