News Strike: Transfer फॉर्मूले की आड़ में मंत्रियों पर भारी पड़े अफसर, हर विभाग में हुई नई करामात !

मध्यप्रदेश में तबादलों से रोक केवल 47 दिन के लिए ही हटी थी जिसे हम करीब डेढ़ माह का ही वक्त मान सकते हैं। इतने कम समय में ही मंत्री और अफसर आमने सामने हो गए।

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Harish Divekar
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news strike 23 june

Photograph: (The Sootr)

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मध्यप्रदेश में तबादलों का सीजन मतलब गलतियों, गफलतों और कुछ हद तक विवादों का सीजन। इस बार तो इस सीजन में मंत्री और अफसरों में ही आपस में ठन गई है। तबादलों के एक फॉर्मूला मंत्री और अफसरों के बीच तनातनी का कारण बना। जिस विभाग का जैसे मन चाहा, उसने इन फॉर्मूलों को अपने कंफर्ट के हिसाब से यूज किया। इस मामले पर क्या-क्या बात की जाए। मुद्दा कोई एक नहीं है। तबादलों से रोक केवल 47 दिन के लिए ही हटी थी जिसे हम करीब डेढ़ माह का ही वक्त मान सकते हैं। इतने कम समय में ही मंत्री और अफसर आमने सामने हो गए। कुछ विभाग ऐसे भी हैं जहां तबादलों के नाम पर बड़ी चूक सामने आई। माजरा थोड़ा लंबा है। किस विभाग में तबादले के नाम पर क्या क्या हुआ ये जरा ध्यान से पढ़िएगा।

तबादलों का सीजन मलाईदार सीजन भी कहा जा सकता है। खासतौर से मंत्री के आसपास जमे अफसर और स्टाफ के लिए। ये हम नहीं कहते, लेकिन हर बार तबादलों के दौर में सूत्र ऐसी खबरें बताते रहे हैं कि फलां तबादले के लिए फलां मंत्री के स्टाफ ने रुपयों की डिमांड की। यानी वारे न्यारे होना तो तय है। क्या इसलिए तबादलों का काम एक निश्चित समय सीमा में नहीं किया जाता। इस बार ट्रांसफर विंडो करीब 47 दिन के लिए खोली गई। कुछ विभाग तो ऐसे थे जिन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ ट्रांसफर का काम निपटाया। लेकिन कुछ विभागों में ये काम आखिरी दिनों तक के लिए पेंडिंग रहा।

तबादलों का काम मुलतबी रखने की भी खास वजह रही है। सरकारी विभाग के हलकों में कहा जाता है कि जितनी लेट प्रक्रिया होगी तबादलों के लिए बोली उतनी ही ज्यादा लगेगी। यानी किसी शख्स को किसी खास शहर में ट्रांसफर चाहिए तो वो जितना ज्यादा हो सकेगा उतनी डिमांड पूरी करेगा। शायद इसलिए तबादलों के दौर में अलग-अलग खबरें सुनने को मिलती हैं।

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मंत्री बनाम अफसर बना तबादलों का सीजन 

इस बार तबादलों का सीजन मंत्री बनाम अफसर भी बन गया। तबादलों की जो लिस्ट जारी हुई उससे मंत्री, विधायक और कई कर्मचारी भी नाराज बताए जा रहे हैं। ये टकराव इस कदर बढ़ा कि पिछले दिनों हुए कैबीनेट की बैठक में भी मंत्रियों ने अफसरों के नाम पर नाराजगी जताई और सीएम से शिकायत में कहा कि अफसर अपनी मनमर्जी से ट्रांसफर कर रहे हैं।

मंत्रियों की मंशा ये थी कि वो कुछ दागी अफसरों को भी विभाग से हटा सकें। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आपको बता दें कि पहले तबादलों से रोक केवल 1 मई से 30 मई तक के लिए ही थी। उसके बाद इसे 17 जून तक के लिए बढ़ा दिया गया। इसके बावजूद कुछ विभाग दो फीसदी से ज्यादा तबादले नहीं दे सका।

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मंत्रियों की बताई लिस्ट भी रोकी

अब आपको वो फॉर्मूला बताते हैं जिसकी वजह से कहीं मंत्रियों की बताई लिस्ट रोक दी गई। तो कहीं उसे आधार बनाकर तबादले कर दिए गए। ये तीन फॉर्मूले थे म्यूचुअल अंडरस्टैडिंग पर तबादला। मान लीजिए कि किसी एक विभाग का एक व्यक्ति भोपाल में पदस्थ है और दूसरा इंदौर में। और, दोनों अपने शहर एक्सचेंज करना चाहते हैं तो इस आधार पर तबादला हो सकता है।

दूसरा फॉर्मूला है गंभीर बीमारी जैसे कैंसर या ब्रेन ट्यूमर की स्थिति में ट्रांसफर किया जाए। और तीसरा फॉर्मूला है कोई महिला कर्मचारी अगर अपने घर के शहर में पदस्थ होना चाहती है तो उसे ट्रांसफर दिया जाए। अफसरों ने कुछ मंत्रियों की सिफारिश ये कहते हुए रिजेक्ट कर दी कि वो इन फॉर्मूलों को पूरा नहीं करती जबकि आजीविका मिशन, आरईएस, पंचायत राज समेत कुछ ऐसे विभाग हैं जिन्होंने इस फॉर्मूले को दरकिनार कर दिया।

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तबादलों के नाम पर जबरदस्त गफलत

अब उन विभागों के बारे में बात करते हैं जहां तबादलों के नाम पर जबरदस्त गफलत हुई। सबसे पहले बात करते हैं उस नेता कि जो इस बार सीएम पद का प्रबल दावेदार था और अब मोहन कैबिनेट का कद्दावर मंत्री हैं। ये नेता हैं प्रहलाद पटेल। बताया जा रहा है कि तीन फॉर्मूले के आधार पर अफसरों ने उन्हीं की सिफारिशों को रद्द किया है। उनके विभाग के अफसरों ने हार्ट से संबंधित बीमारी को गंभीर बीमारी नहीं माना और सिफारिश रिजेक्ट कर दी।

राजस्व विभाग से भी कुछ ऐसी ही खबरें सुनने को मिली। सूत्रों की माने तो मंत्री करण सिंह वर्मा की लिस्ट में प्रमुख सचिव विवेक पोरवाल और भू अभिलेख आयुक्त अनुभा श्रीवास्तव ने जबरदस्त तरीके से कैंची चलाई। जिसकी वजह से बहुत कम लोगों का ट्रांसफर हो सका। विभाग में तहसीलदार, नायब तहसीलदार जैसे पदों पर केवल ढाई प्रतिशत तक ही ट्रांसफर हुए। सीएम से शिकायत के बाद इस आंकड़े में थोड़ा इजाफा हुआ।

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ट्रांसफर में सामने आई काफी गफलत

स्कूल महकमे की बात करना तो सबसे ज्यादा लाजमी है। शिक्षा विभाग की वजह से ही तबादलों की डेट को बढ़ाया गया था। उसके बाद भी इस मामले में इस विभाग में बहुत सारे अजीबोगरीब हालात नजर आए। खबर तो ये भी थी कि मंत्री के फोन से परेशान होकर लोक शिक्षण आयुक्त शिल्पा गुप्ता और संचालक के के द्विवेदी ने अपने फोन भी ऑफ कर लिए थे। गफलत इस कदर हुई कि जो ट्रांसफर हो गए। उस के बाद एक ही स्कूल में एक ही सब्जेक्ट के लिए दो दो टीचर्स हो गए या फिर दो दो प्रिंसिपल हो गए। कुछ टीचर्स ऐसे थे जिन्होंने डिमांड किसी और स्कूल की, की थी। लेकिन उनका ट्रांसफर किसी और स्कूल में कर दिया गया।

ऐसा ही हाल डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा के विभाग में भी नजर आया। वाणिज्य कर विभाग में ऐसे कई पद हैं जहां अब एक साथ दो दो अफसर हो गए हैं। क्योंकि एक का ट्रांसफर कर दिया गया लेकिन दूसरे को हटाया नहीं गया। मंडीदीप, नरसिंहपुर, भोपाल, सागर और टीकमगढ़ से भी ऐसी ही खबरें सामने आईं। बात करें दूसरे डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल की तो उन्होंने तो बंगले पर ही नोटिस चस्पा करवा दिया कि तबादलों के लिए कोई उनसे संपर्क न करे। बताया गया कि मंत्रीजी चुनिंदा मामलों पर ही सिफारिश करेंगे।

कई विभागों में दिखी लेटलतीफी

जनजातीय कार्य विभाग में मंत्री और अफसर का मनमुटाव तो नहीं दिखा लेकिन लेतलाली साफ नजर आई। ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की लिस्ट को भी उनके विभाग के अफसरों ने खास तवज्जो नहीं दी। जल संसाधन विभाग की लिस्ट में तो जो हुआ उसका कहना ही क्या। यहां लिस्ट बनाते-बनाते सहायक ग्रेड कैडर के एक कर्मचारी ने ही नया नाम जोड़ दिया। जिसके बाद उस कर्मचारी पर कार्रवाई भी हुई। ऐसा एक मामला तो पकड़ में आ गया। पर इसकी क्या गारंटी कि ऐसा किसी और कर्मचारी ने नहीं किया होगा या किसी और विभाग में नहीं हुआ होगा।

इतने उदाहरणों से तो आप समझ ही गए होंगे कि मध्यप्रदेश में तबादलों के नाम पर क्या-क्या हो चुका है। ये प्रक्रिया इस तरफ भी इशारा कर रही है कि मंत्री जब अपनी मर्जी से तबादले ही नहीं करवा पा रहे तो और काम कैसे होंगे। इसे अलार्म समझते हुए अफसरशाही की लगाम खींचनी शुरू कर दी जानी चाहिए वर्ना पानी सिर के ऊपर से गुजरते देर नहीं लगेगी।

(इस नियमित कॉलम के लेखक हरीश दिवेकर मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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