कांग्रेस-बीजेपी वोट बैंक के हिसाब से देते हैं टिकट, लेकिन जाटों का दबदबा दोनों दलों में, 3 चुनावों में दोनों दलों ने ज्यादा टिकट जाटों को दिए

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Jitendra Shrivastava
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कांग्रेस-बीजेपी वोट बैंक के हिसाब से देते हैं टिकट, लेकिन जाटों का दबदबा दोनों दलों में, 3 चुनावों में दोनों दलों ने ज्यादा टिकट जाटों को दिए

मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान के चुनाव के पारम्परिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और बीजेपी यूं तो अपने वोट बैंक से प्रत्याशी तय करते हैं, लेकिन पूरे प्रदेश में जाट समुदाय एकमात्र ऐसा समुदाय है जिसे दोनों ही दल इग्नोर नहीं कर पाते। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की रिजर्व सीटों को छोड़ दें तो बाकी बची सीटों पर सबसे ज्यादा टिकट जाटों को मिलते रहे हैं। दोनों दलों ने पिछले तीन चुनावों में औसतन 30-30 टिकट जाट समुदाय को दिए हैं। हालांकि, यह समुदाय इससे संतुष्ट नहीं है और सबसे बड़ी कुर्सी यानी सीएम का पद चाहता है। राजस्थान की राजनीति में जाति हमेशा अहम भूमिका निभाती रही है। राजनीतिक दल भले ही सार्वजनिक रूप से स्वीकार ना करें, लेकिन चुनाव के समय टिकट मांगनों वालों से सबसे पहले सीट के जातिगत समीकरण पूछे जाते हैं। हर टिकटार्थी नाम-पते के बाद सबसे पहले उसकी सीट के जातिगत समीकरण ही बताता है।

यह है राजस्थान का जातिगत समीकरण

आंकड़ों के अनुसार राजस्थान की 89 प्रतिशत आबादी हिंदु और 9 प्रतिशत मुस्लिम है। वहीं अनुसूचित जाति 18 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति करीब 14 प्रतिशत है। जातिगत समुदायों की बात करें तो सबसे ज्यादा 12 प्रतिशत जाट हैं। इनके अलावा गुर्जर और राजपूत 9-9 प्रतिशत और ब्राह्मण करीब 7.5 प्रतिशत हैं। अनुसूचित जनजाति में सबसे ज्यादा करीब 7 प्रतिशत आबादी मीणा समुदाय की है।

59 सीटें एससी, एसटी के लिए आरक्षित हैं

राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें है और इनमें से 59 सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इनमें अनुसूचित जाति के 34 और अनुसूचित जनजाति के 25 सीटें आरक्षित हैं। हालांकि, दोनों ही दलों ने पिछले तीनों चुनावों में अनुसूचित जनजाति को आरक्षित सीटों के मुकाबले ज्यादा सीटों पर टिकट दिए हैं। आरक्षित सीटों के बाद बची 141 सीटों पर सबसे ज्यादा औसतन 30-30 सीटें पिछले तीन चुनाव में जाट समुदाय को ही मिली हैं। इनके अलावा ब्राह्मण समुदाय भी ऐसा है, जिस पर दोनों दलों ने फोकस किया है। बाकी समुदायों को पार्टियों ने अपने वोट बैंक के हिसाब से ही टिकट दिए हैं जैसे बीजेपी ने वैश्य और राजपूत समुदाय को ज्यादा टिकट दिए हैं, क्योंकि ये इसके कोर वोट बैंक है, वहीं कांग्रेस का मुस्लिमों पर काफी फोकस रहा है।

कांग्रेस और बीजेपी ने पिछले तीन चुनाव 2008 2013 और 2018 में किसे कितने टिकट दिए, देखिए ...

जाट समुदायः

राजस्थान के उत्तर पश्चिम के सीकर, चूरू, झुंझुनूं, हनुमानगढ़, बीकानेर, नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, और पूर्वी राजस्थान के भरतपुर और धौलपुर जिलों में यह समुदाय सबसे ज्यादा है। आमतौर यह कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है और इसीलिए कांग्रेस ने इन्हें बीजेपी से ज्यादा टिकट भी दिए, लेकिन बीजेपी भी इसे पूरी अहमियत देती नजर आई। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस का वोट बैंक होने के बावजूद पिछले तीन चुनाव में बीजेपी के जाट प्रत्याशी कांग्रेस से ज्यादा जीते हैं। इसका कारण यह रहा है कि 2013 का चुनाव कांग्रेस बहुत बुरी तरह हारी थी और सिर्फ 200 में से सिर्फ 21 सीटें जीत पाई थी, जबकि बीजेपी 2008 और 2018 का चुनाव हारी तो सही, लेकिन हार बहुत बुरी नहीं थी।

  • बीजेपीः टिकट दिए- 92, जीते- 44

कांग्रेसः टिकट दिए- 101, जीते- 38

ब्राह्मण समुदायः

ब्राह्मण समुदाय की आबादी पूरे राजस्थान में छितराई हुई है। यह नहीं कहा जा सकता कि कोई क्षेत्र विशेष ब्राह्मणों का है। पूरे प्रदेश में आबादी होने के कारण ही ये हर सीट पर कम-ज्यादा मात्रा मे हैं। जाटों के बाद यदि किसी समुदाय पर दोनों दलों का एक जैसा फोकस रहा है तो वह ब्राह्मण ही हैं। ये आम तौर पर बीजेपी का कोर वोट बैंक माना जाता है और यह इस बात से भी साबित होता है कि बीजेपी के ब्राह्मण उम्मीदवार कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा जीते हैं।

बीजेपीः टिकट दिए- 57, जीते- 31

कांग्रेसः टिकट दिए- 59, जीते- 17

वैश्य समाजः

दक्षिण राजस्थान के आदिवासी बहुल जिलों को छोड़ दिया जाए तो ब्राह्मणों की तरह वैश्य भी लगभग पूरे राजस्थान में है। यह आमतौर पर शहरी वोट बैंक है और बीजेपी की ताकत रहा है। बीजेपी ने ही इसे ज्यादा टिकट भी दिए हैं और जीतने वालों का आंकड़ा भी बीजेपी की ही ज्यादा है।

बीजेपीः टिकट दिए- 44, जीते- 31

कांग्रेसः टिकट दिए- 38, जीते- 13

राजपूत समुदायः

ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो राजपूतों से ही राजस्थान की पहचाान रही है, क्योंकि राजस्थान से पहले इसे राजपुताना के नाम से ही जाना जाता था। यह समुदाय भी पूरे प्रदेश में फैला हुआ है। जोधपुर, उदयपुर, जयपुर सम्भागों में इनकी सीटें ज्यादा हैं। यह भी बीजेपी का कोर वोट बैंक है यही कारण है कि बीजेपी ने कांग्रेस के मुकाबले लगभग दोगुने टिकट राजपूतों को दिए हैं और जीतने वालों का आंकड़ा भी कांग्रेस के मुकाबले लगभग तीन गुना है।

बीजेपीः टिकट दिए- 83, जीते- 48

कांग्रेसः टिकट दिए- 49, जीते- 17

मुस्लिम समुदायः

राजस्थान की आबादी में मुस्लिम समुदाय की भागीदारी करीब नौ प्रतिशत है। यह समुदाय दक्षिण राजस्थान के आदिवासी जिलों को छोड़कर लगभग सभी जगह है। हालांकि, पूर्वी राजस्थान के मेवात, बाड़मेर, जैसलमेर के पाकिस्तान से लगते क्षेत्रों, सीकर, चूरू, झुंझुनूं और जयपुर, जोधपुर, कोटा, अजमेर जैसे बड़े जिलों की कुछ शहरी सीटों पर इनकी संख्या ज्यादा है। मुस्लिम समुदाय पूरी तरह से कांग्रेस का वोट बैंक रहा है। बीजेपी ने तो पिछली बार सिर्फ एक टिकट इस समुदाय को दिया था और वो भी ऐसी सीट पर जहां हार निश्चित थी। वसुंधरा सरकार के दमदार मंत्री युनूस खान को टोंक में सीएम पद के दावेदार सचिन पायलट के सामने टिकट देकर मुस्लिम समुदाय को टिकट देने की रस्म अदायगी की गई थी।

बीजेपीः टिकट दिए- 9, जीते- 4

कांग्रेसः टिकट दिए- 48, जीते- 18

गुर्जर समुदायः

गुर्जर समुदाय मुख्य तौर पर पूर्वी राजस्थान के दौसा, सवाई माधोपुर, करौली, भरतपुर, धौलपुर और मध्य राजसथान के अजमेर, टोंक, भीलवाड़ा, राजसमंद, चित्तौडगढ़, जिलों में है। यह परम्परागत तौर पर बीजेपी के साथ रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में सचिन पायलट के सीएम बनने की सम्भावना को देखते हुए पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में चला गया था। स्थिति यह बनी थी कि बीजेपी ने नौ गुर्जरों को टिकट दिए थे, लेकिन एक भी नहीं जीत पाया।

बीजेपीः टिकट दिए- 26, जीते- 11

कांग्रेसः टिकट दिए- 33, जीते- 14

मीणा समुदायः

राजस्थान में मीणा समुदाय अनुसूचित जनजाति का हिस्सा है और दोनों ही दल अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 25 सीटो में से आधी से ज्यादा सीटें इसी समुदाय को देते हैं। यह समुदाय राजस्थान में दो हिस्सों में बंटा हुआ है। इनका एक हिस्सा पूर्वी राजस्थान के दौसा, सवाई माधोपुर और करौली जिलों में है और दूसरा दक्षिण राजस्थान के आदिवासी बहुल जिलों मे है। पूर्वी राजस्थान की ज्यादातर आरक्षित सीटें मीणाओं को मिलती हैं। दोनों दलों ने पिछले तीन चुनावों में इस समुदाय को लगभग 40 से 45 सीटें दी है और चूंकि आरक्षित सीटें हैं, इसलिए करीब इतने ही जीत कर विधानसभा में भी पहुंचे हैं।

फिर भी उठ रही हैं राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग

जातिगत आधार पर हालांकि सभी प्रमुख जातियों को ठीकठाक प्रतिनिधित्व मिलता रहा है, लेकिन इस बार सभी जाति समुदायों ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग के लिए महापंचायतें और सम्मेलन किए हैं। इनकी शुरूआत जाटों ने की थी जिन्होंने मार्च में जयपुर में जाट महापंचायत की और जाट सीएम बनाने की मांग उठाई। इनके अलावा गुर्जर, ब्राह्मण, माली और वैश्य समुदाय भी जयपुर में बडे़ सम्मेलन कर चुके हैं। सभी ने ज्यादा से ज्यादा सीटे देने की मांग की है।

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