BHOPAL. कहते हैं कि दूसरों के घर में लगी आग में हाथ सेंकों तो अपने भी हाथ झुलसने का डर बना ही रहता है। कांग्रेस का हाल भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। जो अब तक बीजेपी के असंतुष्टों पर नजर जमाए बैठी है। ईंट का जवाब पत्थर से देने के चक्कर में कांग्रेस खुले मन से भाजपाइयों को अपना बना रही है, लेकिन अब बीजेपी में उठी बगावत की आग की क्लोनिंग शुरू हो चुकी है। बीजेपी नेताओं की जिस नाराजगी को भांप कर कमलनाथ 2024 की तरफ बढ़ने की कोशिश में है, वही नाराजगी अब कांग्रेस पर हावी होती जा रही है, जिसकी बानगी कुछ ही समय पहले राजधानी स्थित कांग्रेस कार्यालय में दिखाई भी दी है। कमलनाथ का दांव जो अब तक सही पड़ता दिखाई दे रहा था उससे अब बीजेपी की जगह कांग्रेसियों को ही ज्यादा चोट लगने के आसार नजर आने लगे हैं।
मध्यप्रदेश कांग्रेस में फूटे बगावत के सुर
2023 में होने वाला विधानसभा चुनाव कई मायनों में दिलचस्प है। चुनावी नतीजे इसे और भी ज्यादा दिलचस्प बनाएंगे ही, लेकिन बगावत, दलबदल और नाराजगी जाहिर करने अंदाज के लिए भी ये चुनाव खासा याद रखा जाएगा। दलबदल की एक आंधी साल 2020 में आई थी। 3 दर्जन से ज्यादा नेता एक साथ कांग्रेस छोड़ बीजेपी चले गए थे। उस आंधी की रफ्तार तो थम गई लेकिन असर नहीं गया। अब दलबदल की बड़ी आंधी तो नहीं आती लेकिन हवा के झौंके की तरह दलबदल का प्रोसेस लगातार जारी है। कांग्रेसियों के भाजपाई बनने के बाद बीजेपी के कई लीडर्स नाराज होकर कांग्रेस की तरफ कूच कर रहे हैं। कांग्रेस भी अब तक ऐसे असंतुष्ट भाजपाईयों पर नजर जमा कर बैठी थी, लेकिन अब हालात ये हैं कि असंतुष्टों के साथ आया असंतोष कांग्रेस पर हावी हो रहा है। कांग्रेस नेताओं को भी अब अपने सियासी भविष्य की फिक्र सताने लगी है, जिसे बचाने की खातिर वो खुलकर विरोध करने पर अमादा हो चुके हैं।
बीजेपी नेताओं की एंट्री से नाराजगी
बीजेपी से कांग्रेस में आने वाले नेताओं को कमलनाथ भले ही सिर आंखों पर बिठाना चाहते हों लेकिन उनकी वजह से वो अपनों को ही नाराज कर रहे हैं। पीसीसी के दफ्तर के बाहर पोस्टर के रूप में ये नाराजगी चस्पा हो चुकी है। जिन सीटों पर बीजेपी के बड़े नेता कांग्रेस में शामिल हुए हैं। उन सीटों पर कांग्रेस के मूल नेताओं को अपने सियासी भविष्य पर खतरा मंडराता हुआ नजर आ रहा है। जिसे देखते हुए ये तय है कि बीजेपी की जमीन को आधार बनाकर जीत की सीढ़ियां बनाई तो अपनी ही छत सरकने का खतरा ज्यादा होगा।
सच्चे कांग्रेसियों को सजा मत दो, 2018 के निर्दलियों को ना कहो
कुछ ही दिन पहले पीसीसी की दीवारों पर पोस्टर लगे, जिन्हें देखकर फिक्र होना लाजमी है। इन पोस्टरों में सवाल हुआ कि जब सिंधिया गद्दार कहलाए तो क्या 2018 के निर्दलीय वफादर हो सकते हैं। एक और पोस्टर लगा जिस पर लिखा था कि सच्चे कांग्रेसियों को सजा मत दो, 2018 के निर्दलियों को इस बार ना कहो। कांग्रेस कार्यकर्ता और पुराने नेताओं पनप रहे डर या फिर सुलग रही चिंगारी की ये झलक भर है, कांग्रेस अभी से डैमेज कंट्रोल में नहीं जुटी तो हो सकता है बीजेपी की जगह अपना ही घर जला बैठे।
कांग्रेस में डर उन नेताओं का भी है जो दल बदलकर बीजेपी से आ रहे हैं। इसमें कुछ बड़े नेताओं के नाम भी शामिल हैं।
1. पहला नाम भंवर सिंह शेखावत का है जो बीजेपी की ओर से बदनावर से विधायक रह चुके हैं, वो बदनावर से सीट के दावेदार हो सकते हैं।
2. कोलासर विधायक बीरेंद्र सिंह रघुवंशी चुनाव से दो महीने पहले कांग्रेस में शामिल हुए, उन्हें कोलारस या शिवपुरी से टिकट मिल सकता है।
3. दीपक जोशी पहले ही कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं, उन्हें उन्हीं की पुरानी सीट से टिकट मिल सकता है।
4. दलबदल करने वालों में सीतासरन शर्मा के बड़े भाई गिरिजाशंकर शर्मा भी बड़ा नाम हैं, दो बार विधायक रहे शर्मा टिकट के दावेदार भी होंगे।
5. बीजेपी सांसद रहे आदिवासी नेता माखन सिंह भी कांग्रेस का हिस्सा बन चुके हैं।
6. नरोत्तम मिश्रा को हराने का लक्ष्य तय कर राधेलाल बघेल भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, वो खुद दतिया से टिकट की मांग रख चुके हैं।
7. सिंधिया की वजह से उपेक्षा का आरोप लगा कर पूर्व विधायक देशराज सिंह के बेटे यादवेंद्र सिंह कांग्रेस में आ गए हैं, अशोकनगर या मुंगावली से टिकट की मांग कर सकते हैं।
8. हेमंत लारिया को सागर से टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस में आ गए हैं, खुद को कमलनाथ से प्रभावित बताते हैं।
9. हरदा में मंत्री कमल पटेल के खासमखास माने जाने वाले दीपक सारण कांग्रेस में आ चुके हैं, बूथ पर मजबूत पकड़ रखते हैं।
10. विजयराघवगढ़ से विधायक रहे ध्रुव प्रताप सिंह भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
11. अवधेश नायक ने भी कांग्रेस में वापसी कर ली है।
12. बागरी परिवार की बहू वंदना बागरी भी ससुर की पार्टी छोड़ कांग्रेस में आ गई हैं।
13. निवाड़ी की रोशनी यादव ने भी दुखी मन से बीजेपी छोड़ने का ऐलान कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है।
14. समंदर पटेल बड़े दलबदल के साथ कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
15. ग्वालियर चंबल के बैजनाथ सिंह भी कांग्रेस में आ चुके हैं।
16. रघुराज धाकड़ भी कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं।
17. बीजेपी के शिवपुरी जिला उपाध्यक्ष रहे राकेश गुप्ता कांग्रेस में आ चुके हैं।
टिकट वितरण से पहले कमलनाथ के सामने बड़ी चुनौती
इन नेताओं के अलावा सिंधिया फैंस क्लब के गगन दीक्षित, चंदेरी के यदुराज सिंह यादव भी अब कांग्रेस के नेता बन चुके है। सभी नेताओं का चुनावी साल में जागा असंतोष यही इशारा कर रहा है कि टिकट की उम्मीद से ही पार्टी बदली है। दलबदल करने वाले नेताओं की फेहरिस्त देख कर कांग्रेस खुश तो हो सकती है, लेकिन असल हकीकत से मुंह फेरना भारी पड़ सकता है। और हकीकत यही है कि ये असंतोष बीजेपी को जितना डैमेज कर रहा है कांग्रेस को भी उतना ही नुकसान पहुंचाएगा। ये भी संभव है कि कुछ और सूचियां आते आते कांग्रेस में आने वाले भाजपाइयों की संख्या में इजाफा हो जाए, तब क्या कांग्रेस हर दलदबदलू को सम्मानजनक तरीके से एडजस्ट कर सकेगी। न्यूटन का एक नियम है एवरी एक्शन हैज इक्वल एंड अपोजिट रिएक्शन, तीन साल पहले जो बीजेपी ने किया उसका रिएक्शन नजर आना शुरु हो चुका है। इसकी की वजह से कांग्रेस में भी बगावत का चेन रिएक्शन नजर आ सकता है। असंतुष्टों के सहारे जीत की रणनीति बनाने के चक्कर में कमलनाथ शायद ये भूल गए कि उनके अपने पराए होते जा रहे हैं। और, जितने नेता पराए होंगे अपनी पार्टी के लिए वो उनता ही नुकसानदायी साबित होंगे। इस असंतोष का बीजेपी को जितना नुकसान है उससे कहीं ज्यादा घाटा कांग्रेस को होगा। क्योंकि, कांग्रेस पहले से ही बीजेपी से ज्यादा कमजोर स्थिति में है। कहीं ऐसा न हो कि दूसरे का घर जलाते जलाते कांग्रेस खुद ही अपना घर फूंक दे और चुनावी नतीजों तक इसकी तपिश भी महसूस न हो।
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