तमाम गवाहों और सबूतों के मद्देनजर ये अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए दिया जाए...!!!

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Jitendra Shrivastava
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तमाम गवाहों और सबूतों के मद्देनजर ये अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए दिया जाए...!!!

रविकांत दीक्षित, AYODHYA. देश आज राममय है। अवध में राम मंदिर निर्माण को लेकर नर-नारी, बाल-गोपाल, वृद्ध-जवान सब हर्षित हैं। शीतल हवाएं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का गुणगान कर रही हैं। सरयू की अगाध जलराशि ऐसी प्रतीत होती है कि मानो प्रभु के पांव पखारने को आतुर हो। हर कोई प्राण-प्रतिष्ठा के अभूतपूर्व पलों को आंखों में बसा लेना चाहता है। अयोध्या का वैभव और सौंदर्य देखते ही बन रहा है। उत्सव की इस बेला की शुरुआत यदि हम 9 नवंबर 2019 से कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हमारी नव अयोध्या इतिहास के पन्नों पर इसी दिन अवतरित हुई थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच जजों की बेंच ने इसी दिन अयोध्या मामले में फैसला सुनाया। इसके बाद राम मंदिर निर्माण शुरू हुआ। संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था, 'बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। ढहाए ढांचे के नीचे इस्लामी ढांचा नहीं था।'

अदालत ने कहा...

अदालत ने कहा कि अयोध्या का 2.77 एकड़ में फैला स्थल राम मंदिर के निर्माण के लिए दिया जाना चाहिए। इसी के साथ अदालत ने केंद्र सरकार को आदेश भी दिया कि मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने में योजना तैयार की जाए। साथ ही मंदिर निर्माण के लिए बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज बनाया जाए। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व मिले।

पुराने मामलों पर लिया संज्ञान

सभी गवाहों और सबूतों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना कानून का उल्लंघन था। सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन दी जाए। कोर्ट ने 1949 में मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे प्रतिमाओं को रखने का मामला भी संज्ञान में लिया।

असंख्य भक्तों की साधना पूरी हुई

कोर्ट ने कहा, सबूतों से यह साफ हो जाता है कि अयोध्या में विवादित स्थल का बाहरी हिस्सा हिंदुओं के अधीन था। 1934 में हुए दंगे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि बाद में अंदर के आंगन का मसला गंभीर तकरार का मुद्दा बन गया। इसके भी साक्ष्य हैं कि हिंदू विवादित ढांचे के बाहरी हिस्से में पूजा करते थे। इस तरह रामलला के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असंख्य भक्तों की चिर साधना पूरी हुई। फैसले ने न केवल रामजन्मभूमि, बल्कि संपूर्ण अयोध्या की दशा और दिशा भी बदल दी। 70 साल बाद कानूनी लड़ाई का अंत हो गया था।

मोदी को मिला सौभाग्य

5 अगस्त 2020 को अयोध्या ने अपने इतिहास का पन्ना फिर पलट दिया। प्रधानमंत्री होने के नाते मंदिर निर्माण की नींव रखने का सौभाग्य नरेंद्र मोदी को मिला। हनुमान गढ़ी में पूजा के साथ रामलला के दर्शन करने वाले वे पहले प्रधानमंत्री भी बन गए। उनसे पहले इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी अयोध्या पहुंचे, लेकिन रामलला के दर्शन नहीं कर पाए थे।

खास था भूमिपूजन कार्यक्रम

भूमिपूजन कार्यक्रम खास था। सो यहां दो हजार पवित्र जगहों से लाई गई मिट्टी और 100 से ज्यादा नदियों से लाया गया जल रखा गया। 1989 में दुनियाभर से 2 लाख 75 हजार ईंटें जन्मभूमि भेजी गई थीं। इनमें से 9 ईंटों यानी शिलाओं को पूजन में रखा गया। इसके बाद अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। 50 फीट गहराई में कंक्रीट की आधारशिला रखने के साथ 24 घंटे, सातों दिन करीब सोलह हजार कर्मचारियों ने दो पालियों में काम किया। अब यहां 22 जनवरी को रामलला के गर्भगृह में विराजमान होने के साथ सकल सनातनियों के भावपूरित संकल्प की पूर्णाहुति होगी।

समाप्त...

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