BHOPAL. बचपन में पाइड पाइपर की कहानी आपने जरूर सुनी होगी। हिंदी में कहानी बांसुरी वाले के नाम से सुनाई जाती रही है। कहानी में एक शख्स होता है जो बांसुरी बजाता है और लोग सुधबुध खोकर उसके पीछे चल पड़ते हैं। कहानी में बांसुरी वाले का मकसद जो भी रहा हो वो अलग बात है। फिलहाल बीजेपी की बात करते हैं, जिसके लिए वही बांसुरी वाले बन गए हैं पीएम नरेंद्र मोदी। पार्टी शायद यही मानती है कि वो अपनी राजनीतिक सुरों वाली बांसुरी लेकर जिस ओर जाएंगे मतदाता वहीं चलते चले जाएंगे। शायद इसलिए मध्यप्रदेश में बीजेपी ने पूरा दांव सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे पर लगा दिया। जहां-जहां नाराजगी दिखी वहां बांसुरी वाले की तर्ज पर मतदाताओं को लुभाने के लिए पीएम मोदी का चेहरा चमकाया जा रहा है। ये भी संयोग है कि बांसुरी वाला ही तारणहार भी होता है। तो क्या यही सोच कर बीजेपी पीएम मोदी के प्रदेश में दौरे पर दौरे करवा रही है। महज 11 दिनों में पीएम के 3 दौरे निश्चित हैं। हर दौरे के पीछ बीजेपी का खास राजनीतिक फोकस भी है।
सिर्फ 11 दिन के अंतराल पर MP का रुख करेंगे पीएम
चुनावी साल में मध्यप्रदेश में बीजेपी बड़े फैसले लेगी ये तय माना जा रहा था। लेकिन फैसलो में कोई खास सख्ती नजर नहीं आई। नजर आए तो बस पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दौरे पर दौरे। अप्रैल माह से लेकर अब तक पीएम मोदी मध्यप्रदेश के 5 दौरे कर चुके हैं। उन दौरों के अलावा 3 और दौरों की तैयारी हो गई है। अब सिर्फ 11 दिन के अंतराल पर पीएम मोदी मध्यप्रदेश का रुख करेंगे। हर बार एक अलग अंचल में उनकी आमद होगी। हर दौरे के साथ कई सियासी समीकरण साधे जाएंगे। पहले भी साधे जाते रहे हैं और पहले की ही तरह सौगातों की भी बरसात होगी।
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बीजेपी ने सोच-समझकर किया प्लान
बीजेपी ने पीएम नरेंद्र मोदी की हर यात्रा को बहुत सोच-समझ कर प्लान किया है। वैसे तो नवंबर महीने में मध्यप्रदेश के अलावा 2 और हिंदी भाषी राज्यों में चुनाव हैं। एक है राजस्थान और दूसरा छत्तीसगढ़। तीनों ही जगह बीजेपी की हालत जीत के लिए परफेक्ट नजर नहीं आ रही है। इसके बावजूद पीएम के सबसे ज्यादा दौरे मध्यप्रदेश में हो रहे हैं। इससे एक बात का तो अंदाजा लगाया ही जा सकता है कि जितना आंकलन किया जा रहा है बीजेपी की हालत एमपी में उससे भी ज्यादा खराब है। पीएम की इस साल की सारी यात्राओं पर गौर करेंगे तो जान जाएंगे कि किस रणनीति के तहत पीएम की यात्राओं का तानाबाना बुना गया है।
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बीजेपी ने भांप लिए मध्यप्रदेश के हालात
सारे सर्वे पूरे होने के बाद बीजेपी ने मध्यप्रदेश में पार्टी के हालात भांप लिए हैं। उसके बाद से पीएम मोदी के ताबड़तोड़ दौरे जारी हो चुके हैं। अप्रैल से लेकर अब तक हर पोस्टर, होर्डिंग और विज्ञापन में सीएम शिवराज सिंह चौहान को पीछे कर दिया गया है और मोदी का फेस मुखर है। इतना ही नहीं सीएम शिवराज के नाम पर पेटेंट जनआशीर्वाद यात्रा को भी मोदी के नाम कर दिया गया है। शिवराज के चेहरे पर नाराजगी, नेताओं में असंतोष कार्यकर्ताओं में रोष और एंटीइन्कंबेंसी का बीजेपी को सिर्फ एक ही जवाब सूझा, वो हैं पीएम नरेंद्र मोदी। जो 11 दिन में 3 बार प्रदेश का दौरा करेंगे। सारे दौरों को गिन लिया जाए तो 6 महीने में पीएम के कुल 8 दौरे पूरे हो जाएंगे।
पीएम मोदी के मध्यप्रदेश दौरे
- 1 अप्रैल - भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रानी कमलापति-हजरत निजामुद्दीन वंदे भारत को हरी झंडी दिखाई।
- 25 अप्रैल - पीएम मोदी रीवा में पंचायती राज सम्मेलन में शामिल हुए। 3 ट्रेनों को वर्चुअली हरी झंडी भी दिखाई।
- 27 जून - रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पर PM ने भोपाल-जबलपुर और भोपाल-इंदौर वंदे भारत को हरी झंडी दिखाई।
- 1 जुलाई - शहडोल आकर राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन 2047 लॉन्च किया।
- 12 अगस्त - सागर जिले के बड़तूमा में संत रविदास मंदिर और स्मारक की आधारशिला रखी।
- 14 सितंबर - अब प्रधानमंत्री मोदी सागर जिले के बीना स्थित पेट्रो केमिकल परिसर में 50 हजार करोड़ रुपए निवेश कार्य का भूमिपूजन करेंगे।
- 18 सितंबर - ओंकारेश्वर में आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण और अद्वैत लोक का भूमिपूजन करेंगे।
(विशेष सत्र के चलते कार्यक्रम में फेरबदल संभव)
- 25 सितंबर - भोपाल में कार्यकर्ता महाकुंभ को संबोधित करेंगे।
नई और पुरानी बीजेपी की लड़ाई सबसे ज्यादा
पीएम के दौरों का थोड़ा गहराई से अध्ययन करेंगे तो ये अंदाजा लगाना आसान होगा कि किस अंचल में बीजेपी अपनी स्थिति ज्यादा खराब महसूस कर रही है। जिसकी सर्जरी के लिए अपने सबसे भरोसेमंद सर्जन को चुना है। कुछ 8 दौरों में से 2 दौरे सागर के यानी बुंदेलखंड के हैं और 2 विंध्य के हो चुके हैं। अब आने वाले दौरों में से एक सागर के अलावा एक ओंकारेश्वर का है। मध्य के दौरों के जरिए प्रदेशभर के कार्यकर्ताओं को साधने की कोशिश होती है। बुंदेलखंड और मालवा वो क्षेत्र हैं जहां बीजेपी को पिछली बार सीटों का बड़ा नुकसान हुआ। मालवा को तो थोड़ा बहुत मजबूत कर लिया गया है, लेकिन बुंदेलखंड में हालात खराब ही नजर आ रहे हैं। विंध्य के दौरे इसलिए महत्वपूर्ण है कि 2018 में सबसे ज्यादा मेहरबानी करने वाला ये अंचल इस बार बिलकुल अनदेखा रहा। जिसकी नाराजगी कम करने के लिए राजेंद्र शुक्ला को भी ऐन वक्त पर मंत्री पद से नवाजा गया है, लेकिन इनमें से एक भी दौरा ग्वालियर-चंबल अंचल में नहीं हुआ। जहां नई और पुरानी बीजेपी की लड़ाई सबसे ज्यादा है।
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बीजेपी के पास मोदी ही ऑलराउंडर
मध्यप्रदेश में आचार संहिता लगने से पहले बीजेपी सौगातें बांटने की कसर पूरी कर लेना चाहती है। मध्यप्रदेश में फिलहाल टीम बीजेपी के पास सिर्फ मोदी ही एक ऑलराउंडर नजर आ रहे हैं। जिनके जिम्मे पार्टी ने हर जिम्मेदारी सौंप दी है। वैसे हर अंचल के दिग्गज को भी पहले मौका दिया गया, लेकिन जो उम्मीद थी वो नतीजे मिले नहीं। न जमीनी स्तर पर मनमुटाव कम हुआ है और न नेताओं के आपसी रिश्ते बेहतर हुए हैं। दलबदल का दौर भी जारी है। लिहाजा बीजेपी के लिए मोस्ट इंपोर्टेंट मोदी ही ऐसे खिवैया हैं जो चुनावी नैया पार लगाने की उम्मीद कायम रख सकते हैं।