हरीश दिवेकर @BHOPAL
मध्यप्रदेश में सियासत का मिजाज भी मौसम की तरह नरम-गरम बना हुआ है। कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस एक-दूसरे का कोई एक सिरा पकड़ते हैं और आईटी सेल उन्हें लेकर 'उड़' जाती है। फिर ट्वीट वॉर, वीडियो वॉर चलता रहता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह या कहें मोटा भाई के मध्यप्रदेश दौरे को लेकर बीजेपी कुछ ज्यादा ही अलर्ट नजर आ रही है। शाह वन-टू-वन समीक्षा कर रहे हैं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती बागियों से निपटने की है। पार्टी को डर है कि ये कहीं ऐन मौके पर खेल न बिगाड़ दें। कांग्रेस में भी ये चिंता है। इसलिए 2 दिन गायब रहे दिग्विजय सिंह ने अचानक प्रकट होकर ट्वीट किया कि कांग्रेस 'एक' है। कमलनाथ ही प्रदेश में चेहरा हैं। इनके सबके बीच नेताओं के बयानों में अधिकारी मानो 'ढोल' बन गए हैं। देश, प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए…
सीरीज ऑफ बेवफा सैंय्या
यहां किसी फिल्म की बात नहीं हो रही, यहां चर्चा है डर्टी पॉलिटिक्स की, जो आपको चुनाव के नाम वापसी वाले दिन यानी 2 नवंबर के बाद देखने को मिलेगी। कई सीटों पर प्रत्याशियों की सीडी वायरल होती दिखेंगी। प्रतिद्वंदी पूरी तैयारी के साथ बैठे हैं, जैसे ही चुनाव रंग जमाएगा, वैसे ही मार्केट में सीडी लॉन्च हो जाएंगी। बताया जा रहा है कि आधा दर्जन मंत्री और विधायकों की सीडी सोशल मीडिया में वायरल करने की तैयारी है। एक महिला प्रत्याशी की सीडी की भी भारी चर्चा है।
अफसरों को बना दिया ढोल...
अब तक कमलनाथ कहते थे कि जो कमल का बिल्ला जेब में रखकर चल रहे हैं, उन्हें सरकार आने के बाद देखा जाएगा। तब मामा चिल्ला-चिल्लाकर कहते थे कि कमलनाथ अफसरों को धमका रहे हैं, लेकिन अब तो बीजेपी के चाणक्य शाह भी बोल गए कि जो अफसर कमल का ध्यान नहीं रखेंगे, उसे छोड़ेंगे नहीं। इतना ही नहीं मामा को भी सार्वजनिक रूप से हिदायत दे दी। बता देना कि आप भी उन्हें बचा नहीं पाओगे। मतलब अब तक मामा के नाम पर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ दादागीरी करने वाले अफसर भी निशाने पर हैं। सीधा मतलब है कि अकेले मामा के साथ वफादारी नहीं चलेगी, नौकरी करना है तो पार्टी कार्यकर्ताओं को सिर पर बैठाइए। मतलब अफसर न हुए ढोल हो गए, जो देखो बजाना चाहता है। वैसे सही भी है, अपनी इस दुर्गति के जिम्मेदार अफसर ही तो हैं। अब उनमें रीढ़ रही कहां, वो तो लचीले हो चुके हैं, जहां दम, वहां हम वाले फॉर्मूले पर चलकर मलाई के ढेर पर बैठना चाहते हैं। नेता इस बात को समझ चुके हैं।
दिग्गी ने मारी बाजी
बीजेपी ने भले ही दिग्विजय सिंह को पंचिंग बैग बना रखा हो, लेकिन अंदर की बात ये है कि उनकी राजनीतिक कुशलता के कई नेता कायल हैं। अब देखिए न बीजेपी के पूर्व विधायक उमाशंकर गुप्ता को अटैक आने पर सबसे पहले उनका हालचाल जानने दिग्विजय सिंह पहुंच गए। जानने वाले बताते हैं कि टिकट कटने से गुप्ता को सदमा लगा और अटैक आया। ऐसे में दिग्गी का सबसे पहले पहुंचना बीजेपी नेताओं को आईना दिखाने वाला रहा। हालांकि उसके बाद कई बीजेपी के पदाधिकारी उनसे मिलने पहुंचे, लेकिन बात तो राजनीति में टाइमिंग की होती है ना। बहरहाल, गुप्ता की मुलाकात का फायदा कितना मिल पाता है, ये चुनाव के परिणाम ही बताएंगे।
मोटा भाई के आने के बाद आहत हो गए प्रभात
मध्यप्रदेश में 230 विधानसभा सीटों पर तस्वीर साफ हो गई है। दावेदारों के बगावती तेवर के आगे कांग्रेस ने सरेंडर कर दिया है। पार्टी 2 किस्तों में 7 टिकट वापस लेकर नए प्रत्याशियों को दे चुकी है। बगावत का बवंडर बीजेपी में भी उठा है। इसलिए मोटाभाई खुद मैदान में हैं। इनके सबके बीच जबलपुर में बीजेपी जिला अध्यक्ष प्रभात साहू का इस्तीफा चर्चाओं में है। उनका कहना है कि 21 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के सामने प्रदर्शन करने वालों को अमित शाह से मिलवाया गया। जिन पर अनुशासनहीनता की कार्रवाई होनी थी, उन्हें बीजेपी कार्यालय में बुलाया गया। इससे आहत हूं।
व्हिसिल ब्लोअर बनना पड़ा भारी
दिल्ली में करोड़ों की लागत से बने नए एमपी भवन में हुए भ्रष्टाचार की पोल खोलना एक अधिकारी को भारी पड़ गया। ये अधिकारी लगातार वहां हो रहीं गड़बड़ियों को लेकर आवाज उठाकर व्हिसिल ब्लोअर बनने का प्रयास कर रहे थे। ये बड़े साहब लोगों को पसंद नहीं आ रहा था, तो उन्होंने अपने पावर का इस्तेमाल कर उस अधिकारी को बैक टू पवेलियन भेज दिया। साहब लोग अधिकारी को हटाने की इतनी जल्दबाजी में थे कि उन्होंने GAD के अधिकारों का खुद ही उपयोग करते हुए एकतरफा रिलीव कर दिया। एक्शन सीनियर साहब ने लिया तो GAD के अफसर चाहकर भी उन्हें नियमों का ज्ञान नहीं पेल पा रहे।
लोकेश शर्मा क्या बला है भाई !
सुशासन संस्थान से लेकर मंत्रालय तक हर कोई जानना चाहता है कि आखिर लोकेश शर्मा क्या बला है, जिससे मुख्यमंत्री भी कुछ कहने से पहले सोचते हैं। बताते हैं कि दिल्ली के कोई अरुण जी का उन पर सीधा हाथ है, इसलिए सरकार तो सरकार संगठन में भी घुसपैठ रखते हैं। लोकेश कितने जलवेदार हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि मई 2021 में 1 साल के लिए सवा लाख रुपए मानदेय पर नियुक्ति कर उप-सचिव स्तर की सुविधाएं दी जाती हैं, लेकिन 1 साल पूरा होने से पहले ही सितंबर में स्पेशल नोट बनकर कैबिनेट में जाता है और उनका मानदेय सीधा डेढ़ लाख से ज्यादा करके सेक्रेटरी स्तर की सुविधा देने का प्रस्ताव मंजूर हो जाता है। इसके बाद से लगातार लोकेश जी का जलवा सुशासन और सीएम हाउस में कायम है।