संजय गुप्ता, INDORE. मध्यप्रदेश की सबसे हाई प्रोफाइल हुई सीट इंदौर विधानसभा-1 की लड़ाई अब कोर्ट भी पहुंच गई है। कांग्रेस प्रत्याशी और मौजूदा विधायक संजय शुक्ला ने बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ जिला कोर्ट में परिवाद दायर कर दिया है। इसमें उन पर नामांकन पत्र में जानकारी छिपाकर कोर्ट के आदेशों और चुनाव नियमों का पालन नहीं करने, धोखाधड़ी करने के आरोप लगाए गए हैं और कोर्ट से मांग की गई है कि वे इसमें जांच करने, केस करने का आदेश जारी करें।
इन सभी को बनाया गया पक्षकार
ये केस समक्ष न्यायालय श्रीमान न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी इंदौर (म.प्र) के सामने संजय शुक्ला ने पेश करते हुए इसमें रिटर्निंग अधिकारी और एसडीएम मल्हारगंज ओम नारायण सिंह बड़कुल, मप्र शासन द्वारा पुलिस आयुक्त इंदौर और आरक्षी केंद्र पुलिस थाना रावजी बाजार को अभियुक्त बनाया है। परिवाद आवेदन अंतर्गत धारा 156(3) सह पठित धारा 200 सह पठित धारा 190 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत लगा है। शुक्ला की ओर से अधिवक्ता गौरव वर्मा, रविंद्र पाठक और सौरभ मिश्रा द्वारा बुधवार को कोर्ट में पेश किया गया।
परिवाद में ये कहा गया
परिवाद में कहा गया है कि विजयवर्गीय द्वारा नामांकन में पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए केस, जिसमें खुद उनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई, उसकी जानकारी नहीं दी गई। छत्तीसगढ़ पुलिस ने उन्हें फरार घोषित किया है, लेकिन इस मामले की भी जानकारी नहीं दी गई और पत्नी एक चिटफंड कंपनी में डायरेक्टर है, इनकी भी जानकारी छिपाई गई। जबकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले में किसी भी प्रत्याशी को नामांकन पत्र में सभी जानकारी देना अनिवार्य है।
टीआई, आयुक्त सभी को दी थी अपराध की जानकारी
आवेदन में कहा गया है कि परिवादी द्वारा आरक्षी केंद्र रावजी बाजार में थाना प्रभारी को लिखित में 3 नवंबर को संज्ञेय अपराध घटित होने की सूचना अंतर्गत धारा 154 दण्ड प्रक्रिया संहिता दी गई। लेकिन ना उन्होंने केस दर्ज किया और ना ही जांच की। फिर 4 नवंबर को पुलिस आयुक्त इंदौर को लिखित सूचना अन्तर्गत धारा 154(3) द.प्र.स. की प्रेषित की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इस नियम के तहत जानकारी देनी थी
आवेदन में कहा गया है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 33 और 36(2) में नामांकन फॉर्म में दी जाने वाली जानकारियों के संबंध में प्रावधान दिए गए है और नाम निर्देशन फॉर्म में ये स्पस्ट रूप से लेख है कि नाम निर्देशन फॉर्म एवं संलग्न शपथ पत्र प्रारूप 26 (नियम 4A) में चाही गई समस्त जानकारियां दी जाना, आवश्यक प्रारूप 26 के शपथ पत्र में लंबित अपराधिक प्रकरण और अन्य जानकारियां देना अतिआवश्यक है। स्क्रूटनी कमेटी के सामने भी 31 अक्टूबर को हमारे द्वारा आपत्तियां ली गई, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया।
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ये मांग की गई
परिवाद में कहा गया कि ये प्रकरण माननीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार में है और संज्ञेय अपराध घटित की सूचना प्राप्त होने के बाद भी धारा 154 तथा 154(3) द.प्र.सं. के तहत अपराध दर्ज नहीं कर अपराधी को संरक्षण तथा प्रकरण में विवेचना न कर तथा सूचनाकर्ता को जनरल डायरी नंबर उपलब्ध न कराकर कानून के प्रावधानों की अवहेलना की गई है। इसलिए ये प्रकरण प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे कि संज्ञेय अपराध की जांच और विवेचना की जा सके। आरोपी के विरुद्ध माननीय न्यायलय धारा 190 द.प्र.सं. के तहत संज्ञान लेने की कृपा करें तथा पुलिस को आरोपियों के विरुद्ध धारा 420, 191, 193, 218, 34 भारतीय दण्ड विधान एवं 125A लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 एवं अन्य प्रावधानों के तहत जांच एवं विवेचना किए जाने हेतु न्यायहित में आदेश पारित करने की कृपा करें।