जातीय जनगणना के जवाब में क्या मोदी सरकार जारी करेगी रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट, आखिर क्या है इस रिपोर्ट में

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Chakresh
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जातीय जनगणना के जवाब में क्या मोदी सरकार जारी करेगी रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट, आखिर क्या है इस रिपोर्ट में

चक्रेश @ BHOPAL

गांधी जयंती पर बिहार सरकार ने जातीय जनगणना (Bihar Caste Census) की रिपोर्ट प्रकाशित कर दी है। रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही बिहार सहित देश की राजनीति में भूचाल आने की बात कही जा रही है। राहुल गांधी ने तो इसे पार्टी का मुख्य मुद्दा बना ही लिया है। राजनीति के केंद्र में OBC आने से अब चर्चाएं यह हैं कि जातीय जनगणना के जवाब में क्या मोदी सरकार (Modi Govt) रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट (Rohini Commission Report) को सार्वजनिक कर सकती है? अगर ऐसा होता है तो पूरे देश में OBC आरक्षण को लेकर नई बहस छिड़ सकती है। आइए समझते हैं क्या है ये रोहिणी कमीशन…

क्या है रोहिणी कमीशन

देश में यह बहस आम है कि ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल कुछ ही समुदायों को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलता है। इसकी सही स्थिति पता करने के लिए ओबीसी की सूची में शामिल 5000 से अधिक जातियों को उप वर्गीकृत करना जरूरी था। इसीलिए 2017 में मोदी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत मिली शक्तियों के आधार पर रोहिणी आयोग बनाया था। आयोग की अध्यक्ष दिल्ली हाई कोर्ट की रिटायर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी को बनाया गया था। 12 सप्ताह में रोहिणी आयोग को रिपोर्ट देनी थी, लेकिन इस आयोग को लगातार विस्तार मिलता रहा और अंततः रोहिणी आयोग ने 31 जुलाई 2023 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। माना जा रहा है कि अगर यह रिपोर्ट सार्वजनिक की जाती है तो ओबीसी आरक्षण को लेकर देश में नई बहस छिड़ सकती है। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि बिहार सरकार के जातीय जनगणना के जवाब में मोदी सरकार रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को ढाल की तरह इस्तेमाल कर सकती है।

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क्या कहती है रोहिणी आयोग की रिपोर्ट

2018 में रोहिणी आयोग ने 5 साल में ओबीसी कोटा के तहत केंद्र सरकार की ओर से दी गई 1.3 लाख सरकारी नौकरियों का अध्ययन किया था। इसके अलावा आयोग ने 2018 में ही पिछले 3 साल में केंद्र सरकार के संस्थानों जैसे आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थान में प्रवेश को लेकर भी आंकड़ों का अध्ययन किया था। फिलहात रोहिणी आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गई है, लेकिन सूत्र कहते हैं कि रिपोर्ट बताती है कि OBC के लिए आरक्षित नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के कोटे का 97 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी की केवल 25 प्रतिशत जातियोंं को ही प्राप्त हुआ। शेष 75 फीसदी जातियां OBC RESERVATION और अन्य लाभ से वंचित हैं। आयोग ने यह भी पाया कि JOBS और प्रवेश में से 24.95 प्रतिशत हिस्सा केवल 10 प्रतिशत जातियों को ही मिला और 983 जातियों का नौकरियों और प्रवेश में प्रतिनिधित्व शून्य रहा। रिपोर्ट यह भी कहती है कि नौकरियों और प्रवेश में 994 ओबीसी उपजातियों का कुल प्रतिनिधित्व केवल 2.68 प्रतिशत ही है।

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मोदी सरकार का ट्रंप कार्ड हो सकती है रिपोर्ट

अप्रैल में बिहार के CM नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी, उसके बाद कांग्रेस ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर पूरे देश में जातीय जनगणना को लेकर आवाज उठाई थी। विपक्षी एकता की तमाम बैठकों में भी जातीय जनगणना की मांग को हवा दी जा रही है। दूसरी ओर केंद्र सरकार अब तक जातीय जनगणना कराने से इनकार करती आ रही है, लेकिन यह माना जा रहा है कि ओबीसी के वोटों की चिंता में मोदी सरकार इस मसले पर दबाव में है। इस दबाव से निपटने के लिए मोदी सरकार के पास रोहिणी कमीशन से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता।

OBC की दशा समझने अब बन चुके हैं तीन आयोग

  •  1953 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने काका कालेलकर की अध्यक्षता में पिछड़ा आयोग बनाया था, जिसने पिछड़े लोगों पर सरकार को अपनी रिपोर्ट दी थी। इस डाटा का इस्तेमाल आरक्षण इत्यादि में होना था। हालांकि, नेहरू सरकार ने इस आयोग के सुझावों को मानने से इनकार कर दिया था।
  • 1979 में मंडल कमीशन बनाया गया। इसकी अध्यक्षता बीपी मंडल ने की थी और इसने वर्ष 1980 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। वर्ष 1990 में इसे लागू किया गया था। मंडल कमीशन ने ही ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने की सलाह दी थी। 1980 से 1989 तक इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों ने इसे लटकाए रखा, लेकिन साल 1990 में वीपी सिंह ने इसे लागू कर दिया। इसके बाद देश में मंडल-कमंडल की राजनीति ऐसी आगे बढ़ी कि जाति के बिना भारत में राजनीति संभव नहीं है।
  • 31 जुलाई 2023 को रिपोर्ट पेश करने से पहले रोहिणी कमीशन का कार्यकाल 13 बार बढ़ाया गया। फिलहाल इसकी रिपोर्ट को राष्ट्रपति के पास भेजा जा चुका है। इसे अभी तक संसद में नहीं रखा गया है। मोटा-मोटी मान लेते हैं कि सरकार इस रिपोर्ट को अब स्वीकार कर चुकी है, जिसे लागू करने के लिए उसे कुछ कदम उठाने भर की देर है।

रोहिणी आयोग की सिफारिशें?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नौकरियों और शिक्षा में 97 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का लाभ ओबीसी की 25 प्रतिशत जातियां ही उठा रही हैं। शेष 75 प्रतिशत जातियों की भागीदारी 3 प्रतिशत ही है। 983 ओबीसी जातियों की हिस्सेदारी तो हर मामले में शून्य है।

 दो हिस्सों में है रिपोर्ट

रोहिणी आयोग की रिपोर्ट करीब 1100 पन्नों की है, जिसे दो भागों में बांटा गया है। पहले हिस्से में आरक्षण का फायदा पा रही जातियों में उनकी हिस्सेदारी से जुड़ी बात है।  दूसरे हिस्से में मौजूदा समय में ओबीसी में शामिल 2633 पिछड़ी जातियों की पहचान, जनसंख्या में उनके आनुपातिक प्रतिनिधित्व और अब तक आरक्षण नीतियों से उन्हें मिले लाभों की जानकारी है। हालांकि कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, 3000 जातियों की जानकारी इस रिपोर्ट में है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, रोहिणी आयोग ने ओबीसी की 3000 जातियों को 4 वर्गों में विभाजित करने का सुझाव दिया है। इन वर्गों में आरक्षण का पूरा लाभ, अधूरा लाभ, बिल्कुल लाभ नहीं ले पाने वाली और एक दम अक्षम जातियों का 4 वर्ग तैयार हो सकता है। इन्हें 10 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 8 प्रतिशत और जो भी डाटा इस आयोग की सिफारिश के साथ होगा, उन्हें मिल जाएगा।

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रिपोर्ट लागू हुई तो क्या हो सकता है असर?

अभी ओबीसी जातियों की राजनीति को लेकर मुखर रहने वाली ताकतवर ओबीसी जातियों का कोटा इस सिस्टम की वजह से घट जाएगा। ऐसे में संभव है कि ये जातियां अपने पुराने रहनुमाओं को छोड़कर नए विकल्प तलाशें। वहीं, जिन जातियों को आरक्षण का लाभ अब तक नहीं मिल पाया है, या बहुत कम मिला है, रोहिणी आयोग की सिफारिशों की वजह से उनका कोटा बढ़ जाएगा। वो आगे बढ़कर अपनी हिस्सेदारी क्लेम भी कर पाएंगे। चूँकि अभी ओबीसी वर्ग में दो वर्ग है- एक क्रीमी लेयर और दूसरा गैर-क्रीमी लेयर। इनमें से क्रीमी लेयर वाले आरक्षण का फायदा ज्यादा उठा पाते हैं, क्योंकि वो आर्थिक और शैक्षिक स्तर पर मजबूत होते हैं। ऐसे में इन वर्गों का 4 वर्गों में विभाजन होते ही उन कमजोर जातियों का फायदा होगा, जो वंचित हैं।



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