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रायपुर : इन दिनों छत्तीसगढ़ में नक्सल मुद्दा बहुत गरमाया हुआ है। नक्सलियों पर कठोर कार्रवाई भी हो रही है क्योंकि मार्च तक नक्सली समस्या को जड़ से खत्म करने की डेडलाइन तय है। तो फिर नक्सली इलाके में तैनात राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी क्यों मौज मार रहे हैं। और उनसे आखिर कोई पूछता क्यों नहीं कि आप नक्सल इलाका छोड़कर राजधानी में ही क्यों घूमते रहते हैं। एक तरफ तो पुलिस अफसर शहीद हो रहे हैं तो दूसरी तरफ इन साहब बेफिक्री से शहरों में घूम रहे हैं। वहीं अफसरों का दांव उल्टा पड़ गया अब जिस जमीन पर नजर थी वहीं उनके हाथ से निकल रही है। छत्तीसगढ़ की ऐसी ही अनसुनी राजनीतिक और प्रशासनिक खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी।
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नक्सल जिले में ड्यूटी, रायपुर में मौज
एडिशनल एसपी आकाश राव की शहादत के बाद राज्य पुलिस सेवा के एक अफसर फिर चर्चा में आ गए हैं। यह वही अफसर हैं जिनके यहां सीबीआई का छापा पड़ा था और भूपेश सरकार में बड़े पॉवरफुल माने जाते रहे हैं। सरकार भले ही दूसरी आ गई हो लेकिन ये साहब अभी भी मौज में हैं। नई सरकार ने इनको बस्तर के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तो भेज दिया लेकिन ये ड्यूटी पर कम और रायपुर में ज्यादा नजर आते हैं। ये अफसर मौखिक आदेश पर कभी रायपुर तो कभी बलौदाबाजार में मौज मारत रहे हैं। ये पुलिस में मौखिक आदेश क्या होता है। लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस मौखिक आदेश पर काम कर रही है। यह वही साहब हैं जो अफसरों को आई फोन बांटने के दौरान चर्चा में आए थे।
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बड़े नेता के रिश्तेदार चाट रहे मलाई
बीजेपी के छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े नेताओं में से एक नेताजी, खुद तो बहुत सज्जन माने जाते हैं लेकिन उनके एक रिश्तेदार मलाई मार रहे हैं। यह रिश्तेदार उनके ही स्टॉफ में सालों से तैनात हैं। यह नेताजी सालों बड़े पद पर रहे तभी ये उनके साथ थे और अब जबकि वे अभी भी बड़े संवैधानिक पद पर हैं तब ही उनके ही साथ हैं। नेताजी के नाम पर वसूली का खेल जोरों से चल रहा है। ये कई बेशकीमती प्रॉपर्टी के मालिक हो गए हैं। हैरानी बात ये है कि जिनके नाम पर यह खेल चल रहा है वे नेताजी इससे पूरी तरह अनजान हैं। नेताजी को इस बात में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ेगी, कहीं ऐसा न हो कि उनके नाम पर एक दो छींटें पड़ जाएं और उनको बेवजह बदनामी झेलनी पड़ जाए।
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उल्टा पड़ा अफसरों का दांव
नया रायपुर की प्राइम लोकेशन पर जज,अफसरों और नेताओं की आवासीय कॉलोनी बननी थी। लेकिन इस कॉलोनी में पेंच फंस गया। इस पेंच को निकालने के लिए अफसरों ने एक दांव खेला। लेकिन ये दांव उन पर उल्टा पड़ गया। दरअसल पिछली सरकार ने 23 एकड़ जमीन आवंटित की थी जिस पर जज,नेता और अफसरों की आवासीय कॉलोनी बननी थी। इस जमीन पर 134 प्लॉट काटे गए। इनमें से सांसदों और विधायकों को 49 प्लॉट दिए गए। लेकिन इससे पहले कि आगे काम बढ़ पाता सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने तेलंगाना के एक केस में फैसला सुना दिया कि सरकारी जमीन किसी भी वर्ग विशेष को रियायती दर पर नहीं दी जा सकती। अब अफसर तो ठहरे चतुर,चालक। उन्होंने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की खुशामद कर कहा कि कितने जज साहब को प्लॉट देना है आप बता दीजिए और चिंता छोड़ दीजिए। यह आइडिया इसलिए अपनाया गया कि यदि जजों को प्लॉट मिल गए तो फिर उनको भी मिल जाएंगे। लेकिन यहां से भी मनाही आ गई। यहां के चीफ जस्टिस ने कह दिया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कोई फैसला सुना दिया है तो फिर उस आदेश का उल्लंघन कतई नहीं होगा। अब सारे प्लॉट अधर में लटक गए हैं। अब अफसर कोई नया आइडिया भिड़ाने में जुट गए हैं।
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डीजी साहब ने यूपीएससी में लगाई आरटीआई
एक डीजी साहब ने यूपीएससी में आरटीआई लगाकर सूचना के अधिकार के तहत एक जानकारी मांग ली है। आरटीआई में पूछा गया है कि जब चार नाम डीजीपी के पैनल में थे। जिनमें से दो नाम काट दिए गए हैं। तो किस आधार पर उनका नाम काटा गया। पैनल यदि तीन नामों का भी होता तो साहब को कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन साहब नाराज इस बात से हैं कि सीनियर और योग्य होते हुए भी उनको पैनल के टॉप थ्री में जगह नहीं मिली। आखिर इस सूची में से एक नाम को ओके तो मुख्यमंत्री को करना था तो फिर पैनल में तीन नाम क्यों नहीं भेजे गए। डीपीसी की बैठक में मुख्य सचिव भी गए थे। अब तो वही बता सकते हैं कि ऐसा आखिर क्यों हुआ।
नक्सली इलाके के पुलिस अफसर मार रहे मौज | नक्सली इलाके में आखिर क्यों उल्टा पड़ा साहब का दांव | Police officers in Naxalite areas are having a gala time | why did the boss's bet backfire