Jashpur. बीजेपी की परिवर्तन यात्रा जशपुर से रवाना हो गई है। इस यात्रा को हरी झंडी दिखाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने रवाना किया है।जशपुर में जहां से यह यात्रा शुरु हुई, मंच से लेकर हर उस रास्ते जहां से यह यात्रा गुजरी, वहाँ जो भी बैनर फ्लेक्स थे सब में स्व. दिलीप सिंह जूदेव की तस्वीर मौजूद थी। मंच पर वक्ताओं के भाषण का हिस्सा भी जूदेव के ज़िक्र भी बग़ैर पूरा नहीं था। यह देखना हैरान नहीं कर रहा था कि, मंच से जब जब स्व. दिलीप सिंह जूदेव का ज़िक्र हुआ भीड़ ने प्रतिक्रिया दी लेकिन जब मंच से जी 20 जैसे सम्मेलन और एपल जैसे फ़ोन के अब भारत में बनने की बात बताई जा रही थी तो मौजूद लोग जिनमें से अधिकांश ग्रामीण थे, उनकी ओर से प्रतिक्रिया नहीं आई। जशपुर कुमार स्व. दिलीप सिंह जूदेव का निधन 14 अगस्त 2013 को हुआ था, और आज जबकि उनके निधन के बाद तीसरा विधानसभा चुनाव होने जा रहा है तो भी जूदेव को छोड़ कोई नाम बीजेपी को याद नहीं आ रहा है।
कौन थे जूदेव
वर्ष 2003 में बीजेपी की परिवर्तन यात्रा निकली थी। जोगी शासनकाल में तब बीजेपी ने दिलीप सिंह जूदेव को परिवर्तन यात्रा की बागडोर सौंपी थी। जूदेव केवल लीडर नहीं मास लीडर थे। यह जूदेव की छवि थी कि रिश्वत टेप में फँसने के बाद भी जनता का विश्वास डिगा नहीं। जूदेव ने मूँछों को दांव पर लगाया था। जूदेव का व्यक्तित्व जूदेव की शैली उन्हें ग्लैमरस छवि देती थी। लोगों से संवाद के दौरान मोहित करने वाला अंदाज जो जूदेव के पास था वह छत्तीसगढ़ बीजेपी में आज भी किसी के पास नहीं है। समूचे उत्तर छत्तीसगढ़ में जब नतीजे आए तो कांग्रेस का अभूतपूर्व सूपड़ा साफ़ हो गया।जूदेव विशेषकर आदिवासियों के मन में जिस मुक़ाम को रखते थे, उस मुक़ाम की बात हो या फिर धर्मांतरण के खिलाफ घर वापसी अभियान की उसने जूदेव को संघ का सबसे प्यारा दुलारा बना दिया।मिशनरियों के खिलाफ संघ की लड़ाई जिन अनुषांगिक संगठनों के रुप में आज सामने है वह वनवासी कल्याण आश्रम का राष्ट्रीय कार्यालय जशपुर में ही है। इसके पीछे भी जशपुर महल की ही भुमिका थी। जंगलों से घिरे समृद्ध इस इलाक़े के रहवासियों के लिए बीजेपी को जानने पहचाने की बस एक कुंजी है वह है कुमार दिलीप सिंह जूदेव, और अब जब वे नहीं है तो उनकी तस्वीर।जूदेव के बाद उनकी विरासत पर दावे करने वाले कई हैं, उनमें कुछ चेहरे मंच पर भी नुमाया थे, लेकिन यह निर्मम सत्य है कि, जो उनकी विरासत पर दावे करते हैं वे कुमार दिलीप सिंह जूदेव के औरे से भी कई हजार मीटर दूर हैं।
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मंच पर जूदेव की तस्वीर लेकिन जूदेव सा तेवर कहाँ है
मंच पर जूदेव की तस्वीरों ने स्वाभाविक रुप से जगह बनाई थी। लेकिन मसला यह है कि, जिस जशपुर से बीजेपी परिवर्तन का नारा बुलंद करते निकल रही है, किसी को लोक संवाद की बोली या जिस विषय पर सीधे इस इलाक़े के ग्रामीण जुड़ेंगे वह विषय पता है क्या ? जूदेव का नाम और जूदेव की तस्वीर बिलाशक ग्रामीणों को वनवासियों को इस यात्रा के पास तो लाएगी लेकिन जिस लक्ष्य के साथ यात्रा है उसके लिए जूदेव सा तेवर जूदेव ने जो रिश्ता बनाया था वो चाहिए, यह बीजेपी को सोचना चाहिए कि,जूदेव सा तो कोई नहीं हो सकता लेकिन कोई उनकी लीक पर चलने वाला भी ठोस चेहरा क्या नहीं है, और यदि कोई है तो क्या उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
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जशपुर के ग्रामीणों से संवाद में जी 20 और एप्पल का मेड इन इंडिया
जशपुर सघन वनांचल क्षेत्र है। आदिवासी बाहुल्य इस इलाक़े में जल जंगल ज़मीन संस्कृति और धर्म से ही मसला शुरु है और मसला ख़त्म है। वनवासी अपनी जड़ों के प्रति अगाध श्रद्धा और आखिरी हद तक संवेदनशील हैं। परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना करने के पहले मंच से सभा को संबोधित करते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ जे पी नड्डा ने सभा में मौजूद लोगों को बताया कि, जी 20 सम्मेलन से भारत का गौरव विश्व में बढ़ा है, उन्होंने यह भी बताया कि, एप्पल का उत्पादन अब भारत में होने लगा है। मोदी केंद्रित उनके भाषण में स्थानीय मुद्दे नहीं थे, बिलाशक वे सीएम भूपेश और उनकी सरकार पर आक्रामक थे, लेकिन सभा में आए आदिवासियों के लिए ये विषय उनके मर्म को छूए हों यह मानना मुश्किल है।
जूदेव की तस्वीर प्रणाम कर घर लौटे ग्रामीण
मंच से जो भी बातें हुईं वह शहरी या कस्बाई मतदाता के लिए प्रभावी थीं, लेकिन हर विषय हर जगह के लिए प्रासंगिक और समान रुप से मारक नहीं होता, जशपुर से परिवर्तन यात्रा के निकलने की कार्य योजना बनाते वक्त बीजेपी क्या यह नहीं सोच पाई ?
अंदरूनी इलाक़ों से सभा पर पहुँचे ग्रामीण जिनमें बड़ी संख्या सयानों की भी थी, वे तब ताली बजा कर प्रतिक्रिया दे रहे थे जब जूदेव का ज़िक्र आया, वे बाक़ी विषयों पर ख़ामोश थे। यह देखना किसी और को चकित कर सकता है लेकिन जो जशपुर और जूदेव को जानते हैं उनके लिए यह विस्मय कारी नहीं था, जंगलों से आया यह क़ाफ़िला जब लौट रहा था तो पूरे सम्मान से जूदेव की तस्वीर को प्रणाम कर के ही लौट रहे थे।