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Photograph: (THESOOTR)
मध्यप्रदेश पुलिस विभाग में एक तबादले आदेश को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। मामला सतना में पदस्थ सहायक उप निरीक्षक (ASI) अर्जुन प्रसाद पांडे से जुड़ा है, जिन्हें 11 जून 2025 को एक प्रशासनिक आदेश के तहत भोपाल स्थित डायल-100 यूनिट में स्थानांतरित किया गया था। इस ट्रांसफर आदेश को याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और कोर्ट ने उनकी दलीलें सुनने के बाद अस्थायी राहत देते हुए तबादले के आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने साफ किया है कि अगले आदेश तक अर्जुन पांडे सतना में ही पदस्थ रहेंगे।
ADG रेडियो के आदेश पर हुए थे 89 तबादले
दरअसल, 11 जून 2025 को भोपाल स्थित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक रेडियो ( ADGP ) द्वारा एक ट्रांसफर आदेश जारी किया गया था, जिसमें कुल 89 पुलिसकर्मियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया गया था। इस लिस्ट में सहायक उप निरीक्षक (ASI), उप निरीक्षक (SI) और आरक्षक जैसे विभिन्न स्तरों के पुलिस कर्मी शामिल थे। यह आदेश राज्य भर में एक साथ लागू किया गया, लेकिन इसमें नियमानुसार पुलिस स्थापना बोर्ड की भूमिका नजर नहीं आई, जो इस तरह के ट्रांसफर के लिए नियमअनुसार जरूरी होती है।
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नियमों के खिलाफ जारी हुआ ट्रांसफर आर्डर
अर्जुन पांडे की ओर से जबलपुर हाईकोर्ट में अधिवक्ता बृजेश कुमार चौबे ने पैरवी करते हुए कोर्ट के सामने यह बात रखी कि यह ट्रांसफर मध्यप्रदेश पुलिस विनियमन के नियम 198 के स्पष्ट उल्लंघन में किया गया है। उन्होंने यह तर्क दिया कि पुलिस विभाग के ASI स्तर तक के कर्मचारी का ट्रांसफर पुलिस स्थापना बोर्ड की अनुशंसा के बिना नहीं किया जा सकता। इसी आधार पर उन्होंने ट्रांसफर आदेश को अवैध और नियमविरुद्ध बताया। वकील ने एक पुराने मामले W.P. No. 14066/2019 का भी हवाला दिया। जिसमें 24 जून 2021 को हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि पुलिसकर्मियों के स्थानांतरण केवल बोर्ड के माध्यम से ही किए जाएं।
नहीं चली सुप्रीम कोर्ट और ट्रांसफर नीति की दलील
राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने ट्रांसफर को सही ठहराने की कोशिश की और सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने आदेश तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी बनाम आर. अगिला का हवाला दिया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि अर्जुन पांडे को 17 जून को उनके मूल पदस्थ स्थान से विधिवत रिलीव कर दिया गया है, इसलिए अब उन्हें ट्रांसफर किए गए नए स्थान, यानी भोपाल जाकर कार्यभार ग्रहण करना चाहिए।
अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) की 29 अप्रैल 2025 को जारी स्थानांतरण नीति के अनुसार, कोई भी कर्मचारी रिलीव होने के बाद केवल ट्रांसफर किए गए स्थान से ही वेतन और अन्य सुविधाओं के लिए पात्र होता है। लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से इस ट्रांसफर नीति के पहले पेज को दिखाते हुए यह बताया गया कि इसके अंतर्गत पुलिस विभाग आता ही नहीं है।
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ट्रांसफर आर्डर प्रथम दृष्टया गलत : HC
जस्टिस एमएस भट्टी की एकलपीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट होता है कि जिस आदेश के तहत ट्रांसफर किया गया है, वह अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (रेडियो) द्वारा जारी किया गया है, जबकि नियम 198 के अनुसार, यह कार्य केवल पुलिस स्थापना बोर्ड द्वारा किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस ट्रांसफर नीति (GAD की 29 अप्रैल 2025 की नीति) का हवाला दिया जा रहा है, वह राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों पर लागू ही नहीं होती। साथ ही, कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अर्जुन पांडे की जगह सतना में अभी किसी अन्य कर्मी ने ज्वाइन नहीं किया है।
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डीजीपी और एडीजीपी को जारी हुआ नोटिस
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार सहित डीजीपी और एडीजीपी रेडियो को नोटिस जारी करते हुए आदेश दिया है कि वह इस मामले में अपना पक्ष तीन कार्य दिवस के भीतर प्रस्तुत करे। कोर्ट ने कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई से पहले जवाबी दस्तावेज पेश किए जाएं। तब तक के लिए कोर्ट ने यह आदेश दिया कि अर्जुन पांडे को सतना में ही उनके वर्तमान पद पर कार्य करने की अनुमति रहेगी और 11 जून को जारी किया गया याचिकाकर्ता का ट्रांसफर आर्डर भी स्टे रहेगा।
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11 जुलाई को होगी मामले पर अगली सुनवाई
इस मामले की अगली सुनवाई 11 जुलाई 2025 को निर्धारित की गई है, जिसमें यह तय हो सकता है कि अर्जुन पांडे के ट्रांसफर आर्डर मामले में आगे क्या आदेश आता है, हालांकि अब तक हुई सुनवाई में तो विभाग की गलती साफ नजर आ गई है। लेकिन इस याचिका ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पुलिस जैसे संवेदनशील और अनुशासित विभाग में ट्रांसफर की प्रक्रिया को लेकर अब भी नियमों की अनदेखी की जा रही है?
अगर 89 पुलिसकर्मियों के एक साथ किए गए तबादलों में यह गलती पाई गई है, तो इसका असर विभागीय विश्वसनीयता पर भी पड़ सकता है। आपको बता दें कि अभी हाईकोर्ट का आदेश सिर्फ एक पुलिसकर्मी के लिए आया है लेकिन यदि इस लिस्ट में ऐसे अन्य पुलिसकर्मी हैं जिन्होंने अब तक जॉइनिंग नहीं ली है तो उन्हें भी इस आदेश का फायदा कोर्ट पहुंचने पर मिल सकता है।
हाईकोर्ट का यह आदेश न सिर्फ एक कर्मचारी को राहत देता है, बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा नियमों के उल्लंघन की गंभीरता पर भी सवाल खड़ा करता है। यदि पुलिस स्थापना बोर्ड को दरकिनार कर ट्रांसफर किए जा रहे हैं, तो यह पूरी प्रक्रिया पर पुनः विचार करने का संकेत है। अब देखना होगा कि डीजीपी की अध्यक्षता में पुलिस स्थापना बोर्ड के अलावा अन्य ऐसे कितने आदेश जारी किए गए हैं क्योंकि यह मामला राज्य पुलिस व्यवस्था में ट्रांसफर नीति की वैधानिकता पर ही सवाल खड़ा कर चुका है।
एमपी पुलिस ट्रांसफर | हाईकोर्ट आदेश
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