JAIPUR. राजस्थान में स्वास्थ्य का अधिकार यानी राइट टू हेल्थ कानून पारित हो गया। ऐसा करने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत या सरकार के अन्य मंत्री अपने हर भाषण में इसका उल्लेख करना नहीं भूलते। हालांकि, हकीकत यह है कि कानून पारित हुए छह माह हो चुके हैं, लेकिन इसके नियम अभी तक अधिसूचित नहीं किए गए हैं। यानी जिन नियमों के तहत यह कानून काम करेगा, वे नियम ही अभी तक सामने नहीं आए हैं। ऐसे में सवाल यह है कि कानून लागू कैसे होगा? अहम बात यह है कि अब चुनाव की आचार संहिता लागू होने में मुश्किल से 15 दिन का समय बचा है। यदि इससे पहले नियम जारी नहीं किए गए तो यह इतना बड़ा कानून कागजी बन कर रह जाएगा।
राजस्थान विधानसभा के इस वर्ष 21 मार्च को राजस्थान का स्वास्थ्य का अधिकार कानून पारित किया गया था और 21 अप्रैल को राज्यपाल ने इस कानून को मंजूरी भी दे दी थी, लेकिन इस मंजूरी के बाद से अब तक इसके नियम नहीं बन पाए हैं। नियम बनाने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बायलेरी साइंसेज के डायरेक्टर डॉ एसके सरीन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। बताया जा रहा है कि यह समिति अपनी एक-दो बैठकें कर चुकी है, लेकिन नियम अभी तक सामने नहीं आए हैं। इस बारे में हमने स्वास्थ्य का अधिकार कानून का मसौदा तैयार करने वाले स्वाथ्य विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ सुशील कुमार परमार से पूछा तो उन्होंने कहा कि वे कानून का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया तक शामिल थे, इसके बाद क्या हुआ है, उन्हें पता नहीं है। जब उनसे पूछा कि अभी कौन इस पर काम कर रहा है तो उन्होंने कहा कि मुझे पता नहीं है इस पर कहां काम चल रहा है। सूत्रों ने बताया कि नियम बनाने पर काम तो चल रहा है, लेकिन इसे काफी गोपनीय रखा जा रहा है। हालांकि, इस गोपनीयता का कोई स्पष्ट कारण तो सामने नहीं आया, लेकिन इसके पीछे एक बड़ा कारण प्राइवेट अस्पतालों की लॉबी बताई गई। नियम तैयार होने में देरी का कारण भी यही बताया जा रहा है।
कानून का कड़ा विरोध किया था प्राइवेट अस्पतालों ने
दरअसल, जब यह कानून पारित किया जा रहा था तो प्राइवेट अस्पतालों का कड़ा विरोध सामने आया था। प्राइवेट अस्पतालों ने कई दिन तक अस्पताल बंद रखे थे और जयपुर सहित प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन किए गए थे। प्राइवेट अस्पताल संचालकों का कहना था कि यह कानून प्राइवेट अस्पतालों पर ताले लगवा देगा। अंततः चार अप्रैल को सरकार को इन अस्पतालों से एक समझौता करना पड़ा था और इसके बाद जाकर इसे राज्यपाल की मंजूरी मिल पाई थी।
यह था विरोध का कारण
दरअसल जो मूल कानून बना था, उसमें यह प्रावधान था कि यदि किसी व्यक्ति को आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था की जरूरत पड़ती है तो जो भी निकटवर्ती अस्पताल है, वह उसे निशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराएगा और रैफर करने की जरूरत पड़ती है तो अपने खर्च पर उसे रैफर भी करेगा। उपचार से मना करने पर कुछ दण्डात्मक प्रावधान भी थे। निजी अस्पतालों ने इसका कड़ा विरोध किया और उनके विरोध के बाद यह सहमति बनी कि 50 बैड या इससे कम क्षमता वाले अस्पतालों और सरकार से रियायती दर पर जमीन नहीं लेने वाले अस्पतालों पर यह कानून लागू नहीं होगा। ऐसे में अब बहुत कम निजी अस्पताल इस कानून के दायरे में रह गए हैं।
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सिविल सोसायटी संगठनों की मांग नियम तुरंत जारी किए जाएं
नियम जारी करने में हो रही देरी का सिविल सोसायटी संगठनों ने विरोध किया है। जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े करीब 70 सिविल सोसायटी संगठनों और कार्यकर्ताओं ने सीएम अशोक गहलोत को ज्ञापन दे कर मांग की है कि यह नियम जल्द से जल्द लागू किए जाएं। इस अभियान से जुड़ी छाया पचैली कहती हैं कि अब आचार संहिता लागू करने में बहुत कम समय बचा है और यदि नियम जारी नहीं किए गए तो यह कानून किसी मतलब का नहीं रह जाएगा। उन्होंने कहा कि यह कानून निजी अस्पतालों ही नहीं बल्कि सभी तरह के अस्पतालों के लिए है, इसलिए सरकार को इसके नियम जल्द से जल्द जारी करने चाहिए।