BHOPAL. चुनाव का साल यानी बैठकों का मायाजाल। हर बार हो न हो, लेकिन इस बार ये बैठकें वाकई बीजेपी के लिए मायाजाल ही साबित हो रही हैं। जिनकी तरफ टकटकी लगाए कार्यकर्ता उसी तरह बैठा रहता है जैसे किसी जादुगर का शो चल रहा हो। पूरी शिद्दत से उसके खत्म होने का इंतजार करता है। इस उम्मीद से कि जब जादू ओवर होगा तो सस्पेंस भी खत्म होगा, लेकिन न जादूगर का मायाजाल कभी समझ आता है न इस बार बीजेपी की बैठकों का मायाजाल समझ आ रहा है। कार्यकर्ता की उम्मीदे ठंडी पड़ती जा रही है। एक बार फिर एक बड़ी बैठक हुई और उस बैठक से भी जो उम्मीद थी वो पूरी नहीं हुआ। नतीजा ये है कि पूरे प्रदेश में असंमजस का माहौल है। पहले मुख्यमंत्री को लेकर यही हालात थे अब प्रदेशाध्यक्ष को लेकर यही स्थिति है।
बीजेपी में असमंजस की स्थिति अब भी बरकरार है
दिल्ली में बीजेपी की बड़ी बैठक हुई। इस बैठक से पहले ये अटकलें तेज थीं कि 2023 में जिन राज्यों में चुनाव है वहां बड़े बदलाव होंगे। इससे पहले तक हर बैठक के साथ ये सुगबुगाहट तेज हो जाती थी कि मध्यप्रदेश में सीएम बदल दिए जाएंगे। इसके बाद लगा प्रदेशाध्यक्ष बदले जाएंगे। कर्नाटक चुनाव तक आलाकमान के हर फैसले के बाद मध्यप्रदेश में किसी बड़े बदलाव का इंतजार रहता था, लेकिन उसके बाद ये तय माना जाने लगा कि अब सीएम फेस में बदलाव नहीं होगा। अगला चुनाव शिवराज सिंह चौहान के फेस पर ही लड़ा जाएगा। प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल भी काफी समय पहले पूरा हो चुका है। उनके बदलने की भी अटकलें तेज हैं, लेकिन मंगलवार को हुई बैठक के बाद वो उम्मीद भी एक बार और टूट गई या यूं कहें कि असमंजस की स्थिति अब भी बरकरार है।
संशय के चलते कार्यकर्ता की ताकत कमजोर हो रही है
बीजेपी की बड़ी बैठक के बाद जैसी कि उम्मीद की जा रही थी, वैसा ही हुआ। बड़े बदलाव हुए, लेकिन मध्यप्रदेश में कुछ नहीं बदला। इसका ये मतलब भी नहीं कि बीजेपी सत्ता या संगठन इत्मीनान की सांस ले सके। क्योंकि बदलाव की तलवार को रस्सी पर थोड़ा पीछे खींच टाल दिया गया है। उतारा नहीं गया है। तलवार अब भी लटकी है। कब गिरेगी कहा नहीं जा सकता, लेकिन ये जो कंफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। ये हर दिन गुजरने के साथ बीजेपी की ही मुश्किलें बढ़ा रही है। अपनी जीत के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं की जिस ताकत पर भरोसा करती है। संशय के चलते उसी कार्यकर्ता की ताकत कमजोर हो रही है। हर कार्यकर्ता का सवाल यही है कि आखिर बदलाव क्यों नहीं हुआ या क्या अब बदलाव होगा ही नहीं।
अटकलों का बाजार अभी ठंडा नहीं पड़ा है
इन दो में से किसी एक परिस्थिति को स्पष्ट करना बीजेपी के लिए निहायती जरूरी हो चुका है। प्रदेश में बदलाव होगा या नहीं होगा। आलाकमान की तरफ से इस मामले में जवाब तो दूर कोई हिंट भी नहीं मिल रहा। कार्यकर्ता तो एक तरफ फ्रंट लाइन लीडर्स भी कंफ्यूजन में है। क्योंकि अटकलों का बाजार अभी ठंडा नहीं पड़ा है। अब भी खबरे हैं कि चार राज्यों के बाद बीजेपी छह और राज्य के प्रदेशाध्यक्ष बदल सकती है। जिसमें कर्नाटक, गुजरात, केरल, हरियाणा, जम्मू कश्मीर और मध्य प्रदेश के नाम शामिल हैं।
आलाकमान मप्र को लेकर फैसला लेने से क्यों कतरा रही है
फैसला आलाकमान के हाथ में है, लेकिन फैसला आने में जितनी देर हो रही है बीजेपी के हाथ से मध्यप्रदेश की बाजी उतनी ही बुरी तरह फिसलती चली जा रही है। जो पार्टी सख्त फैसले और त्वरित फैसलों के लिए ही जानी जाती रही है वो मध्यप्रदेश को लेकर फैसला लेने से क्यों कतरा रही है।
- क्या बीजेपी को डर है कि बदलाव, ज्यादा बात न बिगाड़ दे।
अटकलों का इशारा कुछ और है
वैसे तो सियासी गलियारों में लग रही अटकलों का इशारा कुछ और है, लेकिन संभव है कि बीजेपी ने बदलवा रद्द कर दिए हों। अगर ऐसा है तो आलाकमान के स्तर से इस स्थिति स्पष्ट करने में देरी क्यों की जा रही है। इसका खामियाजा किस तरह भुगतना पड़ सकता है। क्या इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।
खुद सीएम कई फैसले लेने में झिझकते रहे
पहले सीएम बदलने की अटकलें लगती रही जिस वजह से खुद सीएम कई फैसले लेने में झिझकते रहे। अब प्रदेशाध्यक्ष के नाम को लेकर संशय है। तो जाहिर सी बात कि प्रदेश स्तर पर संगठन का मुखिया ही जब कंफ्यूज होगा तो नीचे की लाइन तक हालात क्या होंगे।
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बीजेपी को भीतर की गुटबाजी का ख्याल भी रखना होगा
हर फैसला या हर रणनीति बनाने से पहले ये ख्याल तोआएगा ही कि कल हो न हो। एक बैठक के बाद चैन की सांस ले पाते उससे पहले ये खबरें चलने लगीं कि छह राज्यों में कभी भी बदलाव हो सकते हैं। इसके साथ ही एमपी में प्रदेशाध्यक्ष पद के दो दावेदारों के नाम भी उछले। एक नरेंद्र सिंह तोमर और दूसरे कैलाश विजयवर्गीय। पर कोई भी फैसला लेने से पहले बीजेपी को भीतर पनप चुकी गुटबाजी का ख्याल भी रखना होगा। एक छोटा सा बदलाव स्थिति को बेहतर कर सकता है या फिर बिगाड़ भी सकता है, लेकिन चेंज और नो चेंज-फैसला जो भी हो उसे स्पष्ट करने में बीत रहा समय बीजेपी को ही कमजोर कर रहा है।