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Photograph: (THESOOTR)
मध्यप्रदेश में भोपाल नगर निगम का एक अनोखा मामला सामने आया है। इसमें नगर निगम की बिल्डिंग परमिशन शाखा ने ‘नानी की हवेली’ को बिल्डिंग बनाने की परमिशन दे दी। जबकि यह संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में नजूल भूमि के रूप में दर्ज है। नगर निगम ने भवन अनुज्ञा जारी करते समय संपत्ति के ऑनरशिप दस्तावेजों की अनदेखी की। अधिकारियों का कहना है कि यह परमिशन एसडीएम कार्यालय की अनापत्ति पर दी गई थी, जो गलत हो सकती है।
मामला हाईकोर्ट में है
‘नानी की हवेली’ से जुड़ा मामला 2014 से जबलपुर हाईकोर्ट में विचाराधीन था। हाईकोर्ट ने 4 जनवरी 2023 को सुरेश चोटरानी और नरेश चोटरानी के पक्ष में फैसला सुनाया था। हालांकि, इसके बाद भी जिला प्रशासन ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ रिट पिटीशन दायर की है। इस कारण संपत्ति का नामांतरण अभी तक नहीं हुआ है। इसके चलते नानी की हवेली आज भी सरकारी रिकॉर्ड में नजूल संपत्ति के रूप में दर्ज है।
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बिना नामांतरण परमिशन जारी
नानी की हवेली के भूखंड पर 3 फरवरी 2025 को नगर निगम ने कमर्शियल कॉम्पलेक्स के लिए भवन अनुज्ञा जारी कर दी। इस निर्णय में भूखंड के ऑनरशिप दस्तावेजों की अनदेखी की गई। आवेदक द्वारा प्रस्तुत की गई एसडीएम शहर की 3 अगस्त 2022 की अनापत्ति को आधार माना गया, जबकि यह अनापत्ति हाईकोर्ट के निर्णय से पहले की थी।
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वैधानिकता पर सवाल
सीनियर एडवोकेट जगदीश छावानी के अनुसार, जब मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन था, तो उस समय अनापत्ति की वैधानिकता नहीं बनती थी। उनका कहना है कि हाईकोर्ट का निर्णय आने के बाद ही राजस्व विभाग को नामांतरण के लिए कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
शत्रु संपत्ति से जुड़ा मामला
यह मामला 1947 में विभाजन के बाद के एक विस्थापित परिवार से जुड़ा है। कराची से आए कन्हैयालाल भाटिया को नुकसान की भरपाई के रूप में 2005 में नानी की हवेली आवंटित की गई थी। बाद में, इस संपत्ति पर अवैध कब्जे के कारण इसे शासकीय संपत्ति घोषित कर दिया गया। सीहोर में बसे भाटिया ने दिसंबर 2006 में नानी की हवेली का कब्जा सुशील कुमार धनवानी को सौंप दिया था, जो बाद में सुरेश चोटरानी को बेच दी गई। हालांकि, राज्य सरकार ने इसे शत्रु संपत्ति मानते हुए इसे सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया।
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नगर निगम की प्रतिक्रिया
मुख्य नगर निवेशक अनूप गोयल का कहना है, “नानी की हवेली के लिए एसडीएम की अनापत्ति प्रस्तुत की गई थी। हालांकि, बाद में हाईकोर्ट का फैसला भी आवेदक के पक्ष में आया है। सभी दस्तावेजों की जांच के बाद ही भवन अनुज्ञा जारी की गई। यदि इस मामले में कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो अनुज्ञा को निरस्त कर दिया जाएगा।” वहीं, एसडीएम शहर दीपक पांडे का कहना है कि नानी की हवेली का मामला लंबा चल रहा है। हाईकोर्ट का फैसला आ चुका है, और अब रिव्यू पिटीशन दायर की जा रही है।
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निष्कर्ष: कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बिना परमिशन कैसे?
भोपाल के नानी की हवेली के मामले में नगर निगम भोपाल की ओर से की गई बिल्डिंग परमिशन की चूक महत्वपूर्ण सवालों को जन्म देती है। कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बिना इस परमिशन का जारी किया जाना न केवल कानूनी दृष्टिकोण से विवादास्पद है, बल्कि इससे सरकारी भूमि पर अवैध निर्माण की संभावना भी बनती है।
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